साध्वी – डॉ. पारुल अग्रवाल : Moral stories in hindi

आज सब जगह सानिया की ही चर्चा थी। सानिया की पुस्तक साध्वी साहित्य अकादमी पुरुस्कार के लिए चयन की गई थी। आज उसके पाँव ज़मी पर रहे नहीं पड़ रहे थे। बहुत संघर्ष के बाद उसकी ज़िंदगी में ये पल आया था। आज छोटे से कस्बे की लड़की ने साहित्य के क्षेत्र में अपनी एक अलग ही पहचान बना ली थी। आज सानिया की आंखों से नींद पूरी तरह गायब थी। 

वो बहुत खुश तो थी पर मन ही मन किसी के साथ अपनी इतनी बड़ी खुशी को सांझा ना कर पाने की टीस भी थी। आज उसे बीते दिन का एक एक पल और संघर्ष याद आ रहा था। वो अभी कॉलेज के आखिरी साल में ही थी और हॉस्टल में रहकर पढ़ाई कर रही थी। परीक्षाएं सर पर थी और वो रात दिन एक करके पढ़ाई में लगी थी। 

परीक्षा में एक दिन बाक़ी था कि तभी घर से फोन आता है कि उसके पापा की तबियत खराब है और वो उसको बहुत याद कर रहे हैं।वो तुरंत घर के लिए निकलती है। वहाँ जाकर देखती है कि पापा के पास ज़िंदगी की साँसे बहुत कम बची थी। असल में उसके पापा कैंसर जैसी भयावह बीमारी की आखिरी स्टेज पर थे। उनके पास मुश्किल से पंद्रह दिन का ही समय था। जब वो पिछली बार घर आई थी तब पापा उसको बहुत कमजोर और थके हुए लग रहे थे।

उसने पूछा भी था पर उन्होंने काम की अधिकता का हवाला दे दिया था। पापा चाहते थे कि सानिया बस अपनी पढ़ाई पूरी करके अपने पैरों पर खड़ी हो जाए, वो उसको कोई तनाव नहीं देना चाहते थे। वैसे भी जहाँ उनका अच्छा खासा व्यापार घाटे में जा रहा था वहीं दूसरी तरफ दोनों बेटे जो कि शादीशुदा थे और सानिया से बड़े थे

अपना हिस्सा मांगने में लगे थे। सानिया की माँ भी जब वो ग्यारहवीं कक्षा में थी तब एक दुर्घटना में चल बसी थी। सानिया पढ़ने में होशियार थी माँ के चले जाने के बाद घर के हालातों को देखते हुए उसके पापा ने उसे इन सबसे दूर रखने के लिए शहर के हॉस्टल में पढ़ने भेज दिया। तब उनको भी नहीं पता था कि वो घर की परेशानियों से झूझते हुए कब जानलेवा बीमारी की चपेट में आ जायेंगे। 

जब उनकी तबियत ज्यादा बिगड़ी तब डॉक्टर को दिखाने पर और अपने सभी टेस्ट करवाने पर उनको इस बीमारी का पता चला। पता चलने पर भी उनको ये भरोसा था कि अभी वो फिर भी दो तीन साल तो खीच ही लेंगे और तब तक सानिया भी अपने पैरों पर खड़ी हो जायेगी। उसके तुरंत बाद वो उसके हाथ पीले करके अपनी ज़िम्मेदारी निभा कर अपनी अंतिम यात्रा पर प्रस्थान कर जायेंगे।

पर कहते हैं ना कि भविष्य की गर्त में क्या छुपा है ये हम नहीं जानते। ऊपरवाले ने हमारे लिए कुछ और ही योजना बनाई होती हैं। सानिया के पापा का कैंसर पिछले तीन महीनों में ही इतनी तेज़ी से सारे शरीर में फैल गया कि उनके पास डॉक्टर के अनुसार सिर्फ पंद्रह दिन का समय रह गया था।

ऐसे में अपने बेटों का व्यवहार देखते हुए उन्हें सानिया की बहुत चिंता थी। तब उनके बचपन के मित्र ने दोस्ती का मान रखते हुए अपने बेटे रितेश के साथ शादी का सुझाव दिया। जिससे उनके ना रहने पर सानिया को कम से कम एक परिवार तो मिल जाए। सानिया जब घर पहुँची तब पापा की ऐसी दशा देखकर व्यथित हो गयी।

वो चाहती थी कि पापा दिल पर कोई बोझ लेकर ना जाएं। उसने बिना कुछ सो सोचे समझे शादी के लिए हाँ कर दी। आनन फानन में रितेश और सानिया शादी के बंधन में बंध गए। सानिया को शादी के जोड़े में देखकर और अपने परम मित्र मनोहर जी

 के सानिया को बहू नहीं बेटी बनाकर रखने के आश्वासन के बाद उन्होंने हमेशा के लिए अपनी आँखें मूंद ली। 

दस दिनों में सानिया की तो पूरी ज़िंदगी ही बदल गई। सानिया जब ससुराल पहुँची तब पति रितेश का व्यवहार भी उससे बहुत रूखा था। शादी की प्रथम रात्रि ही उसने स्पष्ट कर दिया था कि सानिया से शादी नहीं करना चाहता था।उसने अपने साथ कार्य करने वाली लड़की अंजलि से कोर्ट मैरिज कर रखी है।

उसने घरवालों को अंजलि के विषय में बताया भी था पर जाति अलग होने की वजह से उन्होंने उसको स्वीकार करने से मना कर दिया और फ़िर वो लोग लिव इन में रहने लगे। अब अंजलि रितेश के बच्चे की माँ बनने वाली है। इस हालत में दोनों के पास कोर्ट मैरिज के अलावा कोई चारा नहीं था। रितेश ने ये भी कहा कि उसके पापा ने ज़हर खाने की धमकी दी इसलिए उसे सानिया के साथ मंडप् पर बैठना पड़ा।

सानिया को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वो रितेश की बातों का क्या जवाब दे। उसकी ज़िंदगी तो एक अलग ही मोड़ पर आ खड़ी हुई थी। ये सब बोलकर रितेश जैसी ही उसके पास से जाने के लिए मुड़ा तब सानिया ने बहुत ही शांत स्वर में उससे कहा कि मेरे पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है।

मैं आपके साथ जबरदस्ती का बंधन नहीं रखना चाहती। बस अगर आप अपने और अंजलि के रिश्ते की इज़्ज़त करते हैं तो कल सुबह अपने पिताजी के सामने सब सच-सच बता दीजिये। मैं भी आपका साथ दूँगी। वो रात सानिया के लिए बहुत भारी थी। अगले दिन जब सारे मेहमान चले गए तब सानिया की उपस्थिति में अपने और अंजलि के रिश्तें का सच माता पिता के सामने बता दिया।रितेश के पिता उसकी बातें सुनकर सुन्न पड़ गए।

उन्होंने कतार दृष्टि से सानिया की तरफ देखा और हाथ जोड़कर माफ़ी मांगते हुए कहने लगे कि मैं तुम्हारा गुनाहगार हूँ। तब सानिया ने उनको रोकते हुए कहा कि पापा जी मेरी और रितेश की शादी मान्य ही नहीं है क्योंकि वो दोनों कानूनन पति पत्नी हैं। रही बात गुनाहगार होने की तो मैं तो आपकी इसी बात के लिए ऋणी रहूंगी कि आपकी वजह से मेरे पापा सुकून से अपनी अंतिम साँसे ले पाए। मेरे मन में किसी के लिए कोई रंज नहीं है। कई बार हम सोचते कुछ हैं और होता कुछ है। 

तब रितेश के पिता मनोहर जी बोले कि बेटी अपराध तो हम सभी से हुआ है और ये तुम्हारी महानता है जो तुम इतना सब होने पर भी सबको क्षमा कर रही हो। चाहे अंजाने में ये सब कुछ हुआ हो पर ये तुम्हारा भी घर है तुम यहाँ आराम से रह सकती हो। 

अब सानिया ने  कहा कि जब उसकी और रितेश की शादी मान्य ही नहीं है तब उसको इस घर में रहने का हक नहीं है। वो अपनी पढ़ाई पूरी करके अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती है। वो आज दिन में ही अपने हॉस्टल निकल जायेगी और जो परीक्षा रह गयी हैं उनके बैक पेपर देगी जिससे साल बरबाद ना हो।

साथ ही साथ वो ट्यूशन पढायेगी जिससे अपना खर्चा निकाल सके। ये कहकर वो कमरे में आकर अपना सामान बांधने लगी। जब वो निकल रही थी तब मनोहर जी ने कहा कि बेटा मैं भी तुझे हॉस्टल छोङने चलूँगा और जब तक तू अच्छे से कमाने नहीं लगती तब तक मैं तेरे रहने खाने का खर्चा दूँगा। सानिया बहुत स्वाभिमानी थी वो किसी से कुछ नहीं चाहती थी

पर मनोहर जी का अनुनय विनय देखकर बस वो बोली कि हॉस्टल की फीस और रहने खाने का खर्चा मेरे ऊपर उधार रहेगा जो मैं कुछ बनते ही चुका दूँगी। मनोहर जी तो सानिया के चेहरे का आत्मविश्वास देखकर दंग थे। उनके मुख से बस इतना निकला कि बेटा तू साध्वी है। तेरी जैसे बेटी साधारण इंसान की किस्मत में नहीं होती। मेरा दोस्त सचमुच बहुत भाग्यशाली था। 

इस तरह सानिया ने किसी के लिए मन में कुछ ना रखते हुए अपनी ज़िंदगी की राह बनाई। वैसे भी उसका मानना था कि जब उसके भाई जिनसे उसका खून का रिश्ता था वो ही अपने नहीं हुए तो दुसरों से का उम्मीद करनी इसलिए वो सबको माफ़ करती अपनी राह बनाती गई। वो पढ़ती रही और साथ साथ कोचिंग सेंटर में पढ़ाने भी लगी।

सारी परीक्षा पास करते करते सरकारी कॉलेज में प्रोफेसर बन गई। लिखने का शौक तो उसको पहले से था। छोटी छोटी कहानी लिखते लिखते कब वो इतना बड़ा उपन्यास रच गई खुद उसको पता नहीं लगा। उसका ये उपन्यास साध्वी कहानी थी उस लड़की की जो अपनी किस्मत से लड़ते हुए अपनी हिम्मत से सपनों को हक़ीक़त में बदल पायी थी।

उसका ये उपन्यास हर लड़की को नई दिशा दिखाने में समर्थ था। भाषा और उद्देश्य दोनों दृष्टि से वो परिपूर्ण था इसलिए साहित्य अकादमी पुरस्कार के लिए चुना गया। सानिया कुछ और सोचती इतने में घर की घंटी बजी। देखा तो बाहर राघव खड़ा था। राघव जो कॉलेज के दिनों में उसके साथ पढ़ा था। राघव सानिया को मन ही मन पसंद करता था पर सानिया का ध्यान सिर्फ अपने लक्ष्य पर था इसलिए उसने उसकी भावनाओं को हमेशा नज़रअंदाज़ किया।

आज राघव दिल में बहुत कुछ सोचकर आया था। पहले तो आते ही उसने सानिया से कहा कि इतना बड़ा अवसर है पार्टी कहाँ है मेरी? तुम अभी मुझे बाहर खाना खिलाने ले चल रही हो। उसके कहने का अंदाज़ ऐसा था कि आज सानिया की एक ना चली। आज पूरा दिन दोनों एक साथ थे। जब वापिस लौट रहे थे

तब राघव ने कहा कि सानिया भगवान ने सवको जोड़े में बनाकर भेजा है। अगर तुम चाहो तो मैं अपना आने वाला जीवन तुम्हारे साथ बिताना चाहता हूँ। अगर तुम्हें समय चाहिए तो मैं इंतज़ार करने के लिए भी तैयार हूँ पर अब मैं या तो तुम जैसी साध्वी का साधु बनूँगा और अगर तुम नहीं मानी तब भी साधु बनकर ही हिमालय पर चला जाऊंगा। अब ये तुम पर है कि तुम मुझे कौनसा साधु बनाती हो। 

राघव की बात सुनकर सानिया खिल खिलाकर हंस पड़ी। उसने राघव से थोड़ा समय मांगा। अगले तीन दिन बाद पुरुस्कार समारोह था। उसके बाद पत्रकारों की भीड़ ने उसे घेर लिया। कई सवालों के बाद जब उन्होंने सानिया से आने वाले कल की योजना के विषय में पूछा तब उसने राघव को इशारे से बुलाया और कहा कि अब मैं आगे का जीवन अपने इस साधु के साथ बिताना चाहती हूँ। उसके इस जवाब से चारों तरफ तालियां बजने लगी। अगले दिन के समाचार पत्रों में सानिया और राघव का बड़ा सा फोटो उनके रिश्तें पर लगा रहा था। 

दोस्तों कैसी लगी मेरी कहानी? अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें। अगर इंसान ठान ले तो भगवान भी सही राह ही दिखाते हैं। अपनी किस्मत को कोसने से अच्छा है जो मिला है उसकी कद्र करें और अपनी ऊर्जा का सकरात्मक उपयोग करें। 

बहुत शिकायत करते हैं ज़िंदगी से हम

पर जो मिला है उसकी कदर भी कहाँ करते हैं।। 

डॉ. पारुल अग्रवाल,

नोएडा

#बेटियां ६ जन्मोत्सव

छठी कहानी

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