सावन की पहली बारिश – डॉ पारुल अग्रवाल

बाहर बादल बहुत तेज़ गरज रहे थे, मूसलाधार बारिश हो रही थी। सर्दी की बारिश वैसे भी सबको घर के अंदर रहने को मजबूर कर देती है। दामिनी जी बड़ी सी हवेली में आग के सामने  आरामकुर्सी पर  बैठ अपने बीते दिनों को याद कर रही थी। एक समय कैसे ये हवेली हंसी और ठहाको की आवाज़ से गूंजती थी और आज एकदम सन्नाटा है।

 ये सब होना शुरू हुआ दामिनी जी के पति ठाकुर रणविजय सिंह के स्वर्गवास के बाद, ठाकुर रणविजय सिंह के समय दामिनी जी के तीन छोटे देवर और उनका परिवार सब एक साथ रहते थे, साथ-साथ दो ननद जिनकी शादी खुद दामिनी जी और रणविजय जी ने करवाई थी, समय-समय पर अपने परिवार और बच्चों के साथ आते रहते थे, खूब चहल-पहल लगी रहती थी। 

पर ठाकुर रणविजय सिंह की अचानक हृदयघात से मृत्यु क्या हुई? पूरी दुनिया के रंग नजर आ गए। सब लोग अपना हिस्सा लेकर अलग हो गए। घर में रह गए तो दामिनी जी और उनका जवान बेटा शौर्य। उनके हिस्से में ये हवेली आई। शौर्य जो देखने में लंबा चौड़ा, काफी खूबसूरत नौजवान था। शौर्य अपने मां-बाप का आज्ञाकारी बेटा था। एक बड़ी कंपनी में मैनेजिंग डायरेक्टर था।

 इस तरह दामिनी जी और उनका बेटा शौर्य ही एक-दूसरे का सहारा थे। पर शौर्य को काम के सिलसिले में काफी बाहर रहना पड़ता था, जिससे दामिनी जी का अधिकतर समय अकेले ही निकलता था। दामिनी जी ने शौर्य को शादी के लिए मानने की बहुत कोशिश की पर उसे तो लड़कियों से ही नफरत हो गई थी l 

असल में उसे अपने साथ काम करने वाली एक लड़की से प्यार था और वो उसके साथ शादी भी करना चाहता था पर उसके पिताजी ठाकुर रणविजय सिंह के जाने के बाद जब बंटवारे में उनका सारा कारोबार और जायदाद दूसरों के हिस्से में चला गई तो उसने किसी बहुत ही अमीर लड़के से शादी कर ली। 

दामिनी जी पुरानी यादों में खोई थी कि तभी दरवाजे पर दस्तक हुई।उन्होंने दरवाज़े की झिर्री में से देखा तो बाहर माली किसी लड़की को लेकर खड़ा था। उन्होंने दरवाजा खोला तब माली ने दामिनी जी से कहा कि वो बारिश रुकने का इंतजार ही कर रहा था तब सामने सड़क पर ये लड़की दो गुंडे जैसे दिखने वाले लड़कों से बचने की कोशिश कर रही थी, मैने और गार्ड ने मिलकर उन गुंडों को भगा दिया।

 ये लड़की बहुत घबराई सी लग रही है और कुछ बता भी नहीं रही है। इसलिए मैं इसे आपके पास ले आया। असल में आस-पास के सभी लोग और हवेली पर काम करने वाले सभी लोगों को दामिनी जी के अच्छे और दयालु स्वभाव का पता था। 



दामिनी जी ने सारी बात समझी और लड़की को अंदर आने के लिए बोला। अब सबसे पहले तो दामिनी जी ने उस लड़की को खाना और चाय दी। कुछ उसके साइज़ के कपड़े उसको बदलने के लिए दिए क्योंकि लड़की बारिश में बुरी तरह भीगी हुई थी और कांप रही थी। अब कपड़े बदलने और कुछ खाने के बाद लड़की थोड़ा सा भयमुक्त लग रही थी। 

अब दामिनी जी ने लड़की से उसके घर के बारे में पूछा, तब पता चला उसका नाम तन्वी है उसके मां बाप नहीं हैं। चाचा-चाची के साथ रहती थी, चाचा भी किसी दुर्घटना का शिकार हो गए तब चाची ने उसको घर से निकाल दिया। दामिनी जी ने उसको कहा वो जब तक चाहे यहां रह सकती है। लड़की बहुत खूबसूरत और देखने में बहुत मासूम लग रही थी। 

दामिनी जी ने उसको रख तो लिया था पर वो शौर्य की प्रतिक्रिया से भी डर रही थी। वो लड़कियों की छाया से भी नफरत करता था और ये तो वैसे भी अजनबी थी। खैर अभी शौर्य के वापस आने में पांच दिन थे। अब लड़की धीरे-धीरे सामान्य होने लगी। इन पांच दिनों में इस लड़की ने अपने भोले स्वभाव से दामिनी जी का दिल जीत लिया। दामिनी जी के कोई बेटी ना थी, उसके साथ उनको एक जुड़ाव सा महसूस हो रहा था। 

पांच दिन बाद जब शौर्य वापिस आया, तब उस लड़की को घर में देख उसने मां से उसके बारे में पूछा।जब दामिनी जी ने उसको सारी बात बताई तो वो बहुत गुस्सा हुआ और तन्वी के सामने ही कहने लगा कि किसी अजनबी पर भरोसा नहीं करना चाहिए, कल को ऐसे ही लोग लूटपाट करके घरवालों को मार भी देते हैं।उसका बस चलता तो उस लड़की को तभी बाहर कर देता पर दामिनी जी ने किसी तरह रोक लिया। तनवी बहुत घबरा गई, उसे लगा कि उसकी किस्मत में कोई खुशी ही नहीं है। किसी तरह से थोड़ा सा मां का प्यार मिलना शुरू हुआ था वो भी आज चला जाता। अब तनवी बहुत चुप रहने लगी थी, शौर्य के तो सामने ही नहीं आती थी। थोड़े दिन आगे निकले।  

दामिनी जी अब खुश रहने लगी थी, तनवी उनका बहुत खयाल रखती थी। दामिनी जी को भी अपने से बात करने वाला कोई मिल गया था, अब इतना बड़ा घर उनको काटने को नहीं दौड़ता था। शौर्य को भी अब तन्वी को घर में देखने की थोड़ी आदत हो गई थी, कई बार उसकी नजरें तन्वी से टकराती तो वो खो सा जाता। कितनी मासूमियत और ठहराव था उसकी गहरी आंखों में,पर दूसरे ही पल उसको अपने साथ हुई बेवफाई की याद आ जाती। आखों में उमड़ते प्यार की जगह फिर नफरत ले लेती। 



एक दिन शौर्य काम के सिलसिले में कहीं जा रहा था, सामने से एक ट्रक और उसकी गाड़ी का जबरदस्त एक्सीडेंट हो जाता है। दामिनी जी तो अनजानी आशंका से बेहोश ही हो जाती है, तब तन्वी उन्हें संभालती है और जिस हॉस्पिटल में शौर्य एडमिट था, वहां भी किसी तरह जाती है। शौर्य खतरे से तो बाहर था पर उसके इतनी ज्यादा चोट थी कि तीन चार महीने बिस्तर से नहीं उठ सकता था।

 तब तन्वी उसकी सारी जिम्मेदारी भी अपने सर लेती है। अब शौर्य को छुट्टी मिल जाती है, वो घर आ जाता है, अब तन्वी उसके सारे काम करती है। जब भी शौर्य उसको देखता अपनी सोच पर पछताता। अब वो तन्वी से थोड़ा बहुत बात करने की कोशिश करता। 

कहीं न कहीं शौर्य के मन में तन्वी के लिए प्यार उमड़ने लगा था। दामिनी जी भी शौर्य के इस झुकाव को समझ रही थी पर वो शौर्य के मुंह से सुनना चाहती थी। इसलिए उन्होंने सब कुछ वक्त पर छोड़ दिया था। इधर अपने प्यार और देखभाल से तन्वी ने शौर्य को डॉक्टर के दिए समय से पहले ही ठीक कर दिया, अब शौर्य थोड़ा-थोड़ा चलने लगा था। 

आज शौर्य अपनी खिड़की के पास बैठा था, बाहर बारिश हो रही थी। ये सावन की पहली बारिश थी। उसने खिड़की सी बाहर झांका तो देखा तन्वी बच्चों की तरह बारिश में भीग रही थी। आज की मतलबी दुनिया में वो किसी भी छल कपट से दूर एक मासूम बच्ची लग रही थी।

 शौर्य अपना दिल उसकी निश्चल, भोली अदाओं पर हार चुका था। उसने मन ही मन सोचा कि वो अब तन्वी को अपने मन की बात बतायेगा। वैसे भी प्यार के इज़हार के लिए सावन का महीना और बारिश से अच्छा समय नहीं हो सकता। सावन की पहली बारिश ने शौर्य के मन को फिर से प्यार से सराबोर कर दिया था।

#बरसात

डॉ पारुल अग्रवाल,

नोएडा

 

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