रितेश का फैसला – मंजू ओमर  : Moral stories in hindi

रितेश अपने साले को बाहर गाड़ी तक छोड़ कर जब अंदर आया तो देखा नुपुर मुनमुन की फोटो लिए आंसू बहा रही थी। रितेश ने नुपुर को गले से लगा लिया और आंसू पोंछते हुए समझाने लगा धीरज रखो नुपुर कितना रोओगी बस भी करो नहीं था अपनी किस्मत में मुनमुन,वो बस थोडे समय के लिए ही आया था अपने पास। रितेश नुपुर को गले लगा कर सांत्वना देता रहा पर दिल तो दोनों का ही रो रहा था मुनमुन के लिए।

           शादी के आठ साल हो गए थे रितेश और नुपुर की शादी को पर नुपुर मां नहीं बन पा रही थी । शुरू के दो तीन साल तो ऐसे ही मौज मस्ती में निकल गये । लेकिन जब बच्चे के बारे में सोचना शुरू किया तो सफलता नहीं मिल पा रही थी।जब कोशिश करने के बाद सफलता नहीं मिली तो नुपुर ने रितेश को डाक्टर के पास चलने को कहा। डाक्टरी परीक्षण चलता रहा और इस बीच नुपुर का एक छोटा सा आपरेशन भी हुआ लेकिन फिर भी नुपूर मां नहीं बन पाई ।

            फिर डाक्टर ने आई वी एफ के द्वारा बेबी प्लान किया । इसमें सफलता भी मिली फिर नौ महीने बाद नुपूर ने एक बेटे को जन्म दिया। रितेश और नुपुर के तो पांव ही जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। दोनों के खुशी का ठिकाना नहीं था। दोनों का समय रात-दिन मुनमुन के इर्द-गिर्द ही निकलता था ।आज मुनमुन ने एक किया आज वो किया ऐसे बोला आज मम्मा बोला दोनों निहाल थे मुनमुन को लेकर। नुपूर ने अपनी नौकरी भी छोड़ दीं थीं वो तो अब अपना सारा समय मुनमुन के साथ ही व्यतीत करना चाहती थी एक मिनट भी मुनमुन को आंखों से ओझल नहीं करना चाहती थी ।

              वक्त पंख लगा कर उठता रहा और मुनमुन चार साल का हो गया। हंसी खुशी समय व्यतीत हो रहा था।बस तभी नुपूर और रितेश के साथ अनहोनी घट गई । दोनों मुनमुन का चौथा जन्मदिन मनाने की तैयारी कर रहे थे इसी सिलसिले में बाजार गए हुए थे ।ढेर सारे खिलौने , बच्चों को देने के लिए गिफ्ट और खाने पीने का सामान खरीदा ।

मुनमुन ने दुकान से एक गेंद उठा ली थी जिसको वो बैग में नहीं रख रहा था अपने हाथ में ही ले रखा था।सब सामान लेकर रितेश और नुपूर अपनी गांड़ के पास आए और सामान गाड़ी में रखने लगे तभी मुनमुन के हाथ से गेंद छूटकर जमीन पर लुढ़क गई जिसको पकड़ने के लिए वो दौड़ा पीछे से नुपूर भी मुनमुन को पकड़ने को दौड़ी लेकिन तभी तेज रफ़्तार से आई रही गाड़ी से मुनमुन टकरा कर गिर गया गाड़ी वाला जब-तक ब्रेक लगाया मुनमुन गिर गया था और उसके सिर से खून निकलने लगा था ।

सभी इकट्ठे हो गए जल्दी से मुनमुन को अस्पताल ले गए । लेकिन तब-तब मुनमुन बेहोश हो गया था ।दो दिन स्थिति नाजुक बनी रही पर तीसरे दिन मुनमुन दुनिया को अलविदा कह गया। मुनमुन को हम नहीं बचा पाए सुनते ही नुपूर झटका खाकर वहीं गिर पड़ी । मिलने वाले लोग आ गए थे रितेश बेचारा एक तरफ नुपूर को संभाल रहा था दूसरी तरफ बेटे का पार्थिव शरीर भी लेकर घर आना था ।

                     बड़ी मुश्किल से नुपूर को होश आया तो वो पागलों की तरह मुनमुन से लिपट कर चीख पड़ी। दोनों का बुरा हाल था । मुनमुन नहीं रहा सुनते ही कालोनी के लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई।बस किसी तरह अपने जिगर के टुकड़े को अंतिम विदाई दी।

                आज एक हफ्ता बीत गया था मुनमुन को गए । रितेश चाय के दो कप लेकर नुपुर के पास आकर बैठ गया। गुमशुम सी बैठी नुपूर से रितेश कहने लगा चलो नुपूर थोड़ा बाहर चलते हैं पर नुपूर जाने को तैयार नहीं थी । बड़ी मुश्किल से रितेश ने नुपूर को समझाया देखो नुपूर मुनमुन हमारे नसीब में नहीं था वो इतने ही समय को आया था पास हमारे । चलो थोड़ा बाहर घूम आते हैं ऐसे कैसे चलेगा।

‌।             रितेश जबरदस्ती नुपूर को गाड़ी तक लाकर गाड़ी में बैठाया गाड़ी ले जाकर एक पार्क के सामने रोक दी जहां खूब सारे बच्चे खेल रहे थे कुछ देर वहां खड़ा रहा फिर वापस आ गया ।इसी तरह की दिनों तक करता रहा अब नुपूर बाहर जाने को मना नहीं करती थी ।इसी तरह एक दिन बच्चों के अनाथ आश्रम का पता लगा कर नुपूर को वहां लेकर गया वहां पर धीरे-धीरे नुपूर को रितेश ले जाने लगा उसका मन थोड़ा बदलने लगा ।वो अब हर रोज आश्रम जाने को तैयार होने लगी।

                    और आज आश्रम जाते वक्त कुछ चाकलेट और खाने पीने का सामान लेकर जाती और सभी बच्चों को खिलाती । रितेश बोला देखो नुपूर ईश्वर ने हमारे नसीब में औलाद का सुख नहीं लिखा है और यहां मौजूद बच्चों के नसीब में मां बाप का सुख नहीं है ।हम इन सब बच्चों को मां बाप का प्यार देंगे इनमें से किसी एक दो बच्चों के परवरिश का हम खर्चा उठायेंगे उनको पढ़ायेंगे लिखाएंगे लेकिन अपने पास नहीं रखेंगे क्या पता अपने पास रखने से फिर कोई अनहोनी हो जाए ।तो बच्चों को यही रहने दो ।हम यहां आकर इनसे मिलते रहेंगे।र

              रितेश का सुझाव नुपूर भी मान गई और फिर धीरे-धीरे रितेश और नुपुर की जिंदगी आगे बढ़ने लगी। बच्चों के साथ उसका मन लगने लगा।और जिस बच्चे की पढ़ाई का वो खर्चा उठा रहे थे वो आज हाई स्कूल की परीक्षा दे रहा था ।

                   आज वो बच्चा हाई स्कूल में अच्छे नंबर से पास हुआ तो रितेश और नुपुर ने खुश होकर सारे बच्चों को मिठाई बांटी।और कह रहे थे शायद यही ईश्वर ने हमारे नसीब में लिखा था। उसके फैसले को कौन बदल पाया है आजतक।

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!