“ख़्वाबों की फ़सल” – ज्योति मिश्रा

“ओहो ! यार तुम समझती क्यूं नहीं । पिछले पांच सालों से देख रहा हूं मैं तुम्हें। तुम्हारा पड़ोसी हूं मैं । तुम्हारी खिड़की मेरी खिड़की के सामने ही खुलती है। मैंने देखा है बेचैनी से तुम्हें रात_रात भर टहलते हुए ।  लाख छुपाओ तुम मैं जानता हूं, रोहित तुम्हारा पति अपनी उस नेहा के साथ दो_दो चार_चार दिन के लिए शहर से गायब रहता है और आए दिन इसको लेकर तुम पति पत्नी में झगड़े होते हैं। बुरा मत मानना शालिनी सच तो ये है कि तुम दोनों बस नाम के लिए पति पत्नी हो । तुम्हारे बीच प्यार , मुहब्बत जैसी कोई चीज़ नहीं ।   मैं ये भी जानता हूं, तुम ये रिश्ता सिर्फ़ दुनिया के लिए और अपने बच्चों के लिए ढो रही हो ।

बाहर आओ यार । दुनिया देखो । मैं ये नहीं कहता छोड़ दो रोहित को … अपने बच्चों को…  सब के साथ तुम जैसी हो, वैसी रहो , लेकिन अपने लिए भी जियो। तुम इतनी खूबसूरत हो, पढ़ी_लिखी हो, यंग हो… और ज़िंदगी का कोई सुख नहीं तुम्हें… ये तुम्हारे पति के साथ घूमने फिरने मौज मस्ती के दिन थे और तुम  यूं ही  रो बिलख कर अवसाद में अपनी जिंदगी के खूबसूरत पल गवां रही हो।

मैं जानता हूं , तुम भी मुझको पसंद करती हो। जब भी मैंने तुम्हारी तरफ़ देखा है , तुम्हारी डबडबाई आंखों में भी मुस्कुराहट तैर गई है । फोन पर कितने प्यार से बात करती हो तुम मुझसे ।  लेकिन जब भी तुमसे घर से बाहर आकर मिलने को कहता हूं , साफ़ इंकार कर देती हो तुम । पता नहीं  क्यों  ? ….रोहित जैसे आदमी के लिए भी तुम सती सावित्री नारी बनी रहना चाहती , जिसने तुम्हारे जज़्बात की कद्र नहीं की, तुमसे धोखा किया , तुम्हारे प्रति अपनी जिम्मेदारियों को , अपने पति धर्म को भूल गया, उसके लिए तुम  अपनी जिंदगी क्यूं नहीं जी रही !     देखो शालिनी ! मैं बेशक तुमसे उम्र में छोटा हूं , लेकिन नासमझ नहीं। मैंने भी कभी किसी से प्यार किया था ।उसके लिए दिन रात एक कर दिए । लेकिन उस बेवफ़ा ने जब से मेरा दिल तोड़ा है , मैं अब सिर्फ़ वर्तमान को जीता हूं । शादी, ब्याह प्यार , मुहोब्बत में ज्यादा यकीन नहीं रह गया मेरा। किसी के साथ जीने मरने की अब मैं कसमें नहीं खाता।


तुम उस दिन पूछ रही थीं ना , पूजा , प्रिया , इशिका के बारे में । हां, ये सब मेरी क्लोज फ्रेंड्स रही हैं । मैने इनके साथ अच्छा समय बिताया है । अब वो किसी और के साथ खुश हैं, लेकिन मैं या वो अब भी जब मिलते हैं तो एक दूसरे से अलग होने की शिकायत नहीं करते , साथ छूट जाने का मातम नहीं मनाते । हम जब साथ थे, हमने एक दूसरे के साथ एक एक पल को भरपूर जिया .. हमारे लिए इतना ही बहुत है।

मैं तुम्हें भी जीते हुए देखना चाहता हूं। तुमने कभी गौर से आईने में खुद को देखा है, कुछ नहीं गया है तुम्हारा, तुम्हारी आंखें , तुम्हारे बाल .. तुम्हारे होठ… उफ़ .. । काश कि…. खैर मैं जबरदस्ती नहीं करूंगा …। लेकिन मैं चाहता हूं , तुम हंसो, बोलो… और… और अवसाद से बाहर निकलो। अगर तुम कहो तो कल मैं ऑफिस से छुट्टी ले लूंगा ।   हम साथ_साथ फ़िल्म देखेंगे , रेस्टोरेंट चलेंगे और फ़िर मैं तुम्हें अपना फॉर्म हाउस दिखाने ले चलूंगा । मुझ पर यकीन करो , मैं तुम्हारे होठों पर खोई हुई मुस्कान वापस ले आऊंगा । तुम्हें इतनी खुशी दूंगा कि तुम्हारे सारे दर्द, सारे  अवसाद बह जाएंगे। खिल उठोगी तुम ताज़ा फूल की तरह… महक जाएगा तुम्हारा तन बदन संदल की तरह…। 

देखो मेरी बातें सुनकर ही तुम्हारे चेहरे पर हरियाली आ गई है । मुझे तुम्हारी  आंखों की क्यारी में ख़्वाबों के छोटे-छोटे  पौधे नज़र आने लगे हैं … लहलहाने दो इन्हें ..। इससे पहले की कड़वी हकीकत की बाढ़ इन्हें डुबा दे , हम काट लें  अपने ख़्वाबों की फ़सल ..।”

 जड़ हो गई थी शालिनी !

एक मुद्दत बाद  इस तरह की रोमांटिक बातें सुनीं थी.. उसने । रोम रोम सिहर उठा उसका..। उसने महसूस किया सर्दी के मौसम में भी हाथ में पकड़ा मोबाइल फोन पसीने से भीग गया है । उसने देखा विडियो कॉल पर अनिकेत हसरत भरी निगाहों से उसे देख रहा है । यंग और हैंडसम अनिकेत दिखने में ना केवल स्मार्ट  है, बल्कि उसकी आवाज़ में बला का जादू है । उससे बात कर अच्छा लगता है शालिनी को । कम से कम अच्छा, बुरा जैसा भी है वो उसे स्वीकार करने का साहस है उसे। रोहित की तरह झूठ तो नहीं बोलता। होंगी इसकी ढेरो गर्ल फ्रेंड्स पर इसने किसी से सात जन्मों का वादा तो नहीं किया। घर पर बीबी के नाम पर एक नौकरानी तो नहीं रख छोड़ी  , जो उसकी , उसके मां बाप की, बच्चो की रात दिन देख भाल करे, बनाए खिलाए, घर सम्हाले और वो अपनी जिम्मेदारियों से अलग होकर दूसरी औरतों के साथ मौज मस्ती करे। 

इसके मन में आया वो अनिकेत को हां कर दे… । अच्छा भला लड़का है.. वो भी घूमेगी , फिरेगी.. आखिर उसके भी कुछ अरमान हैं । जब रोहित को उसकी परवाह नहीं तो वो क्यूं… ?

उसने अनिकेत को देखा .. भोला भाला मासूम सा लग रहा है… लेकिन इसकी आंखों में भी कुछ सूना पन है । मस्ती भरी लाइफ जीता है, कोई बंधन इसे नहीं… फिर कभी कभी ये क्यूं इमोशनल नज़र आता है। हताश , परेशान..खोया खोया सा ..!

शालिनी पूछ बैठी… मेरी ज़िंदगी का दुख तो तुम जानते हो पर अनिकेत तुम तो खुश हो ना अपनी लाइफ से… …? अच्छी खासी नौकरी है… सैलरी  है, घर गाड़ी , गर्लफ्रेंड… फिर कभी कभी इमोशनल क्यूं हो जाते हो …? तुम्हारी आंखों में सूनापन क्यों है..?


अचानक पूछे गए इस सवाल से अनिकेत के मुंह से सच्चाई निकल पड़ी… कैसी खुशी शालिनी… हर रोज़ एक नया कंधा तलाशता हूं… अपना दर्द भूलने को… मौज मस्ती करता हूं… फिर खुद को ठगा हुआ महसूस करता हूं । नई नई लड़िकयों के साथ  वक्त गुजारा जा सकता है लेकिन भावनाओं का जुडाव नहीं होता…। जिसके साथ कल था, आज उसे कॉल किया तो वो किसी और के साथ थी… कल कितना खूबसूरत वक्त लग रहा था उसके साथ लेकिन आज मैं अकेला हूं। कभी बीमार पड़ जाता हूं , या किसी मुसीबत में घिर जाता हूं , उस वक्त कोई नहीं मिलता , जिससे मैं अपनी तकलीफ़ बांटू… जो मुझे एक कप चाय बनाकर पिलाए, …।

  मेरे बालों पर हाथ फेरे… जो ये कहे मत घबराओ मैं हूं ना तुम्हारे साथ….! इसी वजह से डिप्रेशन में आ जाता हूं… और फ़िर एक नई दोस्त की तलाश में निकल जाता हूं…. ।

शालिनी के दिल को जैसे तसल्ली मिली ।

‘ओह ! सही कहा अनिकेत ! इस तरह के टेंपररी रिश्ते भी डिप्रेशन ही देते हैं । एक डिप्रेशन से उबरने के लिए दूसरे डिप्रेशन को आमंत्रण देना कौन सी समझ दारी है ? अच्छा है कि हमलोग कभी कभार ऐसे ही अपने दुख सुख फोन पर शेयर कर लिया करें । मैं किसी के ज्यादा नज़दीक जाकर  ठगे जाने के एहसास के वापस साथ लौटना नहीं चाहती । शुक्रिया मुझे हक़ीक़त बताने के लिए.. मुझे जगाने के लिए… ख़्वाबों की फ़सल केवल नींदों में ही काटी जा सकती है, जागते हुए नहीं।

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