तिरस्कार – चंद्रकान्ता वर्मा

मैंनें सहेली के घर बुजुर्गों का जो तिरस्कार देखा निंदनीय है।एक बार मैंनें सहेली को फोन किया — हैलो कविता मैं मीरा बोल रही हूं। हमारा तेरे शहर लखनऊ में ही तबादला हो गया है। कविता… कितनें अरसे बाद तेरी आवाज सुनीं है। आओ मिलनें को बडा मन है। ठीक है आती हूं तुम अपनां … Read more

छालू नहीं शालू – लतिका श्रीवास्तव 

….सहमी सहमी सी थी वो जब मैंने उसे बुलाया तो बहुत झिझक रही थी काफ़ी कुरेदने के बाद जब उसने मुंह खोला तो सारे बच्चे ठहाका लगा कर हंस पड़े ….वो फिर से सहम कर अपने में सिमट गई थी….. शालू नाम था उसका …बहुत ही शालीन पर सहमी सी वो लड़की पूरी क्लास के … Read more

अपनों का तिरस्कार.. दूसरों का सम्मान – संगीता त्रिपाठी 

  “आंटी जी आप कैसी है, तबियत कैसी है आपकी “सुरभि यशोदा जी के पैर छूते हुये बोली        “सदा सुहागन रहो बेटा, सब ठीक है, तुम हमेशा हँसती रहती हो, बड़ा अच्छा लगता है तुम्हे देख कर,बड़ो का भी कितना ध्यान रखती हो, तुम्हारी सास तो बहुत भाग्यशाली है जो उन्हें इतनी प्यारी बहू मिली है, … Read more

समय का पहिया – अनु अग्रवाल

“नीलू दीदी आ रही हैं आज….सारे शॉपिंग बैग्स अलमारी में छुपा देना….नए कपड़े देख लिए तो हूबहू अपनी बेटी के लिए भी बिल्कुल वैसा ही बना देंगी…अब इतनी हैसियत तो है नहीं कि खरीद सकें इतने महँगे कपड़े… – कामिनी ने अपनी दोनों बेटियों से अपनी चचेरी ननद के लिए कहा। नीलू दीदी की आर्थिक … Read more

काश – डा. मधु आंधीवाल

नाव्या तुम बहुत भाग्यशाली हो तुमको इतनी अच्छी ससुराल और पति मिलें हैं। नाव्या की सारी सहेलियां आज करीब 20 साल बाद आपस में बात करके एक जगह  दो दिन के लिये एकत्रित हुई थी । नाव्या बहुत समझ दार थी क्योंकि वह एक गरीब परिवार से थी । उसको बस ईश्वर ने सुन्दरता देने … Read more

जब समधी ने अपने समधी का किया तिरस्कार – सुषमा यादव

इनके नहीं रहने पर मैंने अपने श्वसुर जी जिनको मैं, बाबू, बोलती थी,उनको अपने साथ अपने कार्यस्थल शहर ले चलने की तैयारी करने लगी, क्यों कि अब घर में कोई नहीं था, मैं अपने पिता जी से मिलने अपने मायके गई,, वो भी अकेले ही थे,भाई भाभी शहर में थे, कुछ कारण वश उनके साथ … Read more

‘ सबक ‘ – विभा गुप्ता

‘ सबक ‘ – विभा गुप्ता      ” बेबी, फार्म हाउस की पार्टी तो तुम्हारे लिए है।तुम नहीं आओगी तो मैं पार्टी कैंसिल कर दूँगा।” जब आध्या ने पार्टी में आने के लिए मना कर दिया तब मयंक ने उसके गले में अपनी बाँहें डालते हुए कहा।      ” मयंक, तुम समझते क्यों॔ नहीं, मेरे पापा अकेले … Read more

मजबूरी या तिरस्कार – आरती मिश्रा

शर्मा जी सुबह सुबह स्वच्छ और ताजी हवाखोरी करने रोजाना निकल जाया करते थे। अब वक्त बेवक्त मौसम की मार तो कोई जानता नहीं तो शर्मा जी भला कैसे जानते। ऐसे ही बेवक्त मौसम की मार से ही धोखा हुआ हो नहीं तो मजाल है कि हवाखोरी किसी भी वजह से टल जाए । एक … Read more

  तिरस्कार का कलंक मिट गया – विभा गुप्ता

  ” सौदा, कहाँ मर गई, यहाँ सारा काम पड़ा है और महारानी आराम फरमा रहीं हैं।” अपनी चाची की आवाज सुनकर सौदा बोली, ” आई चाची ” और हाथ में लिए कपड़ों को बाल्टी में ही छोड़ कर वह रसोईघर की ओर चली गई।              सालों से वह चाची के मधुर वचनों को सुनने की सौदा … Read more

तिरस्कार का प्रतिकार – तृप्ति शर्मा

पापा तो न करने के लिए अड़ ही गये थे इस रिश्ते के लिए ।  उन्हें नहीं समझ आ रहा था ये रिश्ता पर माँ ने बहुत समझाया ,इतने रईस घर से उनकी लाडली निभा के लिए रिश्ता आया तो घर के हालात देखते समझते हुए माँ तो अडिग ही रहीं कि शादी होगी तो … Read more

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