कान्हा की डेरी – ऋतु गुप्ता   : Moral stories in hindi

गाय भैंसों के बीच पला बड़ा हुआ कज्जू कब यूं दो-दो सी.ए. बेटों का पिता बन गया समय की रफ्तार में उसे खुद ही पता नहीं चला। आज दो बेटे दो बहुएं और पोते पोतियों से भरा पूरा परिवार है उसका। कभी समय था कि जिस समय बचपन में बालक को सबसे ज्यादा परिवार की जरूरत होती है उसे समय वह नितांत अकेला था।

पुरानी यादों को याद करते-करते कज्जू की आंखों से आंसू बहने लगे । उसके एक पैर में मामूली सा कज होने से ही उसका नाम कज्जू पड़ गया, नहीं तो वो तो अपनी मां का लाड़ला कान्हा ही था।उसे आज भी याद है जब पूरे घर खानदान में उसकी औकात एक नौकर के बराबर थी, किसी के लिए भी वो एक मनहूस बच्चे से कम ना था, जिसके पैदा होते ही उसके पिता इस दुनिया से चल बसे और मां भी धीरे-धीरे टीवी की मरीज बन गई और अपने कज्जू के लिए कुछ कर न सकी ।वो जिंदगी भर कुएं का मेंढक का सा जीवन जीता  रहा। 

उसे ना तो कभी किसी रिश्तेदारी में ले जाया जाता। ना ही आस पड़ोस में  किसी के यहां। मां बाप के गुजरने के बाद उसे लगा वह अनाथ हो गया,तब उसके ताऊ ने ही उसे पाला पोसा।लेकिन ताई ने उसे कभी अपने बच्चों के पास फटकने भी नहीं दिया।ताऊ के बच्चे महंगे स्कूल में पढ़ने जाते उसे एक सरकारी स्कूल में डाल दिया, जब मर्जी स्कूल से छुट्टी करा दी जाती। उसकी किस्मत में शायद मां सरस्वती का वरदान ही नहीं था। जब भी घर में कोई काम होता ब्याह शादी या कुछ भी तो एक अकेला कज्जू ही सब संभालता। हर तरफ से कज्जू  ये कर दे, कज्जू वो करदे की आवाजें लगती रहती पर फिर भी उसके काम की कद्र नहीं थी,बिन मां बाप का बच्चा जो था।बाजार से साग सब्जी लाना, हवेली की साफ सफाई करना,सारे काम करता,धीरे-धीरे उसने भी इन कामों में ही अपना मन लगा लिया और इसे ही अपनी किस्मत समझ ली

उसे याद है कि  किस तरह वो अकेला आठ आठ भैंसों को संभालता, उन्हें नहलाता उनकी समय-समय सानी करता ,दूध निकालता । धीरे-धीरे उसे इंसान से अच्छे ये जानवर लगने लगे, क्योंकि  कम से कम जानवर उसे ताई के जैसे उल्टा सीधा तो ना बोलते। वो वहीं टाल में ही अधिक समय बीताता। टाल में कुछ अमरुद मेहंदी और हार सिंगार , गुलाब जैसे पेड़ लगे थे,वो इन पेड़-पौधों की छाया में अपना बचपन ढूंढता।

मां के गुजरने के बाद तो उसने हवेली में जाना लगभग बंद ही कर दिया, बस जाता और अपनी  ताई से खाना लेकर टाल में ही आकर खाना खाता।वहीं गाय भैंस के पास ही अपना सुख दुख बांटता,जब खुले आसमान के नीचे थका हारा मां को याद करते करते, तारे गिनते गिनते सो जाता तो अगली सुबह ही उठता। उठते ही वो सोचता न जाने कितनी और परीक्षाएं है उसके जीवन में जो शेष थीं।

फिर वही दिनचर्या होती, यूं ही धीरे धीरे बालक से कज्जू युवा हो गया।

रज्जो (रजनी )नाम की लड़की से उसका ब्याह हो गया ,जो बहुत ही होशियार थी, लेकिन कज्जू की जिंदगी उसी ढर्रे पर चलती रही। 

दो होनहार बेटों का जन्म हुआ। दोनों पढ़ना चाहते थे लेकिन कज्जू इतना समर्थ नहीं था। एक दिन ताऊ के लड़कों से अपने बच्चों की पढ़ाई को लेकर उसका झगड़ा हुआ तो ताऊ के लड़कों ने कहा ,क्या करेगा इन्हें पढाकर तेरी तरह तबेला ही चलायेंगे। बस ये बात कज्जू के दिल को चुभ गई , उसने कहा नहीं  मेरे बेटों का जीवन मेरे जैसा नहीं होगा, वो पढ़ेंगे, मैं अच्छे से अच्छे स्कूल में इन्हें पढ़ाऊंगा चाहें जो भी हो जाये।

 उसके बड़े बेटे ने जब एक दिन कज्जू से कहा पापा बस आप  हमें किसी भी तरह पढ़ा दीजिए ,एक दिन देखना जब होगा कि हम बोरी भरकर पैसा कमाकर दिखायेंगे।आपकी मेहनत और हिम्मत को बर्बाद नहीं होने देंगे। वो भी अपने बच्चों को अच्छे से अच्छा भविष्य देना चाहता था पर कैसे वो नहीं जानता था।उसकी पत्नी रजनी ने उसे सलाह दी, और उसके अधिकारों के लिए उसे सचेत किया। उसने कहा जितनी मेहनत मजदूरी आप यहां करते हो ,यदि आप खुद की गाय भैंस पालकर अपनी खुद की डेरी खोल लें तो देखना हम भी अपनी औलाद को अच्छे स्कूल में पढ़ा पायेंगे ,अच्छी परवरिश दे पाएंगे। सोचो जरा आप,क्या आप नहीं चाहते कि हमारे बच्चे भी पढ़ लिख कर अफसर या बड़े आदमी बने।

इतना सुनकर कज्जू बोला तू सही कह रही है रज्जो मुझे भी अपने बच्चों को पढ़ाना लिखाना है ,अब मैं कुछ समय उधार लेकर ही सही पर अपनी डेरी का व्यवसाय जरूर करूंगा , जिसका नाम होगा कान्हा की डेरी।

कहते हैं ना जब इंसान के इरादे दृढ़ और सुनिश्चित हो तो ईश्वर भी आगे बढ़कर उसकी सभी राहें खोल देता है। बस फिर क्या था उसने अपना हिस्सा लेकर उसी टाल में अपने ताऊ से अलग होकर कान्हा नाम से डेरी खोली, जो दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करती गई, भोला भाला  कज्जू दूध दही के काम में माहिर तो था ही, इमानदारी से अपना व्यवसाय चलाता रहा, पहले दूध दही के दो-चार घर बंधे ,चार से आठ ,और अब तो पूरा का पूरा गांव उसके दूध दही से प्रभावित था। हर कोई बस उससे ही दूध लेना चाहता था।

कान्हा की कृपा से धीरे-धीरे उसने दूध से बनी मिठाइयां भी बनानी शुरू कर दी। उधर उसके बेटे पढ़ते रहे और आगे बढ़ते रहे। कभी समय था दोनों पति-पत्नी दिन में दूध का काम पूरा करते और रात में पत्तल के दोने बनाते थे। इस तरह दोनों ने अपने जिगर के टुकड़ों को पढ़ाया लिखाया और कामयाब बनाया।

आज आखिर वह समय आ ही गया जब उसका बड़ा बेटा सी.ए. की परीक्षा में गोल्ड मेडल लेकर पास हुआ और उस दिन कज्जू ने अपनी दुकान की सबसे अच्छी मावे की बर्फी पूरे गांव में मुफ्त बांटी।

थोड़े दिन बाद उसके छोटे बेटे ने भी यही परीक्षा पास की और पूरे घर खानदान वालों में उसकी औकात उसकी मेहनत , और उसकी ईमानदारी के चर्चे होने लगे।

दोनों बेटों की शादी भी उसने बड़ी ही धूमधाम से की आज वो इस उम्र में पूरे परिवार के साथ बहुत खुश था, उसने अपनी आंखों से आंसू पौंछ डाले और बंशी वाले को उसकी कृपा  के लिए कोटि कोटि प्रणाम किया।

इसलिए कभी भी किसी भी इंसान की औकात को कभी भी उसके काम से नहीं आंकना चाहिए, क्योंकि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता छोटी या बड़ा तो होती है इंसान की सोच।

इस विषय पर आप सभी की राय और मार्गदर्शन का इंतजार रहेगा।

सादर 

ऋतु गुप्ता 

खुर्जा बुलन्दशहर

उत्तर प्रदेश

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