ट्रेन की यात्रा – सीमा नेहरू दुबे

गनीमत है ज़िंदगी पूरी ना सही पर थोड़ी तौं लाइन पर आ रही है और ट्रेन का सफर उसी नोर्मल ज़िंदगी के सफर का हिस्सा है। मुझको भी बड़े दिनों बाद ट्रेन का सफर नसीब हुआ, वाह! क्या कहने!  मुझे तौ सच मे ये सफर बहुत सुहाना लगता है आप बैठे है और बाहर देखो तौ दुनिया भाग रही है, जब मन करे तब आप अपनी आँख बंद कर सपनो की दुनिया मे खो जायो। ऐसे ही एक सुहाने सफर मे मेरी मुलाकात उससे हुई नाम था सना। नाम सुंदर था, खुद वो भी गोरी चिट्टि सुंदर सी थी।

 बात की शुरूबात अपने सफर की बात से शुरू हुई। वो अलीगढ़ और मैं दिल्ली जा रही थी। काफी समय था जो हमको साथ गुजरना था। हम हिंदुस्तानियों की आदत होती है कि अगर हमको प्यार भरी मुस्कराहट मिल जाती है तौ हमारा दिल तुरंत ही दूसरे के आगे खुल जाता है, एैसा ही यहाँ हुआ, कुछ अँक्ल चिप्प्स क्या हमने एक दूसरे के खाये कि दिल तुरंत ही मिल गया। मैंने पूछा क्या ये तीनो तुम्हारे है, वो मुस्कराहट के साथ बोली हाँ, पर साथ ही ये बोली कि बड़े वाले के अब्बू तौ शादी के छः महीने बाद ही चले गये। मैंने कोतूहल वश पूछा कहाँ?

 वो बोली अरे अल्ला के पास, और साथ ही बोली कि वो तौ सिर्फ छः महीने मे ही अल्ला को प्यारे हो गये। पर अपनी ये निशानी छोड़ गये। दुख हुआ ये सुन कर। मैंने पूछा अरे तुम तब तौ बहुत छोटी रही होगी। उसके चेहरे पर एक दर्द भरी लहर उभर पड़ी। बोली क्या बोलू मै तौ 18 साल की उमर मैं बेवा बन कर और एक बच्चा गोद मे ले कर अब्बू के यहाँ आ गयी। सच मे मन बहुत शुबद् हो गया जहाँ जिसको ज़िंदगी जीनी थी वो एक भार को संभाल रही थी  और साथ ही साथ जीते जी मर भी रही थी।

 आगे सिर्फ अंधेरा ही नजर आ रहा था उसको। मैंने पूछा कि क्या तुम्हारे मरहूम पति के घर वालों ने तुम्हारी कोई मदद नही की। वो बोली अरे छोड़िये ये दुनिया है सच्चाई नजर आ गयी, वो लोग तौ मुझे अस्पताल मे छोड़ कर भाग गए, अरे मेरा मुह खुला का खुला रहा गया। आगे जानने की हिम्मत नहीं हुयी, पर उसको तौं अपना मन हल्का करना था, ” बोली अभी आप आगे तौ सुनिये सितम यहाँ ख़तम नहीं हुए। मैं चुप थी पर उसकी कहानी मे उत्सुकता मेरी भी जाग गयी थी, धीरे से पूछा कि बाकी दोनों किसके है?  अरे ना पूछो!  कि कैसे मेरी दोबारा शादी हुयी और ये सोगाते मुझे मिली? 



मैंने भी आँखों के इशारे से पूछा? वो बोली जी कहानी यहाँ ख़तम नहीं हुयी मैं 20 साल की बेवा, कोई उम्मीद की रोशनी कहीं नहीं। बस अबू के घर का सारा काम करो भावजो की चमचा गिरी करो और जिये जायो। सच तौ कह रही थी शायद माँ होती तौ बात अलग होती, अबू को कोई मतलब नहीं था। मेरे पास आगे देखने को कुछ भी नहीं था। 

उन्ही दिनों मेरी बड़ी आपा के जेठ हमारे यहाँ आये और वो मेरे पर फिदा हो गये, पैगाम भेजा कि शादी करना चाहते है। मैं मुश्कराईं कि चलो कुछ तौ सुख के बादल आये, पर ये क्या?? वो बोली एक दर्द भरी मुश्कान के साथ, जी रिश्ता तौ आया था पर वो पहले से ही शादी शुदा थे, और उपर से 20 साल बड़े। अरे!! ये कैसे??? घर वाले मान गये, अरे मानते क्यों नहीं, आखिर उनकी बला टल रही थी, मैंने धीरे से पूछा और तुम ने क्या सोचा था?? 

वो बोली कि मैंने  सोचा कि शायद बीबी का नया हक उसको कुछ नयी रोशनी देगा वो उन अंधरो से  निकल कर एक नयी रोशनी अपने बच्चे को दे सकती है क्युकी वो मेरे बच्चे को भी अपना रहा था। हम्म!  फिर तौ कुछ ठीक ही होना था। वो हँस कर बोली अजी ज़िंदगी इतनी आसान थोड़ी होती है। फिर मुस्करा कर बोली ” अगर सुख ही देना होता अल्ला को तौ उनको लेता क्यों?? ” बात तौ सही थी। खैर लब्बो लबाब इतना था उस पैगाम का कि उसको अपने शौहर की दूसरी बीबी का खिताब मिला और घर वालों को उसकी ज़िम्मेदारी से छुट्टी। शायद यही उसकी किस्मत थी। मै चुप हो कर बैठ गयी, मुझको उसके लिए दुख हो रहा था।

खैर मैंने धीरे से पूछा कि अब अपने इस घर मे तुम खुश हो? वो मुस्करा कर बोली जी सुनिये ये जो हमारे पति को हमारी सूरत का जो जुनून चडा था वो एक महीने मे ही उतर गया और वो हमको एक किराये के घर मे रख कर अपने बीबी और बच्चो के पास चले गए। उफ़! ये क्या कि वापस उसी मुकाम पर। वो बोली जी हाँ पर एक और नयी जान के साथ क्युकी ये दूसरा मेरे पेट मे आ चुका था। और शायद होने वाले बच्चे की चाहत बुला लाई। फिर एक आया फिर दो आये और एक नया परिवार बन गया।

 हाँ वो खर्चा सारा उठाते है, बच्चे भी अच्छे स्कूल मे पड़ रहे है पर मुझे एक पैसा भी नहीं देते। कहते है कि खाना दे तौ रहा हु बच्चो को पढ़ा तौ रहा हु। मै भी ये सोचती हु कि चलो इन बच्चो का जीवन तौ बन रहा है। एैसे ही ज़िंदगी सही। फिर मैंने कोतूहल बस पूछा ये टिकट के पैसे कहा से आये, बोली दुनिया बुरी है पर अल्ला ने कही ना कहीं दिल भी अता किया है जब किसी भाई को तरस आ जाता है तौ वो टिकट भेज देता है और मुझे कुछ ठंडी हवाएं नसीब हो जाती है। अम्मी अम्मी, उठो! अलीगढ़ आ रहा है तैयार हो जायो। उसने अपना बुरखा पहना और फिर बोली आप से मिल कर दिल हल्का हो गया, खुदा हाफिज। मैंने भी मुस्करा कर बाएँ बोला, और कहा सलाम ज़िंदगी।

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