रोती  आंखें –  मंजु मिश्रा

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अमिता की आंखे द्वार की ओर यूं लगी थी जैसे अभी उसका पूरा परिवार आकर उसे अपने घेरे में ले लेगा और वो निहाल हो जाएगी।पंद्रह दिन पूर्व रजत की मृत्यु के पश्चात पंद्रह दिन बाद आज सुबह ही सब अपने अपने घरौंदों में लौट गए।

            उसे अपनी विवाह की पहली रात याद आयी जब रजत ने उसकी ओर बहुत ही प्रेमसिक्त दृष्टि से देखते हुए कहा था – अमु तुम्हारी आंखे बहुत खूबसूरत है।उसने शर्मीली आवाज में जवाब दिया था – आप सदा इनमे रहेंगे।उसकी मासूमियत पर रजत खिलखिला कर हंस दिया था।वो सदा रजत के दिल में और रजत उसकी आँखों मे रहा।धीरे धीरे उनका जीवन खुशियों से भरता गया और नील और नेहा जुड़वा बच्चों की किलकारियों से उनका आंगन गुलजार हो गया।दोनों धीरे धीरे बड़े हो रहे थे और बहुत ही तीव्र बुद्धि  भी।दोनों अब हाइस्कूल में थे।एक दिन दोनों पढ़ रहे थे।कि वह उनके लिए कॉफी बना लाई दोनो उसके गले से लिपट गए माँ तुम कितनी अच्छी हो और माँ तुम्हारी आँखे तो बहुत ही सुंदर और प्यारी है,इनमे हमारे लिए कितना सारा प्यार है।वह पहले तो आश्चर्य से दोनों को देखती रही और फिर जोर से हंस पड़ी और बोली – अरे जिन आँखों के इतने प्यारे दो तारे हों वो तो सुंदर ही लगेंगी।   

           समय के साथ दोनो इंजीनियरिग कर कनाडा जा बसे ।हाँ विवाह दोनो ने भारत मे ही किया साल भर में आते और ढेर सारा प्यार लुटा कर 15 , 20 दिन में लौट जाते।और वह रजत के साथ खुश रहती।

      पर अब वह क्या करे रजत के बिना तो वो बिल्कुल अकेली हो गई है।नील कह रहा था माँ तुम भी हमारे साथ चलो,हम तो इस से अधिक रुक नही सकते मजबूरी है।आप अकेले यहां कैसे रहेंगी।पर उसने मना कर दिया,रह लेगी वो अपने रजत की यादों के सहारे ।

             पर फिर भी वह बहुत  अकेली है अपनी खूबसूरत पर रीती आखों के साथ।क्योंकि अब उसमें बसने वाला रजत उसे छोड़ कर जा चुका था।और उन आखों के दो तारे भी उनसे दूर थे।

 मंजु मिश्रा 

मौलिक

अप्रकाशित

 

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