मुसीबत – के कामेश्वरी : Moral stories in hindi

कल्पना अपने घर के पास ही के एक स्कूल में टीचर की नौकरी करती थी । कल्पना के पिता सूरज जी सरकारी दफ़्तर में क्लर्क की नौकरी करते थे । उनकी तीन बेटियाँ थीं । उमा बड़ी बेटी कल्पना दूसरी बेटी सबसे छोटी प्रियंका थी ।

उन्होंने तीन तीन लड़कियों के बावजूद अपनी लड़कियों को पढ़ाया लिखाया था ।

उमा ने डिग्री की पढ़ाई पूरी की थी कि नहीं उसके लिए एक अच्छा रिश्ता आया उन्हें लड़की इतनी पसंद आई थी कि उन्होंने बिना दहेज लिए ही उसे अपने घर की बहू बना लिया । उमा के ससुराल की तरफ़ से कल्पना के लिए एक रिश्ता आया । माता-पिता बहुत ही खुश थे । कल्पना ने माता-पिता को बिठाकर समझाया कि मैं शादी नहीं कर सकती हूँ । मैं आप लोगों का सहारा बनना चाहती हूँ । 

सूरज जी ने बहुत समझाया था परंतु उसने उनकी एक ना सुनी । इस बीच प्रियंका ने उस लड़के की फ़ोटो को देखा और शादी के लिए तैयार हो गई । इस तरह प्रियंका की शादी भी हो गई थी ।

कल्पना और राधिका बहुत ही अच्छे दोस्त थे दोनों के घर भी पास ही थे । एक दिन स्कूल छूटते ही दोनों बातें करते हुए पैदल आ रहे थे तो राधिका को पीछे से किसी ने पुकारा राधिका दी कैसी हैं । उसने पीछे पलटकर देखा तो राजीव था । वह उसके पिता के दोस्त का लड़का था । दोनों पुरानी बातों को याद करते हुए चल रहे थे । राधिका ने कल्पना से उसका परिचय कराया । जैसे ही कल्पना का घर आया वह चली गई थी । एक महीने के बाद राधिका ने कल्पना से कहा कि राजीव तुमसे शादी करना चाहता है । 

कल्पना को आश्चर्य हुआ उसने कहा राधिका यह कैसे संभव है मुझे मेरे माता-पिता का ख़याल रखना है मैं उन्हें छोड़कर शादी नहीं कर सकती हूँ उनकी देखभाल का ज़िम्मा मैंने अपने ऊपर लिया है ।

राधिका ने कहा कल्पना राजीव इसी शहर में रहता है और उसके साथ उसकी माँ रहती है वह अकेला बेटा है । तुम जब चाहो तब आकर माता-पिता को देख सकती हो और अपनी तनख़्वाह भी उन्हें दे सकती हो ।

कल्पना राजीव से बात करना चाहती थी । यही बात उसने राधिका से कही । 

राधिका ने कहा इतनी सी बात है मैं आज ही राजीव को तुम्हें फोन करने के लिए कहती हूँ । 

कल्पना तुम्हारा फोन नंबर दे सकती हूँ ना ?

कल्पना हँसते हुए कहने लगी कि बिना नंबर के फोन पर बात कैसे होगी दे दे मेरा नंबर। 

उस दिन शाम को ही राजीव का फोन आया और दोनों ने कहाँ मिलना है डिसाइड किया । कल्पना दूसरे दिन जब वहाँ पहुँची तब तक राजीव आ गया था । राजीव ने कल्पना को दूर से देखते ही पहचान लिया और हाथ हिलाया । कल्पना भी वहाँ उस टेबल के पास पहुँची दोनों ने एक दूसरे को हेलो हाय कहा । कल्पना ज़्यादा समय नष्ट नहीं करना चाहती थी इसलिए उसने कहा राजीव जी मैं सीधे मुद्दे पर आती हूँ । 

देखिए मेरे माता-पिता की ज़िम्मेदारी मेरे ऊपर है । मैं शादी के बाद भी उसे निभाना चाहती हूँ । मेरी तनख़्वाह मेरे माता-पिता पर खर्च करती हूँ क्योंकि उनके पास आय का कोई ज़रिया नहीं है । 

राजीव ने उसकी हर बात मान ली यह भी कहा कि मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ ।

कल्पना ने माता-पिता से संपर्क करने के बाद राजीव से शादी के लिए हामी भर दी थी ।

कल्पना के हाँ कहते ही उनकी शादी हो गई थी । एक ही शहर में रहने के बाद भी कल्पना को माता-पिता से मिलने के लिए नहीं मिलता था ।

एक दिन कल्पना के स्कूल से आते ही उसकी सास ने कहा आओ कल्पना आओ देखो मैं तुम्हारे कदम हमारे घर पर पड़ते ही राजीव का प्रमोशन हो गया है और उसका तबादला भी हो गया है । 

कल्पना जब से शहर बाहर गई थी तब से उसकी नौकरी छूट गई माँ पिता छूट गए ऊपर से राजीव की माँ ने दहेज ना लाने के लिए ताने देते हुए उसकी मुश्किलें और बढ़ा दी थी । राजीव जो शादी के पहले उसके आगे पीछे घूमता रहा आज माँ को रोकता भी नहीं था ।

कल्पना के जीवन में जो बदलाव आया उसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी इसी बीच उसे पता चला कि वह माँ बनने वाली है फिर क्या सास और राजीव उसकी अच्छे से देखभाल करने लगे । इस समय भी उन्होंने कल्पना के माँ पिताजी के पास उसे नहीं भेजा । 

कल्पना ने जब बेटी को जन्म दिया था तो माँ बेटे ने बेटी का तरफ मुड़कर नहीं देखा । एक दिन सास बाथरूम में गिर गई थी अब उन्होंने यह कहना शुरू कर दिया था कि बच्ची के कदम शुभ नहीं है उसके आते ही मैं गिर गई । उनके ताने , बच्ची की देखभाल और घर के काम से कल्पना दुखी हो गई थी । 

कल्पना की सेवा से सासु की तबियत ठीक हो गई और वह चलने लगी । एक दिन सुबह वह रसोई में विवेक के लिए लंचबॉक्स तैयार कर रही थी और बच्ची घुटने के बल चलते हुए उसके पैरों के पास आ गई थी । विवेक का कहना था कि वह उस बच्ची को नहीं देखता तो शायद वह गिर जाता था ।

माँ बेटे ने इस छोटी सी बात पर ज़ोर देते हुए कल्पना से कहा कि अपनी बेटी को अपने माँ के घर छोड़ कर आजा वे ही उसे पाल लेंगे हम थोड़ा सा पैसा भेज देंगे ।

सास ने कहा कि ऐसे सुझाव उसे मत दे विवेक बेटी के साथ मायके भेज दे मैं तेरी दूसरी शादी करा दूँगी । 

विवेक ने एक बार भी नहीं सोचा और कल्पना से कह दिया कि तुम मायके जाओ मैं तुम्हें तलाक़ के पेपर भेज दूँगा ।

कल्पना ने अपना और बेटी का सामान ले कर बिना पीछे देखे मायके चली गई और माँ पिताजी को सारी बातें बताई और कहा मैं अपनी बेटी को ऐसा पालूँगी कि सारी दुनिया देखती रह जाएगी । दूसरे ही दिन वह उसी स्कूल में पहुँची जहाँ वह पहले नौकरी करती थी उन्होंने बिना कुछ पूछे उसे फिर से नौकरी दे दिया । 

बच्ची बड़ी हो रही थी माँ ने कहा कल्पना इसका नाम रखते हैं कब तक बच्ची कहकर पुकारेंगे ।

कल्पना ने कहा सोनल रखते हैं माँ इसका नाम बस सोनल बड़ी हो रही थी । उसे स्कूल में भर्ती कराया गया था । वह होशियार थी । एक दिन रोते हुए घर आकर कहने लगी कि मेरे पापा कहाँ है मेरी कक्षा में सबके पापा हैं सिर्फ़ मेरे ही नहीं है । 

कल्पना ने अपने माता-पिता को दिखाया और कहा यह तेरे माँ और पापा हैं ।

उसने मासूमियत से पूछा फिर आप मेरी माँ नहीं हैं । कल्पना ने कहा कि नहीं मैं तुम्हारी बहन हूँ । सोनल खुश होकर नाना नानी को माँ पापा कहकर पुकारने लगी ।

उसने सिविल्स की परीक्षाएँ दीं और अच्छे रेंक लेकर पास हुई । आज वह इस शहर में कलेक्टर बन कर आई है । 

उसके लिए स्वागत समारोह का आयोजन किया गया था । उसी के लिए सब आए हुए थे । पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा था और उसका नाम मइ में एनांउंस हो रहा था । वह अपने विचारों की तंद्रा से बाहर आई देखा सामने बेटी खड़ी थी उसका हाथ पकड़कर स्टेज पर ले गई । 

सोनल ने अपने भाषण में बताया था कि उसकी माँ ने कितनी ही मुसीबतों का सामना किया था । बेटी पैदा होने की सजा सुनाई गई और घर से बाहर निकाल दिया गया आज उन्होंने अपनी मेहनत से मुझे इस मुक़ाम तक पहुँचाया है । यहाँ तक कि उसने अपने आप को मेरी बहन बताया और नाना नानी को मेरे माता-पिता का दर्जा दिया वह भी मेरे लिए । यह है मेरी माँ । इतने बड़े हॉल में सेक्रेटिरिएट में नौकरी करने वाला विवेक ने अपनी माँ पत्नी और तीन बेटियों के साथ बैठा हुआ था । उसने जब कल्पना को वहाँ देखा और सोनल की बातें सुनी तो  अपनी क़िस्मत को कोस रहा था और शर्मिंदा हो रहा था कि लड़की है कहकर घर से बाहर निकाल दी गई बेटी आज पूरे समाज में नाम रोशन कर रही है इसका पूरा श्रेय कल्पना को ही जाता है । उसने मुसीबत का सामना रोकर नहीं बल्कि उसका डटकर सामना किया वह ही बदनसीब था जिसने हीरे को परखने में गलती कर दी थी। उसने देखा सोनल सेक्यूरटी के बीच माँ का हाथ पकड़कर धीरे-धीरे बाहर की तरफ़ जा रही थी । 

के कामेश्वरी

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