मैं भी बाप हूं -शुभ्रा बैनर्जी : Moral stories in hindi

आज उमाकांत जी के घर में तहलका मचा हुआ था।पत्नी माधवी जी तमतमाई आईं और पति से बोलीं”सुन रहें हैं आप! आपके लाड़ले की बात।इन्हें मंदिर में शादी करनी है।टैंट-वैंट नहीं लगवाना,बैंड -बाजा की भी कोई जरूरत नहीं है। गिने-चुने बाराती लेकर मंदिर में पहुंचो,और शादी कर लो।सुन लीजिए आप,कान खोलकर।मैं शामिल नहीं रहूंगी ऐसी शादी में।एक ही बेटा है।सारी बात मान ली मैंने।दहेज के लिए भी मना कर दिया,इसकी ज़िद पर।

अब यह कंगाली वाली शादी मैं नहीं देख सकती।समाज, परिवार वाले तो हम पर ही हंसेंगे ना।मेरी मौसेरी बहन दीपा के बुआ सास की बेटी कितनी अच्छी थी। भर-भरकर दहेज देने के लिए भी राजी थे वो लोग।आपके और बेटे के चलते मना कर दिया मैंने।अब मेरे बचे-खुचे अरमान भी मार देना चाहता है यह।”

माधवी जी बोल कम और दहाड़ मार-मार कर रो ज्यादा रही थी।दिल की मरीज पत्नी की ऐसी हालत देखकर उमाकांत जी भी सकते में आ गए।बेटे से पूछा”क्या हुआ राहुल बेटा?अब ऐसा नया क्या हुआ? मम्मी की तबीयत बिगड़ी तो,बड़ी मुश्किल हो जाएगी बेटा।तू तो जानता है,कितनी मुश्किल से मानी है प्रीति से तेरी शादी की बात पर।ये मंदिर में शादी की क्या बात बोल रही थी तेरी मम्मी?”

राहुल रुआंसा होकर बोला”पापा,प्रीति के पापा शादी धूमधाम से करवाने के चक्कर में अपना घर बेच रहें हैं।कहतें हैं कि बुढ़ापे में दो लोगों के रहने के लिए किराए का घर काफी है।बड़ी बेटी को पहले ब्याह दिया,अब छोटी बेटी की शादी में कोई कमी नहीं रखेंगे।आप ही बताइए,मैं कैसे यह बोझ लिए प्रीति से शादी कर पाऊंगा?अपनी जिंदगी भर की जमा-पूंजी से कितनी मुश्किल से घर बनवाया होगा उन्होंने,और अब बेटी की शादी के लिए बेघर हो जाएं।”

उमाकांत जी को वास्तव में आज बहुत गर्व हो रहा था अपने बेटे पर। उसूलों के पक्के रहे उमाकांत जी ने कभी हालातों से समझौता नहीं किया था।कड़ी मेहनत कर के बेटे और बेटी को अच्छी शिक्षा दी।ख़ुद के खर्चों में कटौती करते रहे,पर बच्चों को कभी कोई कमी नहीं होने दी।पी एफ से लोन लिया,बैंक से लोन लेकर दोनों को पढ़ाया।

आज बेटा बैंक में ऑफिसर और बेटी कॉलेज में लैक्चरार है।उनकी शादी के लिए भी थोड़ा-थोड़ा जमा कर रखा है।छोटी बेटी की शादी में अभी एक -दो साल हैं। राहुल की पसंद थी प्रीति।स्कूल में म्यूजिक टीचर हैं।पापा रिटायर्ड हैं।पेंशन मिलती है।प्रीति ने शादी की यही शर्त रखी थी कि उसके पापा पर कोई अतिरिक्त बोझ ना आए।

प्रीति से  जब राहुल ने पहली बार मिलवाया, उमाकांत जी को पसंद आ गई थी।पत्नी माधवी को बिना दहेज की शादी पसंद नहीं थी,पर बेटे की इच्छा और पति की जिद के आगे मान  गई थीं।आजकल ज्यादातार बच्चे अपने मां बाप के तनाव की फ़िक्र नहीं करते,वहीं राहुल को अपनी होने वाली पत्नी के पिता के तनाव का दर्द है।

वाह!!ऐसा बेटा और दामाद हर किसी को मिले।माधवी जी का चढ़ा पारा देखकर उमाकांत जी ने अभी कुछ बोलना उचित नहीं समझा।बस राहुल से बोले पत्नी को सुनाकर”राहुल ,हम बाद में बात करेंगे इस विषय पर।मैं प्रीति के पापा से मिलकर बात करना चाहता हूं, मंदिर में शादी को लेकर।”,

राहुल अब तनाव में था।प्रीति के पापा का नहीं यह तो उसका और प्रीति का आइडिया था।उसने सोचा था सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी।

शाम को ही पापा से बोला राहुल”पापा,प्रीति के पापा तो हॉल बुक करा चुके हैं शादी के लिए।मैं और प्रीति चाहते हैं कि शादी मंदिर से करें,ताकि अनावश्यक खर्चों से बचा जा सके।”उमाकांत जी बेटे की बात सुनकर मुस्कुरा कर बोले”बेटा,मुझे मालूम था यह तुम्हारा ही आइडिया है।

मेरी एक बात हमेशा याद रखना बेटा।शादी -ब्याह में माता-पिता के सपने द्वार पर लगे होतें हैं।जो मां अपने लाड़ले की शादी का सपना बचपन से देखती आई हो,उसकी हर इच्छा का तिरस्कार करना आगे बहू पर ही भारी पड़ सकता है।मंदिर में शादी करना बहुत उच्च विचार है,पर इस बात को रखने का तरीका भी सटीक होना चाहिए।तेरी मम्मी ना जाने कब से बेटे की बारात में बैंड बाजा बजते देखने का अरमान पाल रही है।

सबसे अच्छा टैंट,अच्छा खाना,आवभगत की चाह हर मां की तरह उसे भी है।मैं मानता हूं यह दिखावा है,पर इस दिखावे को ही समाज में अपनाया गया है।बेटे की शादी में मां के मन की इच्छापूर्ति ना हो पाने का खामियाजा बहू को ही भुगतना पड़ सकता है। बात-बात पर जताती रहेंगी बहू को,दया का पात्र बनाकर।क्या तुझे अच्छा लगेगा?है तो मां ही ना?जो सदियों से होता आ रहा है,उससे तेरी मां भी तो अछूती नहीं है।तू निश्चिंत रह,हम मिलकर कुछ सोचते हैं।”

राहुल आज अपने पापा की दूरदर्शिता देखकर दंग रह गया।पापा कितने परिपक्व होतें हैं।एक बेटे,भाई,पति,

पिता के साथ-साथ एक दार्शनिक भी होते हैं।बेटे के मन का भी हो और पत्नी व बहू दोनों का मान बना रहे,यह पापा ही कर सकते हैं।”उमाकांत जी अगले ही दिन प्रीति के पापा से मिलने निकले,तो उनके इलाके के काली मंदिर में दर्शन करने रुके।बाहर से ही पुजारी जी और एक आदमी की बातें सुनकर ठिठके,अरे ये तो प्रीति के पापा हैं।

अभी अंदर जाना उचित नहीं होगा।बाहर बारमदे में इंतज़ार करते रहे,उनके निकलने का।नज़र में आए बिना अंदर पहुंच कर पंडित जी से पूछा”पंडित जी,ये महाशय जो अभी-अभी गए, इतने तनाव में क्यों हैं?मैं एक समाजसेवी हूं।यदि उनके कुछ काम आ सकूं तो अच्छा लगेगा मुझे।”

पंडित जी उमाकांत जी का वास्तविक परिचय तो जानते नहीं थे,सहज ही बोले”महाशय,आप जैसे भले मानुस से ही ईश्वर पर विश्वास टिका हुआ है।ये मेरे यजमान हैं।बहुत ही सज्जन व्यक्ति हैं।भजन कीर्तन गातें हैं बहुत अच्छा।इनके कोई बेटा नहीं।बड़ी बेटी की शादी हो गई है,अब छोटी बेटी की भी तय हो गई है। रिटायरमेंट का जो बचा है,उससे बेटी की शादी हो नहीं पाएगी।अपना घर बेचना चाहतें हैं।मैंने समझाया भी कि बुढ़ापे में किराए से कैसे रह पाएंगे,नहीं माने।

अब कहीं से कोई लोन भी लेना नहीं चाहते,कि चुकाएंगे कैसे?बेटी को बहुत अच्छा घर मिला है।बता रहे थे, बहुत भले लोग हैं।अपनी सामर्थ्य से भी ज्यादा करने के इच्छुक तो हैं,पर किसी के सामने हांथ नहीं फैलाना चाहते।एक अच्छा खरीददार ढूंढ़ने को कहा था मुझसे,उसी तनाव में रहतें हैं।आप जानते हैं क्या किसी खरीददार को?आप घर देख भी सकतें हैं आज।”

पंडित जी की बात सुनकर उमाकांत जी को अपना ही किरदार डबल रोल में दिखाई।वह भी तो एक बेटी के पिता हैं।आज थोड़ा बहुत जोड़ कर रखा है,पता नहीं कल उससे खर्च पूरे हो  पाएंगे कि नहीं।उन्होंने तुरंत पंडित जी को घर खरीदने का प्रस्ताव दे दिया।पंडित जी के साथ मिलकर उन्होंने एक योजना बना ली।

शादी हॉल में ही संपन्न हुई।इंतज़ाम भी बहुत बढ़िया किया था ,प्रीति के पापा ने।सभी बाराती मुक्त कंठ से प्रशंसा कर रहे थे शादी के बंदोबस्त की।मालती जी आईं तो नहीं थी शादी में पर  में,पर वीडियो कॉल करके सब देख चुकीं थीं।प्रीति का मन पर उदास था,पापा के घर बिकने की बात पर। उमाकांत जी रात को ही बारात लेकर वापस जा रहे थे।

बेटी और कुछ एक -आध रिश्तेदारों को ही रुकने को कहकर राहुल को बुलाया उन्होंने।राहुल डर गया कि क्या बात हो गई।पापा जी इतने शांत क्यों दिख रहें हैं? उमाकांत जी ने राहुल के हांथ में प्रीति के घर के कागज़ात देते हुए कहा”यह घर मैंने बिकने नहीं दिया।तेरी बहन की शादी के लिए जो एफ डी किया था

उसे तुड़वाकर प्रीति के पापा को कुछ पैसे दिलवा दिए और कुछ बैंक में ही रख दिया है मैंने।अपनी पत्नी के सामने मैं खुद शर्मिंदा होना नहीं चाहता और ना ही तेरी पत्नी के सामने तुझे होता देखना चाहता हूं।एक पिता को अपनी बेटी की शादी का कितना तनाव होता है,मैं जानता हूं।तेरी बुआ की शादी भी करवाई है मैंने अपने पापा के साथ मिलकर।कल को तेरी भी बेटी होगी।शादी के अधिकतम खर्चे प्रीति के पापा को आधे ही देने पड़े।

आधे मैंने दिए हैं।तेरी मम्मी को सही समय पर बता दूंगा,और अगर जरूरत ना पड़ी तो नहीं बताउंगा।अपनी रीढ़ की हड्डी मजबूत होनी चाहिए हर पुरुष की।चाहे वह पिता हो,पति हो या बेटा हो।मेरी कुछ और रैकरिंग पूरी हो जाएंगी अगले साल तक।रिया(बेटी)की शादी भी निपट जाएगी।मेरे बेटे की शादी में ,उसके ही ससुर को बेघर होना पड़े तो, धिक्कार है मुझ पर।ये पेपर विदाई के समय प्रीति के पापा को चुपचाप देना।किसी के सामने सारी बातें बताकर उनका अपमान मत करना।मैं चलता हूं।सकुशल पहुंचो हमारी बहू को विदा करवाकर।”

राहुल सिर से लेकर पैर तक कांप रहा था, रोते-रोते।ऐसे भी पिता होतें हैं!ऐसे ससुर भी होतें हैं भला!!ये ईश्वर के रूप में पापा हैं या पापा के रूप में ईश्वर।कुछ बोल नहीं पाया राहुल,बस लिपटकर रो रहा था पापा के गले।तभी प्रीति ना जाने कहां से आकर उमाकांत जी के पैर छूते हुए बोली”आप जैसे पिता पाकर मैं धन्य हो गई पापा।मेरे जन्मदाता का तनाव देखकर आपने अपनी बेटी की शादी के लिए जमा किए हुए रुपये खर्च कर दिए।इतना बड़ा दिल आपका ही हो सकता है,किसी और का नहीं।”

उमाकांत जी ने प्रीति को उठाकर आशीर्वाद देते हुए कहा”जिस पिता की बेटी हमारे घर की मर्यादा संभालने बहू बनकर आ रही है,उसका तनाव मेरा भी तनाव है।सदा खुश रहो बेटा।”

दरवाजे में प्रीति के पापा चुपचाप सब सुन रहे थे।बाहर निकलते हुए उमाकांत जी के दोनों हांथ पकड़कर बिलखने लगे”समधी जी!मैंने जरूर पिछले जन्म में अच्छे कर्म किए होंगे,जो आप जैसे संबंधी मिले।मैं बाकी बचे पैसे अभी देता हूं आपको।आपकी बिटिया की शादी से पहले आपको अपने पूरे पैसे मिल जाएंगे,मैं ईश्वर को साक्षी मानकर आपको वचन देता हूं।”

उमाकांत जी ने उन्हें ढांढ़स बंधाते हुए कहा “मैं भी एक पिता हूं,समधी जी।बिटिया की शादी का तनाव तोड़कर रख देता है इंसान को। ज़िंदगी भर की जमा-पूंजी लगाकर इंसान घर एक बार ही बना पाता है।आपने यह कैसे सोच लिया कि मेरा बेटा मेरी बहू को लेकर किराए के घर में आएगा पगफेरे में?अरे !मेरी बहू का मायका यहीं रहेगा,हमेशा।”

आज हर कोई भावविभोर हो रहा था ,ऐसी शादी देखकर।एक बेटी के पिता ने दूसरी बेटी के पिता का तनाव सिर्फ समझा ही नहीं समाप्त ही कर दिया।

शुभ्रा बैनर्जी

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