रोज़ डे* – *नम्रता सरन “सोना”

“दीदी,अब जाऊं मैं, बहुत देर हो गई है, राजू के बापू भी घर आ गए होंगे” कामवाली रत्ना ने रात होते देख पूछा।

“क्या यार, कभी कभी तो रोकती हूं तुझे, आज इनके कुछ दोस्त आने वाले हैं, इसीलिए तुझसे थोड़ा ज़्यादा काम करवा रही हूं, तू चिंता मत कर,अलग से पैसे भी दे दूंगी” रति ने झिड़कते हुए कहा ‌

“दीदी, बात पैसे की नहीं है,वो…”रत्ना ने सकुचाते हुए कुछ कहना चाहा।

“क्या वो !!”रति ने टेबल पर क्रॉकरी सजाते हुए पूछा।

“कुछ नहीं” रत्ना ने छोटा सा जवाब दिया।

“सुन, ये गुलाब के फूल ,उस फ्लॉवर पॉट में संभाल कर सजा दे, आज रोज़ डे है, मैं जतिन को पूरा गुलदस्ता देकर चौंका दूंगी, देखती हूं उन्हें याद भी है कि नहीं,चल जल्दी कर सब आते ही होंगे” रति ने घड़ी पर नज़र डालते हुए कहा।

“जी दीदी” रत्ना बोली, नज़र तो उसकी भी घडी पर ही थी।

तभी रति का फोन बजा।

“हेलो, जतिन…कितनी देर है आने में” रति ने पूछा।

“रति, दोस्तों का प्रोग्राम चेंज हो गया है, हम लोग होटल ताज जा रहे डिनर के लिए, सॉरी डियर ,अब दोस्तों को नाराज़ भी तो नहीं कर सकता, साथ में बॉस भी हैं, अब तुम मैनेज कर लेना, ओके, बाय, टेक केयर” कहकर जतिन ने फोन कट कर दिया। गुस्से में उसने फ्लॉवर पॉट उठाकर फेंक दिया,सारे गुलाब बिखर गए।


“क्या हुआ दीदी” रत्ना ने घबराकर पूछा।

“कुछ नहीं, सुन जो कुछ बनाया है, सब पैक करके ले जा, पार्टी कैंसिल हो गई” रति ने रुंधे गले से कहा, उसके आंसू बह निकले।

“दीदी, एक गुलाब मैं ले लूं, आज रोज़ डे है न,तो राजू के बापू दूंगी, उसका गुस्सा भी फ़ुर्र हो जाएगा,देर हो गई है न आज” रत्ना ने डरते हुए पूछा।

“अरे एक क्यों? जितने चाहिए ,उतने ले जा, किसी के प्यार के इजहार में काम आए , उससे बढ़कर और क्या है?” रति ने सामान्य होते हुए कहा।

तभी डोरबेल बजी, रत्ना ने दरवाजा खोला तो सामने उसका पति खड़ा था।

“आज बहुत देर हो गई तुझे, रात ज़्यादा हो गई थी तो मैंने सोचा कि तुझे आकर ले जाऊं, अभी और समय लगेगा क्या?” रत्ना के पति ने पूछा।

“नहीं, बस चल ही रही हूं, सुन आज रोज़ डे है न, तो..तो.. ये ले…हेप्पी रोज डे” रत्ना ने दरवाज़े की आड़ में होकर पति को गुलाब का फूल देते हुए धीरे से कहा।

“सुन, मैं भी तेरे लिए लाया हूं, ये देख… तेरे जैसा लाल लाल गुलाब” धीरे से रत्ना के पति ने कहा।

“तू बस दो मिनट रुक, दीदी ने खाना ले जाने को कहा है, मैं पैक करके बस अभी आती हूं” रत्ना बोली।

रति उन दोनों को जाते हुए बहुत दूर तक देखती रही ,मन ही मन सोच रही थी-

“हर डे, रोज़ डे है अगर एक दूसरे के लिए दिल में प्यार हो, परवाह हो, कितनी खुशनसीब है रत्ना, उसे इतना प्यार करने वाला पति मिला, दोनों के जीवन में यह बहार सदा बनी रहे, ये गुलाब यूं ही खिले रहें, वास्तव में गुलाब तो गुलाब है, खिलता है तो खुशियां देकर ही जाता है, मुझे न सही, रत्ना को तो खुशी मिल ही गई”

उसने बिखरे हुए गुलाबों को  फिर से फ्लॉवर पॉट में सजा दिया ‌।

*नम्रता सरन “सोना”*

भोपाल म.प्र.

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