मरदूद….- विनोद सिन्हा “सुदामा”

अरे कहाँ मर गया सुनता क्यूँ नहीं….. मार कर ही छोड़ेगा क्या……?

राम प्रसाद जी अपनी खाँसी और हाँफती साँसों पर काबू करने की असफल चेस्टा करते हुए अपने बेटे को पुकारे जा रहे थे…

अरे…..मरदूद सुनता क्यों नहीं..निकम्मा…काम का न काज़ का दुशमन अनाज का..दिन भर सिर्फ निठ्ल्ले की तरह इधर उधर घूमता रहता है..

ओहहहह..ये खाँसी…लगता है आज मेरी जान ले कर ही छोड़ेगी…ऊपर से यह घुटने का दर्द…उफ, किसी दुश्मन को भी यह बीमारी न लगे…

इधर कुछ दिनों से उनकी खाँसी काफी बढ़ गई थी..कभी कभी खाँसते खाँसते दम के साथ साथ फेफड़े भी फूलने लगते थे.. यहाँ तक लगातार खाँसने की वजह से कभी कभार मुह से खून भी आने लगता था..

आज भी उन्हें काफी तकलीफ हो रही थी..


सीना भींचें रामप्रसाद जी बेटे को आवाज दिए जा रहें थे…

अरे नालायक… कहाँ मर गया…

आवाज सुन बगल रसोई से उनकी पत्नी शारदा देवी भागती हुई उनके पास आई…और उनका सीना सहलाने लगी..

थोड़ा पानी पी लिजिए..आराम मिलेगा..कह कर पास रखे लोटे से सारदा देवी उन्हें पानी पिलाने लगी…

राम प्रसाद जी बेटे के बारे में शारदा देवी से कुछ पूछते …

तभी उनका बेटा माधव दौड़ता भागता घर आ गया…

उसकी सूजी आँख और माथे पर चोट के निशान थे…

जिसे माँ ने देख लिया….वो कुछ कहती या पूछती माधव ने माँ को इशारे से चुप कर दिया…

माँ से रहा नहीं गया…. इशारे से पूछा क्या हुआ..चोट कैसी..?
माधव ने इशारे में ही बता दिया कि दवा लेकर जल्दी जल्दी भागने के कारण लड़खड़ाकर गिर गया जिससे हल्की चोट लग गयी..

आ गया……मरदूद

नीच…कहाँ मरने चला गया था……इतनी देर से आवाज दे रहा था तुम्हें.. सुनाई नहीं पड़ती…बहरा हो गया है क्या……….या सिर्फ़ खाना जानता है…कुछ शर्म वर्म है कि नहीं…..बेशर्म..

रामप्रसाद जी लगातार अपने बेटे पर गुस्सा हो रहे थे…माधव शांत भाव से सर झुकाए बाबूजी के उलाहने सुन रहा था..

अरे कुछ कहेगा भी कि यूँ ही गूंगा बहरा बना खड़ा रहेगा….

डागडर से मेरी दवाई लाया …

उसने चुपके से कुर्ते की जेब से दवा की शीशी निकाल आगे बढ़ बाबूजी को दवा पिलाने लगा…

दवा की खुराक अंदर जाते ही राम प्रसाद जी की खाँसी थोड़ी कम हुई…

माँ को सीना सहलाने कह जेब से 

दूसरी  शीशी निकाल दर्द निवारण तेल से रामप्रसाद जी के पैरों की मालीश करने लगा…

राम प्रसाद जी बड़बड़ाए जा रहे थे….थोड़ी देर और करता तो मर जाता..

कितनी देर लगा दी…..

निखट्टू..कोई काम समय से नही करता….

परंतु माधव अपने काम में लगा रहा…उसपर बाबू जी के किसी भी बातों का कोई असर नही हो रहा था… वह चुप चाप अपने काम में लगा रहा…..और पैर की मालीश करता रहा…

जाने कौन सा पाप किया था कि ईश्वर ने ऐसा बेकार …और नाकारा बेटा दिया मुझे…  गोबरगणेश, मिट्टी का माधो…

जबकि माधव की नि:स्वार्थ सेवा देख उसकी माँ..की आँखें हमेशा नम रहती थी…

मन ही मन सोचती इतना करता है फिर भी खारी खोटी सुनता रहता है…

अब दवा और तेल मालीश से राम प्रसाद जी को काफी आराम था.. माधव को पैर न छोड़ता देख उन्होंने ने कहा…

छोड़ मेरे पैरों को…दबाता है तो पैरों में और दर्द होता है… जा….बाहर मर……किसी काम के लायक नहीं है….जा हट सामने से…

माँ बेटे को देख रही थी….जिसके चेहरे पर बाबूजी को आराम मिला देख संतोष जनक भाव साफ झलक रहे थे..



परंतु माँ का मन जोरों से रोने को कर रहा था बेटे के प्रति पति का व्यवहार से मन दुखता था…

शारदा देवी का मन नहीं माना तो बोल ही उठी…

अजी हर समय इतना क्यूँ बोलते रहते हो इसे…इससे इतनी नफरत क्यूँ है आपको..अपना ही बेटा है…कुछ करता धरता न सही लेकिन दिन रात आपकी सेवा में तो लगा रहता है ..दिन भर खेत खलिहान में रहकर गाय-बैलों की देख-भाल करता है…थका हारा होने पर भी रात रात भर जागकर आपके पाँव दबाता है….आपकी सेवा करता है…एक झपकी तक नहीं लेता एक शब्द नही कहता….फिर भी आप उसको…जाने क्या क्या कहते रहते हैं…

अब तो घर से बाहर भी लोग उसपर तरह-तरह की फब्तियाँ कसने लगे हैं….पर सीधा – साधा सरल स्वभाव का है इसलिए.किसी से कुछ कहे बिना सिर्फ सबकी सुनता रहता है…

और आप हैं कि…..

रामप्रसाद जी का सव्र जवाब दे गया…..

जो कहते हैं कहने दो बाहर वालों को…

मैं जानता हूँ कैसा है मेरा माधव….

तुम नहीं समझोगी….मैं चाहता हूँ….मेरा यह छोटा बेटा सदा इसी तरह निकम्मा और निठल्ला रहे.. न कि अपने दोनों बड़े भाईयों की तरह होनहार और पढ़ा लिखा..जो शहर जा बसें…जिनके पास हमें देखने तक की फुर्सत नहीं…शायद दोनों ने मिलकर यह विचार कर रखा हो..

माँ के मरने पर तुम चले जाना और पिता के मरने पर मैं…



तुम नहीं समझोगी माधव की माँ…मैं क्यूँ हर समय इसे इस तरह बिगड़ता रहता हूँ…क्यूँ हर घड़ी बात बात पर जलील करता हूँ….

तुम नहीं समझोगी कितना दर्द होता है मुझे जब उसे कुछ बुरा भला कहता हूँ..जितना उसे सामने कहता हूँ उससे कहीं ज्यादा उसके पीछे उसके लिए अंदर अंदर रोता हूँ…

तुम नहीं समझोगी कितना प्यार करता हूँ मैं मेरे निकम्मे बेटे से….

मेरा यह निकम्मा और नाकारा बेटा ही मेरे लिए हीरा बेटा है…

जानता हूँ भोला है सीधा है..कोई भी उसे बहला फुसला सकता है…इसलिए…नहीं चाहता मेरी नजरों से ज्यादा दूर रहे..डरता हूँ कहीं दुनिया को देख यह भी उन जैसा न हो जाए इसलिए हर समय डाँटता रहता हूँ उसे..

मुझे नहीं चाहिए…होनहार और पढ़ा लिखा…मेरे लिए मेरा मिट्टी का माधव ही मेरा कृष्ण भी है और श्रवण भी…

अरे ऐसे बेटे पर मैं अपनी सौ जिंदगी कुर्बान कर दूँ….

बस मेरा सच मेरे बेटे को नहीं पता चले..कहकर फूट फूट कर रोने लगे….सारदा देवी भी सच जान पति के सीने लग रो रही थी….

माधव जो बाहर दरवाजे पर खड़ा सब सुन रहा था…अपने बहते आँसूओं को पोछता तबेले की ओर बढ गया….

आज वो बाबूजी और पने प्रति उनके रूखे व्यवहार को जान भी गया था और  समझ भी गया…और उनकी नज़रों में अपना महत्व भी…पर सब सच जान भी बाबूजी की नजरों में मिट्टी का माधव ही बना रहना चाहता…निकम्मा और नाकारा बेटा….”.मरदूद ” ….यही नाम सही था उसके लिए “मरदूद”…!!

विनोद सिन्हा “सुदामा”

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