नई ज़िन्दगी – अर्चना सिंह : Moral stories in hindi

वो अभी शहर में नई- नई ही आयी थी । दिमाग में बहुत तरह की उलझनें चल रही थीं । मंजरी नाम था उसका । सामान शिफ्ट करते हुए कभी तनाव से अनायास ही उसकी आँखें छलक उठतीं तो चेहरे पर दृढ़ता का भाव लाते हुए वो अपने काम मे मजबूती से लग जाती ।

मंजरी की ज़िंदगी से तो उसका पति पीयूष दो साल  पहले जा चुका था लेकिन दिल के कोने से कहाँ इंसान भुला पाता है । चार वर्ष की बेटी तनु का मुख देखकर कभी वो फूल सी खिल जाती कभी जीवन के तनाव महसूस करके अचानक ही बिफर पड़ती ।

 पापा ने बहुत समझाया नौकरी के साथ बच्चे का भी ध्यान रखना होगा , माँ को साथ ले जा हिम्मत बनी रहेगी । पर वो समझती थी  माँ की तकलीफ किस तरह वो गठिया से पीड़ित हैं कितना मुश्किल भरा होगा उनके लिए बच्चे की देखभाल करना । ससुराल वालों ने तो पीयूष के जाने के बाद इतने आरोप प्रत्यारोप लगाए की उसका दम घुटता था उस घर, उस माहौल में । खुद को पीयूष की यादों से आजाद करने के लिए ही उसने निश्चय किया दूसरे शहर जाने का ।

सब कुछ लगभग शिफ्ट हो ही गया था बस गमले ही रह गए थे । बहुत प्यार और सावधानी से वो गमले के पौधे की सूखी पत्तियाँ  हटा ही रही थी कि एक आवाज उसके कानों में सुनाई दी…”अगर आप बुरा न मानो तो मै इन पौधों की पत्तियाँ हटाने में आपकी मदद कर सकता हूँ । सीढ़ी का रास्ता रोके अनजाने में मंजरी खड़ी थी । पीछे पलट कर उसने देखा..”भारी बदन और सामान्य कद – काठी का दिखने वाला एक साधारण नवयुवक खड़ा था । मंजरी ने झिझकते हुए उसे रास्ता दिया और उसने अपनी चार पहिया गाड़ी अंदर कर लिया । और वापस आकर गमले के पौधों को टटोलने लगा ।

काफी देर से उज्ज्वल मंजरी के क्रियाकलाप को देख रहा था । अंत मे उसे रहा नहीं गया तो उसने मदद के लिए हाथ बढ़ा ही दिया । मंजरी असमंजस में थी क्या कहे लेकिन तब तक उज्ज्वल ने गमलों को रखवाने की इजाजत दे दी और मंजरी की अनुपस्थिति में ट्रक वाले को पैसे भी पूछकर दे दिए ।

मंजरी वापस आकर पूछने लगी तो ड्राइवर ने कहा पैसे साहब ने दे दिए और वो चला गया । “क्या जरूरत थी ऐसा करने की”? मंजरी ने पैसे पर्स से निकालते हुए हाथ आगे बढ़ाया तो उज्ज्वल ने ये कहते हुए मना कर दिया की 2/ 12में आप आयी हैं न ? काफी दिनों से खाली पड़ा था । मैं आपका पड़ोसी हूँ और पड़ोसी के नाते मेरा फर्ज बनता है कि मैं आपके काम आ सकूँ । औपचारिकता के नाते मंजरी ने हाथ आगे बढ़ाया ।

तो उज्ज्वल ने कहा थक गई होंगी आप । चलिए साथ में चाय पीते हैं । आप अ..अकेली हैं ? हकलाते हुए उज्ज्वल ने पूछा तो मंजरी जवाब ही देने वाली थी तब तक उज्ज्वल ने देखा एक जोड़ी आँखें उसे लगातार घूरे जा रही हैं। तनु मम्मी बोलकर मंजरी से लिपट गयी तो उज्ज्वल को समझते तनिक देर नहीं लगी कि बच्ची मंजरी के साथ है ।

अब उसकी गलतफहमी दूर हो रही थी कि मंजरी अकेली नहीं है। अब मंजरी ने निवेदन करते हुए कहा…”मैं चाय बनाती हूँ और आपको भिजवाती हूँ उज्ज्वल कुछ नहीं बोल पाया और मंजरी ने दरवाजा लगा लिया । अनजाने शहर में अजनबी को इस तरह मदद करते देख थोड़ा मुश्किल हो रहा था समझना ।

अब रसोई में मंजरी चाय बनाने लगी तो जाने उसे क्या महसूस हुआ उसने उज्ज्वल के लिए भी चाय बना दिया और चाय बिस्कुट लेकर सामने वाले फ्लैट की घण्टी दबाई । बाहर से ही चाय देकर आ जाना चाहती थी मंजरी कि तभी उसकी नज़र ड्राइंग रूम में लेटे एक बुजुर्ग महिला पर पड़ी । उत्सुकतावश मंजरी ने पूछा…”माँ हैं आपकी ? हाँ में सिर हिलाते हुए उज्ज्वल ने रास्ता दिया तो मंजरी तनु को लेकर उज्ज्वल की माँ के पास पहुँची ।

काफी समय के बाद किसी के चरण स्पर्श से सुमित्रा जी के बेजान देह में मानो किसी ने जान फूँककर अपनत्व का एहसास कराया हो ।  सुमित्रा जी ने अपना हाथ मंजरी के सिर पर फेरते हुए कहा..”सुखी रहो” तो मानो मंजरी को लगा इस आशीर्वाद की उसे बहुत जरूरत थी ।सुमित्रा जी की आंखों में रोशनी की कमी थी। किसी तरह टटोलकर वो खुद का काम कर लेती थीं । दोनो बड़े बेटों को पढ़ा लिखाकर इस कदर विदेश में बसाया कि माँ की खबर भी लेने की उन्हें सूध तक नहीं ।

गाँव से शहर लाते वक़्त उज्ज्वल ने इच्छा भी जताई भाइयों से की आकर माँ से मिल जाओ जाने से पहले पर उन्होंने ये कहकर पल्ला झाड़ लिया कि हमे उनकी संपत्ति नहीं चाहिए और मिलना भी नहीं फोन पर बात कर लिया करेंगे । छोटा बेटा उज्ज्वल किसी तरह सरकारी नौकरी में लगा था और पिताजी के जाने के बाद माँ के संग रहता फिर जॉब लगने पर अपने संग ले आया । दुःखी मन से उज्ज्वल ये कहानी मंजरी के सामने रख रहा था । 

देखते – देखते एक साल बीतने को थे ।मंजरी को भी धीरे धीरे उज्ज्वल की ओर खिंचाव सा होने लगा था पर वो अपनी सोच को झटक के सिर्फ इंसानियत के नाते  उज्ज्वल के ऑफिस जाने के बाद उसकी माँ के साथ थोड़ी बातें कर लेती । नन्हीं तनु भी बहुत खुश होती सुमित्रा जी के साथ बातें बनाते हुए खेलकर ।अब तनु को उसने डे केयर में डाल दिया था । 

ऑफिस से आने के बाद आज मंजरी ने कोई नज़दीक डे केयर के लिए उज्ज्वल से चर्चा किया तो उज्ज्वल ने बताया माँ के पास ही छोड़ कर जा सकती हो । कहीं अन्य भटकने की जरूरत नहीं है । 

आज की सुबह भी पहले जैसी ही थी । मंजरी आज उत्तपम बनाकर नाश्ते में जब सुमित्रा जी को खिला रही थी तो सुमित्रा जी ने उज्ज्वल के दिल की बात छेड़ी । मंजरी घबराकर कुछ नहीं कह पायी । वापस अपने घर आ गयी। और उसके दिमाग मे हलचल मच रही थी उज्ज्वल की पत्नी को क्या हुआ होगा । मुझे शादी नहीं करनी । मम्मी पापा तो बोलते थे कर लो पर मुझे पति नहीं बेटी के लिए पिता चाहिए । अब तनाव मंजरी के चेहरे पर साफ दिख रहा था  । काफी देर तक वो उधेड़बुन में लगी रही । कुछ दिन तक मंजरी नज़रें चुराती रही उज्ज्वल से ।

अगले दिन मंजरी तनु को सुलाने लगी तो माँ का कॉल आया । माँ ने कहा…”कितनी बार कॉल किया उठायी नहीं। सब ठीक तो है, सामने वाले पड़ोसी कैसे हैं ? किसी चीज की जरूरत लगे तो मुझे बोलना । हिम्मत नहीं कर पा रही थी मंजरी । उसका गला रुंध गया और उसने फोन रख दिया   ।

अपने पति पीयूष की बातें मंजरी को याद आ गयी…” किसी मोड़ पर कोई अच्छा इंसान मिल जाए तो अपनी ज़िंदगी के बारे में सोचना    । अकेले जीवन बहुत कठिन है । सोई हुई तनु को पकड़ के मंजरी खूब रोई । इसी बीच तीन बार दरवाजे पर घन्टी बजी और फोन भी किया उज्ज्वल ने लेकिन मंजरी फोन नहीं उठाई । आखिर में जब उज्ज्वल की मम्मी ने दरवाजे पर आकर हाथ जोड़ा की मेरे बेटे ने जो भला बुरा सोचा उसके लिए क्षमा कर दो ।

उज्ज्वल की मम्मी के मुख से ये बात सुनते ही मंजरी ने दरवाजा खोलकर कहा..”ऐसी कोई बात नहीं आंटी जी ” । पीछे से उज्ज्वल भी आकर बिना शिकवा शिकायत किये तनु को उठाकर गोद से चिपका लिया   तनु ने नींद में ही आँखें मीचते हुए बोला..”मम्मी ! मेरे पापा ऐसे ही थे क्या? ये बात सुनकर सुमित्रा जी से रहा नहीं गया और तनु को देखकर मुस्कुराते हुए गले से लगा लीं । सकुचाते हुए मंजरी ने पूछा…”आपकी पत्नी को क्या हुआ था उज्ज्वल जी ?

तेज आवाज में उज्ज्वल हँसकर बोला…”कौन पत्नी ? मेरी तो शादी ही नहीं हुई । मंजरी ने बोला एक बच्ची की माँ  विधवा,  से शादी करने का कारण पूछ सकती हूँ ? उज्ज्वल ने कहा..ये तो समय का दोष है, आपका कसूर नहीं । रही मेरी बात..तो इतना जान लीजिए परिवारिक जिम्मेदारियों के बीच इतना दब गया कि खुद का ख्याल ही नहीं रहा । जरा सोचिए इस बच्ची को पिता का प्यार मिल जाए और मेरी माँ को आप दोनों के रुप में आँखों की रोशनी । तो इससे अच्छा क्या होगा ? आपको माँ की सेवा करते देख ऐसा लगा मुझे जैसी चाहिए थी मिल गयी । 

उज्ज्वल से बच्ची का पिता बनने की बात सुनकर लगा मंजरी की भी तलाश पूरी हुई । सुमित्रा जी ने मंजरी से फोन नम्बर लेकर उसके मम्मी- पापा को बुलवाया और सारी बातें खुलकर हुईं । 

मंजरी के मम्मी- पापा की भी चाहत पूरी होने को आई ।

 ढोल- नगाड़े शहनाई की मधुर ध्वनि वातावरण को शुभ बना रहे थे । लाल सुंदर जोड़े में सजी मंजरी खुबसूरत लंबे बाल, गहरी आँखें ,आभूषण से लदी हुई बहुत ही सुंदर लग रही थी । जयमाला के लिए सब खोजने लगे उसे तो वो तैयार होकर अपने पति पीयूष की फोटो के आगे रो रही थी। उज्ज्वल को देखकर उसके मुँह से कोई आवाज़ नहीं निकली ।

मन ही मन वो बस इतना ही बुदबुदाई…”तुम्हारी खुशी के लिए तुम्हारी अमानत के लिए मैं सोच रही हूँ । तभी उज्ज्वल आकर तनु को अपने  गोद में उठाया और मंजरी के कंधे पर हाथ रखकर नई ज़िन्दगी के लिए कदम बढ़ाने की ओर चल दिया । पीयूष की फोटो देखकर ऐसा लग रहा था उसके चेहरे पर संतुष्टि के भाव दिख रहे थे । मानो वह अपनी पत्नी को बच्ची के साथ सुखी रहने का आशीर्वाद दे रहा हो ।

अर्चना सिंह

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