‘ बरसात की वो रात..’ – विभा गुप्ता

 साक्षी ने रिपोर्टिंग का सारा सामान अपने हैंडबैग में रखा और कोर्ट जाने के लिए जैसे ही वह ऑटो में बैठी कि झमाझम पानी बरसने लगा। “ओफ्फ़ो,इस बारिश को भी अभी ही आनी थी, आज ‘ कमली केस ‘का फ़ैसला होना है, देर हुई तो पूरी रिपोर्ट देवकी तैयार कर लेगी और मेरा प्रमोशन फिर रुक जायेगा।” मन ही मन सोचते हुए उसने ऑटो वाले से जल्दी कोर्ट चलने को कहा।

        कमली का केस पिछले पाँच सालों से शहर के हाईकोर्ट में चल रहा था।कितनी ही तारीखें आकर चली गईं, पब्लिक प्रोस्यूक्यूटर ने कमली के चाल-चलन पर तरह-तरह के आरोप लगाए, फिर भी उसने एक बार भी अपना मुँह नहीं खोला।बस चुपचाप कटघरे में खड़ी रहकर सामने बैठे लोगों को देखती रहती।यहाँ तक कि अपने बचाव के लिए उसने कोई वकील भी नहीं किया था।पिछली सुनवाई में तो जज साहब ने कहा भी था कि तुम चाहो तो अदालत तुम्हें अपने खर्चे पर एक वकील दिलवा सकती थी लेकिन उसने अपनी गरदन हिलाकर ‘ना ‘ कह दिया था।अब आज जब उसके केस का फ़ैसला होना है तो उसे बताना ही पड़ेगा कि उसने अपने पति का खून करके क्यों अपनी माँग उजाड़ ली, क्यों अपनी बेटी को अनाथ बना दिया?

              कोर्ट पहुँचते-पहुँचते बारिश तो बंद हो गयी थी लेकिन सड़कों पर इतना पानी भरा था कि नाव चल जाये।किसी तरह से खुद को बचते-बचाते वह चैंबर में पहुँची।कोर्टरूम लोगों से खचाखच भरा हुआ था,उसने एक किनारे में अपने बैठने की जगह बनाई और नोटपैड, पेन सहित अपना रिकार्डर भी ऑन करके तैयार हो गई।

          मुंशी ने जज साहब के आने की सूचना दी तब कमली को कटघरे में लाकर खड़ा किया गया और केस की कार्रवाई शुरु हुई।जज साहब बोले, ” कमली, हर सुनवाई में आकर तुम खामोश रही हो, न तो तुमने कोई वकील रखा और न ही स्वयं पैरवी की है।आज तुम्हारे अपराध का फ़ैसला होने वाला है।लेकिन मेरे फ़ैसला सुनाने से पहले आज तुम्हें बताना ही पड़ेगा कि आखिर तुमने अपने पति का खून क्यों किया?”

            ” जी जज साहेब, आज मैं जरूर बताऊँगी परन्तु यहाँ बैठे सभी लोगों से मैं एक सवाल पूछना चाहती हूँ कि अगर कोई आपकी बेटी की इज्जत पर हमला करे तो आप क्या करेंगे।” कमली के प्रश्न पूछते ही किसी ने कहा कि पुलिस के हवाले कर देंगे तो किसी ने कहा कि भरपेट पिटाई करेंगे।शोर होते देख जज साहब अपना हथौड़ा मेज पर ठोकते हुए बोले, ” शांत रहिये ” तभी पीछे से एक महिला ने कहा कि जान से मार दूँगी।कमली तपाक से बोली, ” मैंने भी तो वही किया है।” 



               अदालत में सन्नाटा पसर गया।जज साहब बोले, “पूरी बात बताओ।” वह बोली, ” जज साहब, मेरा आदमी साहब लोगों के गार्डन में माली का काम करता था।जो कमाता, सब दारु में उड़ा देता था।घर चलाने के लिए मैं घरों में बरतन-कटका(पोंछा) करती थी पर वह पैसों के लिए बहुत चिकचिक करता,नहीं देने पर मारता था।वो सब साहेब मैंने सहा।बेटी को स्कूल भेजने लगी,उसे पढ़ाकर अपने पैर पर खड़ा करना चाहती थी तो भी मेरे आदमी ने बेटी के स्कूल जाकर बहुत शोर मचाया।

                 एक दिन साहेब, ऐसे ही तेज़ बारिश हो रही थी।मुझे तेज बुखार था,दो दिन से काम पर न जाने के कारण घर में खाने को कुछ नहीं था।बेटी एक कोने में बैठी पढ़ रही थी।बारिश थोड़ी थमी तो मेरे मर्द ने दारू पीने के लिए मुझसे पैसे माँगे।मैं कहाँ से देती,सब तो वो पहले ही स्वाहा कर चुका था,जो बचे थे वो मेरी दवा में खर्च हो गए।मैंने उसे परस(पर्स) दिखा दिया।गुस्से से उसने अपने पैर से मुझे एक ठोकर मारी और गालियाँ बकता घर से बाहर चला गया।शाम हो गई, वह नहीं लौटा।अंधेरा गहराने लगा तो अनहोनी सोचकर मेरा मन घबराने लगा लेकिन तभी वह दारु की एक बोतल लिए घर में घुसा तो उसे देखकर तसल्ली हुई।मैंने सोचा, अब दरवाज़ा बंद कर लेती हूँ, तभी नशे में चूर तीन आदमी मेरे घर में घुसे।मैं समझ नहीं पाई।आशंकित होकर पहले तो बेटी को बाथरुम के अंदर किया और फिर उन्हें भगाने का प्रयास करने लगी लेकिन वो तीनों ही मुझपर झपट पड़े।मैंने खुद को बचाने के लिए उस पति की तरफ़ देखा जो अपनी प्यास बुझाने के लिए पहले ही मुझे उनके हाथों बेच चुका था।” कहकर वह एक मिनट के लिए मौन हो गई, फिर बोली, ” साहेब, बरसात की वो रात मेरे जीवन की काली रात बन गई।मैं उन दरिंदों के हाथों लुटती रही,फिर भी खुद को बचाने की नाकाम कोशिशें करती रही।बाहर बादल गरज रहें थें,भीतर मेरा कलेजा छलनी हुआ जा रहा था।बाहर पानी बरस रहा था और भीतर मेरी आँखें।कौन आया, कौन गया,मुझे होश नहीं।” पूरे कमरे में सन्नाटा छा गया।साक्षी भी जड़वत् थी।कमली की पीड़ा को वह मसालेदार कहानी बनाना नहीं चाहती थी,इसलिये उसने अपना नोटपैड बंद कर दिया और रिकार्डर का स्वीच ऑफ़ करके वह कमली को देखने लगी।



                कमली ने बेंच की तीसरी सीट पर बैठी अपनी बेटी को देखा और ठंडी साँस भरते हुए बोली, “साहेब, जी तो चाहा कि खुद को खत्म कर लूँ परन्तु अपनी बेटी को उसके हवाले करके मौत को मैं कैसे गले लगा सकती थी, सो रोज मर-मर कर जीती रही।

               साहेब,उस दिन मेरी बेटी का पंद्रहवाँ जन्मदिन था।उसकी खुशी में मैं अपने दुखों को भूल चुकी थी।रात को खाना खाने के बाद मेरे पति ने फिर से मुझसे पैसे माँगे।अब मैं अपनी बेटी के भविष्य के लिए पैसे जमा कर रही थी,सो मैंने उसे पैसे नहीं दिए।उसने मेरी बेटी का हाथ पकड़ा और बोला, “तू नहीं तो तेरी बेटी ही सही।”कहकर वह उसे घर के बाहर ले जाने लगा।मैंने दौड़कर उसे रोकना चाहा, तभी झमाझम बारिश होने लगी, वह वापस आ गया।मैं सोचने लगी, आज तो इंद्र देवता ने मेरी बेटी को बचा लिया लेकिन कल….।जब रक्षक ही भक्षक बन जाए तो किस पर विश्वास रहेगा।इस तरह से तो मेरी बेटी के सिर पर मौत का साया हमेशा ही मँडराता रहेगा।मेरा जीवन तो नर्क बना ही दिया था, मेरा जीना क्या और मरना क्या, लेकिन मेरी बेटी भी…।हर्गिज़ नहीं, फिर बस, मैंने उसी की घास काटने वाली कैंची उसके पीठ पर दे मारी।उसके ज़ुल्म याद आये और मैं वार पर वार करती गई।” कहकर वह क्रोध से काँपने लगी।

          जज साहब बोले, ” तुम्हें पुलिस के पास आना चाहिए था, कानून को अपने हाथ में क्यों लिया?” वह आवेश में बोली, “किस कानून की बात करते हैं आप, यहाँ तो रोज ही बेकसूरों को सज़ा सुनाई जाती है और पुलिस ने कब किसी गरीब की सुनी है जो मेरी सुनती।साहेब, जो इंसान अपनी पत्नी को बेच सकता है, बेटी का सौदा करने की सोच सकता है वो किसी का क्या होगा।उसको मारकर मैंने कोई गुनाह नहीं किया है।आप जो चाहे, सज़ा दे सकते हैं।” जज साहब बोले, ” कत्ल करने से पहले तुमने एक बार भी अपनी बेटी के लिए नहीं सोचा? वो अकेली कैसे रहेगी? ”  ” बेटी की चिन्ता अब नहीं है साहेब।” कमली बोलकर फिर अपनी बेटी की तरफ़ देखी और कहने लगी, “मेरी बेटी अपनों से चोट खाकर बहुत मजबूत हो गई है।अब वह अपना ही नहीं दूसरों का भी सहारा बनेगी।” थोड़ी देर पहले कटघरे में खड़ी जो कमली अपराधिनी थी वो अब सभी को देवी नज़र आने लगी।वहाँ बैठे सभी लोग अपनी दबी ज़ुबान से उसके कृत्य की प्रशंसा करने लगे।जज साहब ने फ़ैसला कल पर छोड़कर ‘अदालत बर्खास्त होती है’ कहकर कोर्टरूम से बाहर चले गए।

              साक्षी ने कमली की बेटी का हाथ थामा और कमली के पास जाकर बोली, ” कमली, कल जज साहब जो भी फ़ैसला दें, मेरा फ़ैसला है कि तुमने कोई गुनाह नहीं किया है।आज से तुम्हारी बेटी मेरी छोटी बहन है।मैं इसे एक….।”  “मुझ गरीब पर आपका बड़ा उपकार होगा मेमसाहब।” साक्षी अपनी बात पूरी करती, उससे पहले ही कमली बोल पड़ी और फ़फक-फ़फक पर रोने लगी।बरसात की उस काली रात के बाद शायद आज वह पहली बार जी भर कर रो रही थी।

#बरसात

                   —— विभा गुप्ता 

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