नकुशा से आशा – सरला मेहता

” आशा बेटी ! प्रसाद बन गया हो तो आ जाओ। हम आरती कर लेते हैं। ” दादी ने पूजा घर से पुकारा। एक दादी ही तो  है जो माँ के गुज़रने के बाद उसका ध्यान रखती है। विमाता बिंदु के आने से आशा की खुशियों को मानो ग्रहण ही लग गया। उसने आशा को नया नाम ही दे दिया नकुशा। और पापा शेखर चाहते हुए भी कुछ कह नहीं पाते।

नकुशा ने बारहवीं कक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की। वह आगे की पढ़ाई जारी रखते हुए आय ए एस की तैयारी करती है। घर का सारा काम निपटाने के बाद देर रात तक जागती है। चोरी छुपे पापा से सामान्य ज्ञान की किताबें मँगा लेती है।

लेकिन बिंदु माँ की बुद्धू बेटी शुभा को भी पास करवाने की जिम्मेदारी भी उसी पर है। उससे दो वर्ष छोटी शुभा न शक्ल न सूरत। पर अच्छी खासी खाते पीते घर की लगती है।

बिंदु चाहती है कि जैसे भी हो नकुशा को इस घर से विदा कर दे। किताबें छुपा कर नकुशा की पढ़ाई में भी ख़लल डालती है। बेचारी दादी कुछ नहीं कर पाती दिलासा देने के सिवा , ” मेरी रानी ! ध्रुव ने तमाम संकटों के बावजूद अपने संकल्प पूरे किए। प्रभु तुम्हारी भी मदद करेगा। “



          बिंदु दोनों बेटियों को अपने मायके ले जाती है। वहीं पास में एक विधुर सज्जन श्रीधर   अपने बेटे सुयश के साथ रहते हैं। सुयश भी पढ़ाई में अव्वल है। श्रीधर को घर की देखभाल हेतु एक सहायिका की ज़रूरत है।

बिंदु लालच देती है, ” नकु तुम इनके यहाँ रहोगी तो पढ़ाई कर सकोगी। बस खाना वगैरह बनाना है। “

इस तरह उसे एक कमाई के जरिए के साथ अपनी कुमाता से भी छुटकारा मिल जाता है। बिंदु सोचती है कि धीरे से इस बुड्ढे से नकु की शादी भी करवा देगी।

श्रीधर , नकुशा की कहानी सुन कर द्रवित हो जाते हैं। वे सपने में भी नहीं सोच पाते इस मासूम से शादी करने का। वे नकुशा को आश्वस्त करते हैं, ” तुम यहाँ परिवार के सदस्य की भांति रहकर सुयश की मदद से पढ़ाई जारी रख सकती हो। “



नकुशा अपनी दादी को फोन करती है, ” सच दादी, अब मेरे संकल्प पूरे करने को स्वयं कान्हा जी ही श्रीधर जी के रूप में मिल गए हैं। “

श्रीधर जी का मकान अब सचमुच घर बन गया। सारे उत्सव मनाए जाने लगे। सुयश और नकुशा दोनों ने आय ए एस की परीक्षा पास कर ली और नौकरी भी लग गई। पापा शेखर और दादी, बेटी नकुशा को बधाई देने आते हैं।

श्रीधर दादी की ओर मुख़ातिब होते हैं,  ” देखिए, मैंने सोचा भी नहीं था कि मुझे घर बैठे इतनी सुशील बहू मिल जाएगी। ” 

सुयश शरमाते हुए सबके पैर छूता है। दादी कहती है, ” आज

से ये मेरी वही आशा है, इसका नकुशा नाम भूलना होगा। “

सरला मेहता

इंदौर

स्वरचित

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