रिश्ता हमेशा बराबरी का हीं सही होता है –  पूजा शर्मा   : Moral stories in hindi

अशोक जी के चेहरे पर परेशानी के भाव साफ झलक रहे थे। सुधा जी भी इससे अनजान नहीं थी। वह कभी अपना मोबाइल देखने लगते और कभी टीवी पर अपना मनपसंद कार्यक्रम देखने लगते लेकिन सुधा जानती थी उनका ध्यान कहीं भी नहीं है। क्या बात है आप इतने परेशान क्यों हैं , क्या गौरव आपको पसंद नहीं है?

आप कहो तो मैं आरोही से बात करती हूं। शायद कुछ समझ में आ जाए। नहीं सुधा तुम्हें बात करने की कोई जरूरत नहीं है। आरोही की खुशी में ही मेरी खुशी है। गौरव अच्छा लड़का है मेच्योर है। और सबसे बड़ी बात उसमें कोई शराब सिगरेट का एब भी नहीं है। बस चिंता तो इस बात की है कि उनके और हमारे आर्थिक स्तर में जमीन आसमान का अंतर है।

 अपनी औकात से ज्यादा अच्छी शादी करके भी मैं उनकी बराबरी नहीं कर सकता। रिश्ता हमेशा बराबरी का हीं सही होता है उस घर में पहुंचकर आरोही को कुछ सुनना ना पड़े। यही चिंता मुझे खाए जा रही है।

 दरअसल अशोक जी की बेटी आज अपनी कंपनी के सीईओ गौरव को अपने माता-पिता से मिलवाने के लिए लाई थी। गौरव और आरोही एक दूसरे से प्यार करते थे गौरव ने ही पहली बार उसके सामने विवाह का प्रस्ताव रखा था। गौरव के पिता दिल्ली में ही कपड़े के बहुत बड़े व्यापारी है। गौरव का बड़ा भाई भी एक कंपनी में सीइओ है। उसकी शादी हो चुकी है और उसकी पत्नी राधिका दिल्ली के ही एक बहुत बड़े व्यापारी की लड़की है।

जबकि आरोही के पिता एक प्राइवेट इंटर कॉलेज में मैथ के अध्यापक हैं। उनका बेटा मथुरा के इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ाई कर रहा है। आरोही ने भी दिल्ली से ही इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है। नोएडा में उनका छोटा सा ही घर है। अभी कल की ही तो बात है जब उनके मित्र राम प्रसाद जी की बेटी का रिश्ता भी दहेज की वजह से टूट गया था। उन लोगों की भी कोई डिमांड नहीं थी लेकिन दहेज लेने का अलग ही तरीका खोज लिया था उन्होंने।

उनका कहना था मां-बाप जो देते हैं अपनी बेटी को ही देते हैं हमारे घर तो किसी चीज की कमी नहीं है । अपनी बेटी को कोई खाली हाथ कोई भेजता है हम भी तो तुम्हारी बेटी को लाखों का जेवर चढ़ाएंगे तो आप अपने दामाद को बस एक गाड़ी दिलवा देना हमारी अपनी कोई मांग नहीं है बाकी तो जो आप अपनी लड़की को दोगे वही बहुत है। हमने भी अपनी बेटी की शादी में कैश के साथ-साथ दहेज का सारा सामान दिया था।

रामप्रसाद जी तो गाड़ी देने के लिए मान गए थे लेकिन उनकी बेटी चित्रा ने कड़े शब्दों में उनके बेटे के साथ शादी करने को मना कर दिया था । रामप्रसाद जी का कितना पैसा तो अपनी बेटी के रिंग सेरेमनी के फंक्शन में लग गया था, लेकिन उनकी बेटी ऐसे घर में शादी करने को बिल्कुल तैयार नहीं थी जहां पर उसके माता-पिता को अपनी औकात से ज्यादा खर्च करना पड़े। अपनी बेटी की जिद की वजह से उन्होंने वहां से रिश्ता तोड़ दिया था।इन सब कारणों से ही आरोही के पापा परेशान थे उन्हें भी अपनी बेटी के भविष्य की चिंता हो रही थी।

2 दिन बाद गौरव के माता-पिता भी आरोही को देखने के लिए आने वाले थे वैसे आरोही से तो वह मिल चुके थे। अब तो केवल आपस में बातचीत होना ही बाकी था। उन्होंने सोच लिया था कि रिश्ता करने से पहले वह अपना बजट स्पष्ट रूप से उन्हें बता देंगे जिससे बाद में उनकी बेटी को कोई ताना ना सुनना पड़े। बहुत ज्यादा ना सही लेकिन अपने बच्चों को। किसी चीज की कमी नहीं होने दी मैंने बहुत नाजो से पाला है मैंने अपनी बेटी को, अपनी तरफ से मैं कोई कमी नहीं होने दूंगा अपनी लाडो की शादी में।

2 दिन बाद जब गौरव अपने परिवार के साथ आरोही के घर आया तो गौरव के पिता बिना किसी औपचारिकता के उनसे बोले, भाई साहब अब हम दोनों समधी तो बन ही गए हैं क्योंकि बच्चों की खुशी में ही हमारी खुशी होनी चाहिए। हम पल्ला पसारकरआपसे आपकी बेटी का हाथ अपने बेटे के लिए मांगने आए हैं। भगवान का दिया सब कुछ हमारे पास है बस बेटी नहीं थी भगवान ने दो-दो बेटियां अब मेरी झोली में डाल दी हैं।

अशोक जी उनकी बात का जवाब देते हुए बोले। अशोक जी उनकी बात का उत्तर देते हुए बोले लेकिन भाई साहब कुछ बातें पहले ही साफ हो जाए तो अच्छा है आपकी और हमारी हैसियत में जमीन आसमान का फर्क है मुझे बस यही चिंता है कि मेरी बेटी एडजस्ट हो पाएगी या नहीं अपनी तरफ से पूरी कोशिश करके भी मैं आपका मुकाबला नहीं कर सकता आपकी बड़ी बहू भी बहुत ऊंचे घराने से है हर कोई मां-बाप अपनी बेटी की खुशी चाहते हैं लेकिन मुझे डर है कहीं मेरी बेटी में हीन भावना ना आ जाए ।

गौरव के पापा उनके संकोच को समझते हुए। बड़ी ही सहजता से बोले, समधी जी हमेशा देने वाला लेने वाले से बड़ा होता है आप तो अपने कलेजे का टुकड़ा हमें दे रहे हैं आपके मुकाबले में तो हमारी हैसियत बहुत छोटी है बस मैं अपनी दोनों बहूओ से इतना जरूर चाहता हूं कि वह आपस में बहनों की तरह प्यार से रहे ।आप अपनी बेटी को जो कुछ भी देंगे वह मुझे सहर्ष स्वीकार है। अपना सुकून गिरवी रखकर और किसी से कर्ज लेकर आप अपनी बेटी को विदा मत करना आपकी बेटी हमारे घर में लक्ष्मी बनकर जाएगी तो बरकत भी घर में खुद आ जाएगी। विवाह केवल दो व्यक्तियों का नहीं दो परिवारों का आपसी सामंजस्य भी है।

अब हम संबंधी बन गए हैं एक दूसरे की परेशानी को समझना हमारी जिम्मेदारी है। इंसान को अपनी चादर के अनुसार ही पैर पसारने चाहिए , हमें भी दिखावे में बिल्कुल यकीन नहीं है।अशोक जी और उनकी पत्नी गौरव के पिता को देखकर सोच रहे थे कि सच में हम कितने भाग्यशाली हैं जो रमेश जी जैसे समधी मिले यकीन नहीं आता आज भी ऐसे देवता समान लोग दुनिया में हैं जो बुलंदी पर पहुंच कर भी अपने पैर हमेशा जमीन पर रखते हैं।

इतनी देर में गौरव की मम्मी अपने गले से चैन निकाल कर आरोही के गले में डाल देती हैं और कहती है समधन जी अब हमारी आरोही आपके घर शादी के बंधन में बंधने तक हमारी अमानत है। हां समधन जी बिल्कुल , बेटियों की ससुराल में अगर आपके जैसे लोग हो तो लड़की के पिता को फिर कोई चिंता करने की जरूरत नहीं है। गौरव और आरोही भी एक दूसरे को देखकर मुस्कुराने लगे।

 दोस्तों कमेंट करके जरूर बताएं आपको मेरी रचना कैसी लगी।

 पूजा शर्मा 

स्वरचित।

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