सफलता – आरती झा

रसोई घर से मां की आवाज आती है  । राकेश तुम्हें रायपुर अपनी पढ़ाई के लिए जाना है। राकेश जल्दी में तैयार होने लगता है और पिता से कहता है कि मुझे रायपुर क्यों ले जाया जा रहा है उसके पिता रामस्वरूप राकेश को समझाते हैं कि यह गांव बहुत छोटा है, क्योंकि यहां पर तुम्हारी पढ़ाई नहीं हो पाएगी। यहां सिर्फ पांचवी तक की शिक्षा ही दी जाती है परंतु मैं चाहता हूं कि तुम पढ़ाई करो और अफसर बनो जो भी खर्च होगा उसे मैं पूरा करूंगा। तुम्हें कड़ी मेहनत करनी है ,और हमसे दूर रहकर भी तुम्हें पढ़ना है।

       रामस्वरूप अपने बेटे राकेश को लेकर रेलवे स्टेशन तक आते हैं वहां रेलगाड़ी में रामस्वरूप अपने बेटे को समझाते हैं ,कि मेरा खेती-बाड़ी का कार्य है ।बहुत मुश्किल से तुम्हें पड़ा पा रहा हूं ।यहां तुम्हें अपने ननिहाल में रहकर पढ़ाई करना होगा ।वहां जैसा कहें वैसा तुम्हे करना होगा। इस दौरान तुम कोई भी शैतानी नहीं करोगे। क्योंकि तुम्हें अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर लगाना है ।मैं भी बीच में आता रहूंगा क्योंकि मेरा कार्य बहुत मेहनत का है ।मैं मेहनत करने से नहीं डरता हूं ।खेती कार्य में आमदनी बहुत कम है। इसलिए मैं तुम्हें रायपुर छोड़ रहा हूं्

               सरकारी स्कूल में राकेश का एडमिशन हो जाता है और वह मन लगाकर पढ़ाई करता है। जहां उसका ननिहाल था ।वहां उस जमाने में लाइट नहीं थी। वह चिमनी से भी पढ़ाई करता था ।कभी-कभी शहर के लाइट मैं उसे पढ़ना पड़ता था। उसके गुरुजी जो गृह कार्य देते थे वह मन लगाकर पूरा करता था। ऐसे करते-करते परीक्षा का समय आ गया ।परीक्षा का फार्म भरना था ।उसकी फीस जमा करनी थी। राकेश के पिताजी फीस जमा नहीं कर पाते।

            दूसरे दिन राकेश को प्रिंसिपल ने बुलाया और कहा परीक्षा फीस जमा करना है। इसके बिना तो तुम परीक्षा नहीं दे पाओगे ।राकेश का मन बहुत उदास हो जाता है। सारी बातें प्रिंसिपल को बताता है। यह सुनकर राकेश को उसके प्रिंसिपल कहते हैं, कि तुम मेघावी छात्र हो ,इसलिए मैं तुम्हारी परीक्षा फीस दे देता हूं। परंतु स्वाभिमान के कारण  राकेश मदद लेने से इनकार करता है।


  फीस जमा नहीं कर पाने की उहापोह मैं वह धीरे-धीरे अपने घर पैदल जाता है। उदास मन से वह घर पहुंचता है।

     रात भर वह सोचता है कि किस प्रकार पैसे का इंतजाम किया जाए । जिससे मैं परीक्षा में सम्मिलित हो सकू।

   सुबह हो जाती है ।उसे समझ में नहीं आता कि पैसा का इंतजाम कैसे किया जाए ।ऐसी स्थिति में वह स्कूल पहुंचता है। स्कूल में अन्य बच्चे जो होमवर्क नहीं कर पाते ।गणित नहीं बना पाते राकेश उन सभी बच्चों का होमवर्क पूरा करने में मदद करता है।

 राकेश को अन्य बच्चों के होमवर्क पूरा करवाते देख उनके क्लास के शिक्षक ने राकेश को बुलाकर कहा कि तुम बहुत अच्छा समझाते हो तुम ट्यूशन करके अपनी फीस भर सकते हो। राकेश को सर की बातें बहुत अच्छी लगी ।वह अन्य दोस्तों के साथ ट्यूशन वाली बात कहता है। जिसे सुनकर उनके दोस्त राकेश का मजाक उड़ाने लगते हैं। कि देखो अब हमसे यह पैसे मांगने का बहाना कर रहा है ।अब हम इससे नहीं पढेगे सभी दोस्त उसे छोड़ कर चले जाते हैं। वह सोचने लगता है कि क्या करें किस तरह फीस जमा करें ।वह अपने शिक्षक के पास जाता है, और कहता है कि सभी बच्चे मेरा मजाक उड़ाते हैं ।मैं ट्यूशन नहीं कर पाऊंगा। जिस पर उसके शिक्षक उससे कहते हैं  हिम्मत मत हारो थोड़े दिन है। तुम मेहनत कर लो ।एक बार और प्रयास करो कोई ना कोई तुमसे पढ़ने जरूर आएगा ।यह सुनकर राकेश को एक उम्मीद की किरण दिखती है वह दूसरे ही पल ट्यूशन पढ़ाने का मन बना लेता है।

          दूसरे दिन प्रात उठकर वह हर घर दस्तक देने लगता है। कहता है कि मैं आपके बच्चों को ट्यूशन पढ़ आऊंगा ।लोग उनकी बातों को अनसुना करते हुए अपने घर का दरवाजा बंद कर देते थे ।यह सिलसिला निरंतर जारी रहता है ।अपेक्षित सफलता नहीं मिलने पर वह निराश होकर एक पेड़ के नीचे बैठ जाता है ।तभी एक व्यक्ति आकर उसके कंधे पर हाथ रखकर कहता है ,कि     तुम कल मेरे घर आ जाना। राकेश बहुत खुश होता है, और उन्मुक्त होकर सज्जन को पैर छूकर प्रणाम करते हुए अपनी स्वीकृति देता है। दूसरे दिन  प्रातः6:00 बजे ही राकेश उक्त सज्जन के घर जाकर नए स्टूडेंट को पढ़ाना प्रारंभ कर देता है ।उसकी योग्यता को देखकर धीरे-धीरे अनेक बच्चे ट्यूशन पढ़ने के लिए शामिल हो जाते हैं ।इस तरह वह अपनी फीस जमा कर परीक्षा में प्रथम श्रेणी में पास हो जाता है।

   अभाव के बावजूद अपने उद्देश्य को सफल बनाने के लिए जो व्यक्ति परिश्रम करता है। उसे सफलता अवश्य मिलती है ।जैसे राकेश को प्राप्त हुआ।

     आरती झा कुशालपुर रायपुर

 

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