बैरी पिया? – गरिमा जैन

पति :क्या डार्लिंग फिर से मूंग की दाल की खिचड़ी बना ली। तुम्हारे हाथों में तो जादू है, कुछ और भी बना लिया करो। अरे यह पैकेट में तुमने क्या छुपा के रखा है सोफे पर ।जरूर खाने का सामान पैक करा कर लाई हो। पत्नी : हां लाई तो हूं ,खोलकर देखना चाहोगे? पति … Read more

“ख़्वाबों की फ़सल” – ज्योति मिश्रा

“ओहो ! यार तुम समझती क्यूं नहीं । पिछले पांच सालों से देख रहा हूं मैं तुम्हें। तुम्हारा पड़ोसी हूं मैं । तुम्हारी खिड़की मेरी खिड़की के सामने ही खुलती है। मैंने देखा है बेचैनी से तुम्हें रात_रात भर टहलते हुए ।  लाख छुपाओ तुम मैं जानता हूं, रोहित तुम्हारा पति अपनी उस नेहा के … Read more

सबक – अनुपमा

तनु जल्दी जल्दी कॉलेज जाने को तैयार हुई और घर से बाहर निकल गई ,मां पीछे से आवाज ही देती रह गई नाश्ता तो कर लो ,कुछ खा कर जाया करो घर से , पर तनु के तो कानों को जैसे कुछ सुनाई ही नही दिया , सारे दिन फोन पर टिंग टिंग करते रहना … Read more

चलें जड़ों की ओर -सरला मेहता

ननकू सपरिवार बस से उतरकर बापू द्वारा भेजी बैलगाड़ी में बैठा अपने गाँव के बारे में सोच रहा है। गया था तो माँ ने कितना सामान बाँध दिया था अचार, गाय का घी बच्चों के लिए लड्डू और ना जाने क्या क्या। और वह जा रहा है खाली हाथ।  चार वर्ष पूर्व अपने बूढ़े माँ … Read more

  नेग – मधु मिश्रा

-“सुनिये, पहले आप ये सब देख लीजिये.. बड़ी दीदी और छोटी दीदी के लिए ये सिल्क वाली साड़ी है, दोनों जवाई जी के लिये रेमण्ड के सूट पीस और ये रहे दोनों दीदी के बच्चों के मनपसंद कपड़े.. और.. और ये चेन बड़ी दीदी और बड़े जवाई जी के लिये और उनके बच्चों के लिए … Read more

बैरी पिया

सुरजीत के लिए लड़का देखना चालू कर दो  अब तो उसका कॉलेज भी पूरा हो गया है और उसका बेकिंग का काम भी किन्ना सोणा चल रहा है । मंजीत ने अपने पति से जब ये कहा तो मिस्टर कुकरेजा सोच मैं पड़ गए ,इकलौती कुड़ी है सुरजीत उनकी कितने नाजों से पालपोस के बढ़ा … Read more

कोला आजी – पुष्पा पाण्डेय

हमारा घर हवेली के नाम से जाना जाता था। गाँव के रईस घराने में गिनती होती थी। शाम होते ही मेरी दादी हवेली के दूसरे दरवाजे पर पल्ला मारकर अपनी छोटी मचिया लेकर बैठ जाती थी। वहीं बाहर की तरफ ओटा पर एक तरफ कोला आजी बैठती थी। गाँव के सभी लोग बूढ़े-बच्चे उन्हें कोला … Read more

मरदूद….- विनोद सिन्हा “सुदामा”

अरे कहाँ मर गया सुनता क्यूँ नहीं….. मार कर ही छोड़ेगा क्या……? राम प्रसाद जी अपनी खाँसी और हाँफती साँसों पर काबू करने की असफल चेस्टा करते हुए अपने बेटे को पुकारे जा रहे थे… अरे…..मरदूद सुनता क्यों नहीं..निकम्मा…काम का न काज़ का दुशमन अनाज का..दिन भर सिर्फ निठ्ल्ले की तरह इधर उधर घूमता रहता … Read more

विषवृक्ष – रवीन्द्र कान्त त्यागी

छोटे से कस्बे में मेरा आई.आई.टी में उच्च श्रेणी प्राप्त करना कई दिन चर्चा का विषय रहा था. पहले महीने ही एक अंत्तराष्ट्रीय कंपनी में अच्छे पॅकेज की नौकरी लग जाने के बाद पिताजी ने वधु तलाश कार्यक्रम शुरू कर दिया था और ये स्वाभाविक भी था. महानगर की एक पौष कॉलोनी में प्रशासनिक अधिकारी … Read more

ख्वाब,हकीकत – गोविन्द गुप्ता 

बहुत तेज बिजली कड़क रही थी रमन और राम्या अपने रूम में थे दोनो मोवाइल चलाते चलाते सो गये और घुप्प अंधेरा हो गया क्योकि बिजली चली गई, रमन साफ्टवेयर इंजीनियर था और राम्या डॉक्टर दोनो की जिंदगी बहुत खूबसूरत थी ,कोई कमी नही बस कोई बच्चा नही था शादी के दस वर्ष के बाद … Read more

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