वो खौफनाक रात – कमलेश राणा

25 दिसंबर की वो खौफनाक रात जब भी याद आती है,,रोंगटे खड़े हो जाते हैं,,

 

उस दिन बड़े बेटे की बर्थडे थी,,सभी लोग बड़े खुश,,तय हुआ कि डिनर ग्वालियर में होटल में करके,,45 किलोमीटर दूर अपने गृहनगर लौट जायेंगे,,

 

डिनर 11बजे समाप्त हुआ ,,,पूरा परिवार साथ था,,दोनों बेटे,बहू,उसके दो बच्चे,हम पति-पत्नी और एक बेटी का बेटा,,

 

मेरा मन नहीं था कि इतनी रात को वापस जायें,,यहाँ भी घर है,,यहीं रुक जाते हैं,,पर बेटे बोले,,नहीं,,मम्मी,,अभी एक घंटे में पहुंच जायेंगे,,,वहीं चल कर आराम से सोयेंगे,,

 

वैसे भी जहाँ हमरहते हैं,,वहीं ज्यादा कम्फर्टेबल महसूस करते हैं,,शहर में मौसम ठीक था,,ठंड तो थी ही,,

 

शहर के बाहर निकलते ही यह अहसास हो गया कि हमने बहुत बड़ी गलती कर दी,,उस पर भी शार्टकट ले लिया,,

 

शहर से बाहर निकलते ही तेज बरसात शुरू हो गई,,सिंगल रोड,,सुनसान काली अंधेरी रात,,,दूर-दूर तक कोई वाहन नज़र नहीं आ रहा था ,,,

 

ऐसी बरसात पहली बार देखी ,,,जैसे बादल फट गया हो,,,ऐसा लग रहा था जैसे कोई ऊपर से धुंध की बहुत बड़ी गठरी कार के सामने ला कर पटक रहा हो,,चारों ओर अंधेरा और सन्नाटा,,

 

रोशनी की कोई किरण दूर-दूर तक नज़र नहीं आ रही थी,,एक फुट आगे तक का भी दिखाई नहीं दे रहा था,,बस अंदाज़ से ही कार चल रही थी,,पास से कोई वाहन गुजरता तो साईड देना ऐसा लगता कि खाई में अब गिरे कि तब गिरे,,

 



शार्टकट होने के कारण वाहनों की आवाजाही कम थी,,थोड़ी दूर तक सफ़ेद पट्टी मिली तो कुछ रास्ता दिखने लगा,,पर कुछ दूर जा कर वह भी खत्म हो गया,,

 

मैं तो बस राम राम उच्चारण करती जा रही थी,,हे प्रभु आज बचा लो,,डरे हुए तो सभी थे,,कोई किसी से बात नहीं कर रहा था,,बरसात रुकने का इन्तज़ार भी नहीं कर सकते थे,,

 

उस बियाबान जंगल में रुकने का मतलब था,,खतरे को आमंत्रण देना,,बस चलते ही जाना था,,उस रास्ते पर एक अंधा मोड़ भी है,,जहाँ सड़क सर्पाकार है,,लग रहा था,मोड़ नहीं दिखा तो क्या होगा,,

 

बादल मानो आज ही पूरी कसर निकालने पर आमदा थे,,अचानक सामने से एक ट्रक आ गया,,अगर साइड लेते तो दिख नहीं रहा था,,कार स्लिप होने का डर ज्यादा था,,

 

बेटे ने कहा,,कुचलने तो नहीं दूंगा,,हाथ -पैर भले ही टूट जायें,,ठीक हो ही जायेंगे,,कह कर कार खेत में उतारने लगा,,

 

ट्रक का ड्राईवर समझ गया कि इन्हें कुछ दिख नहीं रहा,,तो वह ट्रक को रोक कर खड़ा हो गया ताकि हम आराम से निकल जायें,,बड़ी तसल्ली मिली,,

 

अब मैनरोड पर आ गये थे,,अन्य गाड़ियों की लाईट के सहारे,,राम नाम सुमरते हुए जैसे-तैसे घर पहुंचे,,हे प्रभु!बचा लिया आज तो,,कहते हुए,,ईश्वर को धन्यवाद दिया,,

 

तब से रात के सफ़र का ऐसा फोबिया बैठ गया है दिमाग में,,कि शाम होने से पहले ही घर पहुँचने की कोशिश करते हैं,,बहुत खौफनाक थी वो बरसात की रात,,

#बरसात

कमलेश राणा 

ग्वालियर

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