कर्तब्य –अरुण कुमार अविनाश

” चेत सिंह।”

इंस्पेक्टर साहब ने आवाज़ दी तो मैं चिक उठा कर अंदर आया।

इंस्पेक्टर साहब ने खाना खा लिया था और अब वे हाथ धोकर हाथ-मुँह पोछ रहें थे – मुझें देखते ही उन्होंने टेबल पर पड़े टिफिन बॉक्स की ओर इशारा किया – ” बचा खाना काली को दे देना और ध्यान रखना कि वो साला भूरा खाना छीन न ले।”

मेरा नाम चेत सिंह है – मेरी उम्र सत्ताईस साल की है –मैं बावन वर्षीय, इंस्पेक्टर दुर्जन सिंह का मातहत हूँ – थाना शैतान चौकी पर मेरी पोस्टिंग बतौर सिपाही दो साल पहले ही हुई है – इंस्पेक्टर साहब और मैं एक ही गाँव और बिरादरी के है – इसलियें साहब मेरा ध्यान रखतें है और ज़्यादातर मैं ही साहब के ऑफिस का काम भी देखता हूँ।


काली काले रंग की एक देशी कुतिया है – दो साल पहले जब ये थाना परिसर में आयी थी तब मुश्किल से महीनें भर की रही होगी – पता नहीं कब साहब के पीछे-पीछे चलती हुई साहब के ऑफिस के अंदर आ गयी थी – उसी समय साहब के घर से खाना आया था – साहब ने खाना शुरू किया तो उनकी नज़र काली पर पड़ी – जैसा साहब का स्वभाव है उन्हें तत्काल क्रोध आना चाहियें था पर पता नहीं, उस दिन उनका मुड़ सही था या खाना लजीज था – उन्होंने काली को एक रोटी डाल दी – उस एक रोटी के बदले काली इंस्पेक्टर साहब की हो गयी – साहब ने उसके काले रंग के कारण ही उसका नाम काली रखा था – बाद के दिनों में साहब के खाने के साथ काली की रोटी भी रोज़ाना साहब के घर से आने लगी।

पिछले साल बरसात की बात है – इंस्पेक्टर साहब ऑफिस के अंदर फाइल निपटा रहें थे कि अचानक काली जोर-जोर से भोंकने लगी – इंस्पेक्टर साहब को काम में व्यवधान हुआ तो उन्होंने गुस्से से एक भद्दी गाली दी और कोने में दीवार से टिका कर रखा समझावन सिंह (लट्ठ ) उठा कर काली की ओर झपटे – बाहर का नज़ारा देखते ही इंस्पेक्टर साहब के होश गुम हो गये – लगभग आठ फुट का एक बिल्कुल काला चमकदार विषधर फन काढ़ कर काली पर हमला करना चाहता था और काली लगातार भोंक-भोंक कर सबको खतरे का आगाह कर रहीं थी। मौका मिलने पर विषधर के फन से बचती हुई विषधर पर पंजे से आक्रमण भी कर रही थी।

पाँच मिनट के अंदर विषधर की लाश के फ़ोटो खींचे जा रहें थे। अगले आधे घँटे के अंदर विषधर की लाश का अंतिम संस्कार कर दिया गया था और साहब ने काली के लिये रोज़ शाम के खाने का भी इंतज़ाम कर दिया था – अब हर शाम एक टिफिन सेंटर चलाने वाला बन्दा – दो रोटियाँ काली के लिये साहब के ऑफिस के बाहर छोड़ जाता था और काली के लिये एक प्लेट और एक कटोरे की व्यवस्था भी की गई थी – कटोरे में चौबीसों घँटा पानी भरा रहता था।

दिन में साहब के घर से काली की रोटी बदस्तूर आना अब भी जारी था।

इस घटना के दस दिन बाद ही – शाम का समय था – साहब सभी पेट्रोलिंग टीम को गश्त की प्लानिंग बता कर – जब घर जाने के लिये अपनी बुलेट की ओर जा रहें थे तभी काली उनके सामनें आ गयी और जोरों से भोंकने लगी – साहब हैरान हुए और उसे पुचकारने लगें पर काली किसी भी हालत में साहब को बुलेट की ओर नहीं जाने दे रही थी – एक सिपाही ने कहा भी कि कहीं कुतिया पगला तो नहीं गयी है – पर साहब को काली पर भरोसा था – उन्होंने एक टार्च मंगवायी और आस-पास का इलाका देखा फिर बुलेट की जांच करवायी – एक नागिन साहब की गाड़ी के हेड लाइट के पास लिपटी हुई थी। साहब तो काली के कृतज्ञ हो गये – काली का इतना आभार माना कि उसी समय साहब ने जेब से पैसे निकालें और एक सिपाही की अब रोज़ाना ड्यूटी थी कि वह हर रोज़ काली के लिये आधा लीटर दूध और दो अंडे लाये और काली को खिलायें। पैसे साहब देंगे।

अब जब तक साहब ऑफिस में बैठें होते थे – काली उनके पास बैठी रह सकती थी –अपनी मर्ज़ी से कही जाना चाहें तो आज़ाद थी वरना किसी की हिम्मत नहीं थी कि कोई काली को दुत्कार सकें।

काली की एक अच्छी आदत भी थी – जब तक उसे खाने को नहीं कहा जाता था वह परोसा हुआ खाना भी नहीं खाती थी।

वैसे भी उसे ज़रूरत भी कहाँ थी ? –भूख लगने से पहले खाना मिल जाता था – अब तो हर तीसरे दिन उसे नहलाया भी जाता था और एक निश्चित अवधि के बाद वेट आकर उसकी स्वास्थ जांच करता था और उसे एन्टी रेबीज़ इंजेक्शन दे जाता था।

काली आज़ाद थी पर आवारा नहीं थी । दो-दो बार साँपो से साहब की प्राण रक्षा करने के कारण अब वह सभी स्टॉफ की चहेती हो गयी थी – कोई उसे बिस्कुट खिलाता था तो कोई कुछ और ले आता था – पर काली की पसंदीदा जगह साहब के ऑफिस का बरामदा था – जहाँ वह सोया करती थी। साहब अगर ऑफिस के अंदर काम कर रहें हो तो वह जब-तब अंदर आ बैठती थी और पँखे की हवा का आंनन्द लेती हुई ऊँघती रहती थी।

साहब के आदेश पर बरामदे का पंखा पूरे दिन चलता रहता था ताकि काली आराम से रह सके।

इन दिनों भूरे रंग का एक कुत्ता अक्सर काली के साथ घूमता रहता था – दोनों हम उम्र थे – एक दूसरे को सूंघते चाटते दुलारते थे – खेलते रहते थे।

कई बार भूरा काली का खाना छीन कर भाग जाता था – काली थोड़ी देर तक गुर्राती थी बाद में भूरे को माफ कर देती थी – काली को वैसे भी खाने की कमी नहीं थी – मेरे जैसे बहुत से सिपाही या हवलदार अपना बचा हुआ खाना काली की प्लेट में डाल देते थे – समझते थे कि काली को रोटी डालते हुए साहब ने देख लिया तो साहब की कृपादृष्टि उन पर भी पड़ जायेगी।

वैसे भी काले कुत्ते की अलग ही महिमा है।

दिन के बारह बज रहें थे – गर्मी के दिन थे – काली साहब के ऑफिस के अंदर कूलर का आंनन्द ले रही थी – भूरा कई बार चिक के उस पार से काली को इशारा कर चुका था पर काली भाव खा रही थी – पलक उठा कर भूरा को देखती और उपेक्षा एवम तिरस्कार से उसे अनदेखा कर फिर ऊँघने लग जाती थी।

टाइगर जुम्मा से चुम्मा मांग रहा था– दे दे – दे दे – पर जुम्मा एक ही रट लगा रही थी कि – नहीं दूँगी।

भूरे की हालत ये थी कि कोई मजनूं – लैला से मिलना चाहता हो – गुफ्तगू करना चाहता हो – पर लैला के पिता के भय से मौहल्ले के चक्कर ही लगा पा रहा हो – लैला से मिल नहीं पा रहा हो।

शुक्र था कि इंस्पेक्टर दुर्जन सिंह की नज़र भूरे पर नहीं पड़ी थी –एक तो वे भूरे से वैसे ही चिढ़ते थे  –अगर उन्हें पता चलता कि वह काली को बहका रहा है तो उसका अंजाम बहुत बुरा होता।

” चेत सिंह ।” – सामनें खुली फाइल से जब साहब की नज़र भटकी तो साहब ने मुझें आवाज़ दी ।


मैं जो फाईलिंग कैबिनेट के पास खड़ा फाइलों से धूल उड़ा रहा था – लपक कर साहब के पास पहुँचा – ” बोलो साहब ।” – मैं आदर से बोला।

” ये काली आजकल कुछ मुटियाती हुई सी नहीं लग रही है ।” – साहब सिगरेट के कश लगाते हुए बोले।

” साहब जी , मुटिया नहीं रही है – भूरे के बच्चें की माँ बनने वाली है।”– मैं साहस करके बोला

” क्या ? – साहब इतनी जोर से चीखें कि मैं हड़बड़ा कर दो कदम पीछें हट गया।”

” इस मादर—, भूरे की ये मजाल – मेरी काली को खराब करता है ” – इंस्पेक्टर दुर्जन सिंह गुर्रा उठें – ” जी तो चाहता है कि साले को सर्विस रिवाल्वर से उड़ा दूँ – चेत सिंह एक काम कर ।”

” बोलो साहब ।”

” नगर पालिका वाले को बोल कि – या तो इस साले भूरे को जहर दे दे या इसे – इतनी दूर जंगल मे छोड़े कि कोई जंगली जानवर इसे निपटा दे।”

” साहब ये मुनासिब नहीं होगा।”– मैं धीरे से बोला।

” क्या मतलब !”

” साहब , कोई ज़रूरी थोड़े है कि गलती सिर्फ भूरा की हो –अपनी काली भी तो जवान हो गयी है।”

“इंस्पेक्टर साहब की आँखें सोच में सिकुड़ी फिर जब सामान्य हुई तो वे बोले –” चेत सिंह, तू सही कह रहा है – काली ने मौका दिया तभी भूरा कुछ कर पाया – वैसे भी गलती हमारी है काली बड़ी हो गयी –जवान हो गयी है – हमें खुद चाहिये था कि हम इसकी मेटिंग करवाते – खैर —–।”

” साहब ये तो आदम की औलादों ने अपना निज़ाम बना रखा है कि पहले शादी करो फिर – – – इंसान के अलावा भी करोड़ों प्रकार के जीव-जंतु है – न उनके यहाँ कोई शहनाई बजती है – न बारात आता है – न फेरे होते हैं – पर प्रजनन तो उनका भी होता है – काली का गुनाह क्या है ? – वो बड़ी हो गयी – जवान हो गयी – प्रजनन के योग्य हो गयी – उसने प्रकृति के विरुद्ध नहीं सिर्फ हमारी मान्यताओं के विरुद्ध कोई काम कर लिया है।”

” ठीक कहता है तू।” – साहब एक नया सिगरेट जला कर कुछ सोचते हुए बोलें।


साहब से प्रोत्साहन मिला तो मैं आगे बोला – ” ईश्वर ने ये धरती सभी जीवों के लिये बनायी थी – इंसान ने एक-एक इंच भूमि की रजिस्ट्री करवा ली – फिर भी इंसान का लालच न मिटा – कहते है कि अब मंगल और चांद पर भी प्लाट कट रहें है – खरीद-बिक्री चालू है – जिस दिन आवागमन का साधन सुलभ हो गया – इंसानों के रहने लायक डेवलपमेंट हो गया – बस्तियां बस जायेंगी – कारखानें डल जायेंगे – पृथ्वी से आयात – निर्यात चालु हो जायेगा और अगले कुछ हजार सालों के बाद – इंसान उन ग्रहों उपग्रहों का भी दोहन करके – भरपूर शोषण करके – किसी और सुदूर ग्रह की ओर अपनी बस्तियां बनायेगा। अपने साथ-साथ दूसरे जीवों को भी ले जायेगा ताकि विविधता बनी रहें –वे जीव जंतु उसके काम आए – उसका भोजन बन सकें। मनुष्य अपने लालच के लिये दूसरे जीवों के जीवन मे भी बदलाव लाना चाहता है।”

” चेत सिंह – इंस्पेक्टर साहब यूँ मरी आवाज़ में बोलें जैसे पीड़ा तो उन्हें बहुत हुआ था पर फ़र्ज़ अदायगी भी ज़रूरी थी – ” काली की खुराक बढ़ा दो – दो अंडे और आधा लीटर दूध भी एक्स्ट्रा मंगवा देना – अगली बार वेट आये तो उसे इसकी प्रेग्नेंसी के बारे में बताना –फिर जो वेट बोले – करना ।”

“जी साहब।” मैंने सहमति में सिर हिलाया।

दो दिन बाद, साहब सप्ताह भर की छुट्टी पर चलें गये थे – मेरे बापू ने बताया कि साहब गाँव गये हुए थे – जहाँ रिश्तेदारों में बात चली और एक पढ़े-लिखें – अच्छी नोकरी कर रहें बंदे से उन्होंने अपनी बिटिया की शादी तय कर दी थी। उनकी बिटिया अभी बाइस साल की थी और कॉलेज में पढ़ती थी । साहब ने काली से सबक लिया था और अब हर कर्तव्य समय पर पूर्ण कर लेने की ठानी थी।

                                         अरुण कुमार अविनाश

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