छालू नहीं शालू – लतिका श्रीवास्तव 

….सहमी सहमी सी थी वो जब मैंने उसे बुलाया तो बहुत झिझक रही थी काफ़ी कुरेदने के बाद जब उसने मुंह खोला तो सारे बच्चे ठहाका लगा कर हंस पड़े ….वो फिर से सहम कर अपने में सिमट गई थी…..

शालू नाम था उसका …बहुत ही शालीन पर सहमी सी वो लड़की पूरी क्लास के लिए हंसी मज़ाक की वस्तु थी क्योंकि वो तुतला कर बोलती थी…लड़के लड़कियां  जानबूझ कर उससे नाम पूछते थे …”शालू बताओ तो तुम्हारा क्या नाम है  “अबोध अंजान सी वो जैसे ही “छालू” बोलती जोर का ठहाका गूंज उठता…कोई भी उसे शालू नहीं बोलता था कोई छालू तो कोई तालू ….धीरे से उसकी समझ में आ गया कि सभी बच्चे उसके तुतला कर बोलने की हंसी उड़ाते है ….उसके पास कोई नहीं बैठना चाहता था….तोतली जो थी वो…तब से जैसे वो गूंगी भी हो गई थी।

 

क्लास में सबसे पीछे की डेस्क पर पूरे दिन खामोशी से बैठी वो पढ़ती रहती थी….किसी से बात नहीं करती थी कोई उससे बात नहीं करता था….एक दिन मैं उनकी क्लास में पहुंच गई …सारे बच्चे उसे घेर कर चिढ़ा रहे थे हंस रहे थे …छालु आद तुम त्या था के आई हो….! तावल थाई कि लोती…!कोई कह रहा था तुम्हाले घल में थाना तौन्न बनाता है ..!बिचारी कोई जवाब नहीं दे पा रही थी सिर नीचा किए चुपचाप बैठी थी …कुछ भी बोलती तो सबको हंसने का सुनहरा मौका मिल जाता ….किसी से शिकायत भी किन शब्दो में करती !! हास्य का पात्र बनती!!मैने जोर से डांटा क्या हो रहा है क्यों परेशान कर रहे हो उसे!!मैने शालू को अपने पास बुलाया तो वो सहमी सी खड़ी हो गई ये सब तुम्हे परेशान कर रहे थे ना!!कई बार प्यार से पूछने पर उसने धीरे से आंख उठाकर मेरी ओर देखा तो उन सहमी सी लज्जित नज़रों में झिलमिलाते आंसू मुझे साफ नजर आ गए…

आओ बेटा तुम मेरे साथ आओ उसे अपने साथ लेकर क्लास से बाहर आ गईं थी मैं ….धीरे धीरे अटक अटक कर जो कहानी उसने बयान की तब समझ में आया कि उसके माता पिता का निधन हो चुका है वो यहां अपने मामा मामी के घर पर रह कर पढ़ रही है…माता पिता की लाडली शालू उनके दुर्घटना में आकस्मिक निधन के बाद सबकी नजरों में ही नहीं दिलों में भी मनहूस के रूप में स्थापित हो चुकी थी मामा मामी मजबूरी में उसे अपने साथ ले तो आए थे पर पूरे घर का काम करने वाली नौकरानी बना के रखे थे…हर बात पे ताना बात बात पर तिरस्कार उसकी जिंदगी का अभिन्न अंग बन चुके थे…ना ठीक से खाना ना आराम ना तसल्ली के दो बोल ना ममता की छांव…!किसी को उसकी कोई परवाह नहीं थी …प्यार और हमदर्दी के दो शब्दों के लिए वो तरस जाती थी…बोलना भूल ही गई थी ….शालू से छालू  बन गई थी…!



 

सच है निरंतर तिरस्कार और उपेक्षा हरे भरे पौधे को भी सुखा देती है फिर ये तो जीती जागती बच्ची थी।

 

मैने उसकी नोट बुक्स देखीं उसकी लिखावट बहुत अच्छी थी मैंने गौर किया पढ़ाई लिखाई में बहुत कुछ कर पाने की प्रतिभा उसके अंदर थी लेकिन तिरस्कार और उपहास उसकी उभरती हुई प्रतिभा की कब्र खोद रहे थे …घुटता हुआ आत्मविश्वास उसकी आवाज को हकलाहट और तुतलाहट में बदलता जा रहा था…घर पर अपनो से मिल रही उपेक्षा ने उसके समूचे व्यक्तित्व पर दीमक उगा दिए थे..!स्कूल में भी सहपाठी बच्चों के उपहास का केंद्र बिंदु बन चुकी शालू स्वयं में ही सिमटती जा रही थी..!

 

मैने क्लास में एक कविता पाठ की प्रतिस्पर्धा के लिए सभी बच्चों को  हिंदी की किताब की एक कविता और इंग्लिश बुक की एक पोयम याद करने को दी और कहा कल सब लोग सुनाएंगे ….याद कर लोगी ना!!मैने शालू से स्नेह से पूछा तो उसने उत्साह से कहा….जी जरूर याद कर लूंगी …इन दो तीन दिनों में मेरे साथ बात कर करके वो थोड़ी सहज हो गई थी…..मैने ध्यान दिया इस बार वो बोलते समय तुतलायी नहीं…!

 

दूसरे दिन क्लास में सभी बच्चे हिंदी की कविता तो याद कर आए थे और सुनाए भी पर इंग्लिश पोयम पर केवल एक ही हाथ उठा वो था शालू का…मैने उसके हिंदी कविता पाठ पर खूब तालियां बजवाई …वो खुश हुई….उत्साह से उसने इंग्लिश पोयम भी पूरी सुना दी….अबकी बार सभी बच्चों ने मेरे बिना कहे तालियां बजाईं ….सुखद आश्चर्य किसी भी कविता को सुनाते समय शालू किंचित भी नहीं तुतलाई..!!

 

मैने सभी बच्चों के सामने शालू को बुलाया और दोनों ही कविताओं की प्रथम प्राइज जब उसे दी तो पूरी क्लास तालियों से गूंज रही थी ….उन्हीं तालियों की गूंज के मध्य मैने  शालू से कहा आज तुम अपना नाम बताओ और माइक उसके आगे कर दिया …एक पल लगा उसे सोचने में कि ये प्रश्न क्यों!!फिर माइक पर उसकी स्पष्ट आत्मविश्वास से भरी आवाज सुनाई पड़ी…मेरा नाम शालू है..!!

 

तालियां बजती रहीं…आज छालू फिर से शालू बन गई थी।

#तिरस्कार 

लतिका श्रीवास्तव 

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