अपनों का तिरस्कार.. दूसरों का सम्मान – संगीता त्रिपाठी 

  “आंटी जी आप कैसी है, तबियत कैसी है आपकी “सुरभि यशोदा जी के पैर छूते हुये बोली

       “सदा सुहागन रहो बेटा, सब ठीक है, तुम हमेशा हँसती रहती हो, बड़ा अच्छा लगता है तुम्हे देख कर,बड़ो का भी कितना ध्यान रखती हो, तुम्हारी सास तो बहुत भाग्यशाली है जो उन्हें इतनी प्यारी बहू मिली है, एक हमारी है, दिनभर में उनको मेरे लिये समय ही नहीं मिलता, कुछ बोलो तो चुप्पी साध लेती है “यशोदा जी ने बहू निधि को सुनाते हुये कहा।

       सुरभि ओर निधि सहेलियां है, दोनों के पति एक ही ऑफिस में काम करते है ओर अच्छे दोस्त भी है इसलिये पत्नियों में भी अच्छी दोस्ती हो गई।सुरभि जहाँ चंचल है वही निधि गंभीर है। सुरभि दिखावे की मुरीद है, घर में उसका व्यवहार अपनी सास के प्रति अच्छा नहीं था पर बाहर दूसरी उम्रदराज महिलाओं से ऐसे व्यवहार करती, सबको लगता वो खूबसूरत व्यवहार की महिला है। आज भी जब वो निधि से मिलने आई तो पहले उसकी सास से मिलने गई।

         सुरभि के जाने के बाद यशोदा जी बड़बड़ करती रही “कितनी अच्छी लड़की है, भगवान ने मुझे ऐसी बहू क्यों ना दी “।

       “अरे दादी, आपको नहीं पता, अंशुल तो बता रहा था उसकी मम्मी उसे बहुत डांटती है, उसे ही नहीं बल्कि उसकी दादी के ऊपर भी चिल्लाती है “रोहन ने अपनी दादी को समझाना चाहा।

   “आ गया मम्मी का चमचा, कभी दूसरों की भी तारीफ कर लिया कर “यशोदा जी ने पोते को डांट पिलाई।



           कुछ दिन बाद सुरभि ने निधि को अपने घर खाने पर बुलाया,बेटे -बहू के साथ यशोदा जी भी गई थी।यशोदा जी सुरभि की सासु माँ वन्दना जी के पास गप्पे मार रही थी, सुरभि की बहुत तारीफ की तो वन्दना जी ने कोई जवाब नहीं दिया। यशोदा जी को कमरे में छोड़ रसोई में खाने की व्यवस्था देखने गई, पीछे यशोदा जी भी निकल पड़ी, वन्दना जी को देख सुरभि भड़क गई “अब क्या करने आई है, मैंने रोटियां बना ली तो किचन में क्यों आई “।

     “बहू सब्जियां तो मैंने बना ही दी थी, आटा भी गूँध दिया था, रोटी गर्म देने की बात थी तो मैंने सेंकी नहीं “वन्दना जी ने धीमे से कहा।

       “ठीक है, सब्जी बना कर कोई अहसान कर दी क्या, “सुरभि की बातें वंदना जी के पीछे रसोई के बाहर खड़ी यशोदा जी सुन रही थी। उनको हैरानी हो रही थी जो लड़की सबसे इतना मीठा बोलती वो अपनी सास का इतना अपमान कर रही,। निधि ने तो उनसे कभी इस तरह से बात नहीं किया जबकि वे हमेशा निधि का तिरस्कार करती रही। रसोई में भी निधि की कोई मदद नहीं करती,सुरभि की असिलियत सामने देख अब यशोदा जी को निधि की अच्छाइयाँ दिखने लगी। ठीक है निधि उनके पास बैठती नहीं, बात कम करती है पर हारी -बीमारी में उनकी सेवा तो अच्छे से करती है, सुरभि की तरह तिरस्कार तो नहीं करती।

       “अरे आंटी आप यहाँ “सुरभि की आवाज सुनते ही यशोदा जी वर्त्तमान में लौट आई।”हाँ बेटे पानी लेने आई थी “कह बैठक में चली गई। खाने की टेबल पर सुरभि बढ़ -बढ़ कर सबको खाना परोस रही थी, यशोदा जी को आग्रह करके खिला रही थी जबकि वन्दना जी सर झुकाये खाना खा रही थी। यशोदा जी को यह देख कर बहुत खराब लगा।चलते समय सुरभि से बोली “धन्यवाद सुरभि मेरी ऑंखें खोलने का “

         “मै समझी नहीं आंटी “सुरभि इतराते हुये बोली, उसे लगा अभी आंटी उसकी तारीफ में बोलेंगी।



“बेटे अपनों का तिरस्कार करके दूसरों को खुश रखने से तुम्हे कुछ नहीं मिलने वाला, जो तुम आज अपने सास के संग व्यवहार कर रही हो कल तुम्हे भी वही मिलेगा जो आज बो रही हो, घर के बड़ो का तिरस्कार नहीं उन्हें प्यार ओर सम्मान देना चाहिये,सोचो अगर तुम्हारी भाभी भी इसी तरह तुम्हारी माँ का तिरस्कार करें तो तुम्हे कैसा लगेगा…,मेरी निधि तुम्हारे जैसी नहीं है, ईश्वर का लाख -लाख शुक्रिया, तुम्हारी सास नहीं मै भाग्यशाली हूँ क्योंकि निधि बोलती जरूर कम पर आज तक मेरी किसी बात का जवाब नहीं दी, ना ही मेरा तिरस्कार करी, आज सत्य दिख गया, जो चमकता है वो सोना नहीं होता, ये सुना था पर आज देख भी लिया।निधि का हाथ पकड़ वो घर के लिये चल पड़ी, पीछे सुरभि शर्मिदा सी खड़ी थी। रास्ते में यशोदा जी ने निधि से माफ़ी मांगी तो निधि ने कहा “माँ, माफ़ी मांग कर मुझे शर्मिंदा ना करें, एक माँ अपनी बेटी को डांटने का पूरा अधिकार रखती है, मै भी तो आपकी बेटी ओर आप मेरी माँ है “।

       उधर वन्दना जी सोने की तैयारी कर रही थी तभी सर झुकाये सुरभि वहाँ आई “माँ मुझे माफ कर दो, मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई, सच है दुआ तो घर के बड़ों को सम्मान देने से मिलता है ना कि तिरस्कार करने से… अब आपको मुझसे कोई शिकायत नहीं मिलेगी,”वंदना जी ने सुरभि को गले लगा लिया “सुबह का भुला अगर शाम को घर आ जाता तो उसे भुला नहीं कहते”। दोनों गले लग हँस पड़े। सुरभि का पति अंकित ओर बेटा अंशुल भी खुल कर हँस पड़े।

 

      दोस्तों अक्सर कुछ लोग अपने घर के बुजुर्गो की अवहेलना कर बाहर तारीफ पाने के लिये दूसरे घर के बड़ो का इतना सम्मान करेंगे, आपको लगेगा नहीं की ये अपने घर के बुजुर्गो का तिरस्कार कर रहे। उनको अपने घर के बुजुर्ग में ढेरों कमियाँ दिखती वही दूसरों में ढेरों गुण दिखते है, सुधार घर से करें, हो सकता आपके बड़े किसी वजह से चिड़चिड़े हो गये हो, पास बैठ उनकी समस्या जाने की कोशिश करें, उनको समय दे, आखिर वे आपके अपने है, उनको खुश रखना आपकी नैतिक जिम्मेदारी है।

 

                       —संगीता त्रिपाठी 

#तिरस्कार 

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