हृदयपरिवर्तन – डाॅ उर्मिला सिन्हा: Moral stories in hindi

  मौसम के बदलाव का रुख भांपने में किसी न किसी को महारत हासिल रहता है और स्त्रियों को अपने घर-गृहस्थी में मेहमानों का आवागमन… शायद ही आनंदित करता हो। 

 नाक पर गुस्सा लिये मीता की बड़बड़ाहट चालू थी, “अब फिर वे लोग आने वाले हैं… खुद तो मौजमस्ती करेंगे… शामत आयेगी हमारी!”

“कौन आ रहा है, जरा मैं भी तो सुनूं “वरुण को  अस्पताल जाने की देर हो रही थी अतः जुर्राबे पहनता पत्नी की ओर देखा। 

“तुम्हारे भाई भाभी… बच्चों के साथ.. “मीता साडी़ का तह लगाने में व्यस्त थी। 

“इसमें चिंता की क्या बात है, उनका घर है जब चाहें आवै… कोई रोक थोड़े ही है “गाड़ी की चाबी लिये वरुण आगे बढा।  

मीता शिकायती लहजे में बच्चों का हाथ खींचते गाड़ी पर बैठ गई।

  वरुण डाॅक्टर है ..जिस पेशे का प्रथम उसूल समय की पाबंदी। मीता कॉलेज में पढाती है… उसको भी समय पर पहुचना आवश्यक होता है। 

दोनों जल्दी में थे। बच्चों को स्कूल छोड़ना… अतः बात जहाँ  थी वहीं रह गई। 

दो दिनों के बाद बेटे- बेटी की वार्षिक परीक्षा  शुरू होने वाली है… मीता का मनो-मष्तिष्क  उसी को लेकर तनावग्रस्त है। 

   कॉलेज से आकर बेटा-बेटी को पढाने बैठी… वह एक ही गलती बार-बार  दुहराने लगा… मीता झुंझला पड़ी। 

“इस बार तुम्हारा फेल होना निश्चित है… पढने में  मन नहीं लगता और कल तुम्हारे चाचा-चाची आ रहे हैं… बाल-बच्चों के साथ… जब-जब  तुमलोगों की परीक्षा रहती है… उसी समय वे लोग डिस्टर्ब करने आयेंगे जरुर.. पता नहीं उन्हें मुझसे और मेरे बच्चों से कौन सी दुश्मनी है। “

 वरुण  अस्पताल से आकर चाय की कप मुँह में लगाया ही था उसे मीता का यूं बात-बात पर झींखना… बुरा लगा। 

“तुम्हारे बच्चों की परीक्षा है तो कोई आये-जाये नहीं.. बिना किसी कारण के क्लेश करने का तुम बहाना ढूंढती रहती

 हो। ” 

फिर क्या था मीता  चिल्लाने लगी, “मैं क्लेश करती हूं… छोटे बच्चों को पढाना कितना कठिन कार्य है… कभी पढाओ तब समझो… उनके बच्चों की परीक्षा हो गई… मौजमस्ती के लिये यहाँ आ जाते हैं… अपने साथ-साथ दुसरों के  दुख-सुख का भी ख्याल रखना चाहिए। “

  “खूब पढाती हो अपने बच्चों को… दोनों का रिपोर्ट कार्ड  लाल धब्बों से  भरा रहता है “वरुण चिढ़ गया। 

  “यह तुम्हारे बच्चे… तुम्हारे बच्चे क्या लगा रखा है… इन बच्चों के पिता हो तुम.. तुम क्यों नहीं समय निकालकर पढाते इन्हें… हर खराबी के लिये मुझे ही जिम्मेदार ठहराते हो… संयुक्त परिवार में रहकर निभाना तलवार के धार पर चलने के बराबर है… और ये मेरे कोखजाये अपने चाचा-चाची और उनके बच्चों का साथ पा पलभर में उनकी रंग में ही रंग जाते हैं …शैतानी में आगे… अभी थोड़ा पढ रहे हैं वह भी चौपट हो जायेगा “मीता हार मारनेवालों में से नहीं थी। 

   दोनों ओर से आरोप-प्रत्यारोपों का तीखा प्रहार होने लगा… बच्चे  समझ गये थे यह गृहयुद्ध तुरंत ख़त्म होने वाला नहीं है अतः पहले बेटा धीरे से खिसका और उसका अनुसरण करती नन्ही भी पीछे-पीछे चली गई। 

मीता बहस करते करते रोने लगी। वरुण को यूं उच्च शिक्षित पत्नी का छोटी-छोटी बातों को तिल का ताड़ बना लड़ाई करना… रोना बिल्कुल पसंद नहीं आता था। पत्नी के स्वभाव की यह सबसे बड़ी खामी थी… वह अपनी ही बातों समस्याओं को तरजीह देती और आये दिन फसाद खड़ा करती। फलतः वरुण का मन खट्टा हो जाता। 

  वरुण का छोटा भाई  करुण दुसरे शहर में रहता था जब भी बच्चों की छुट्टी होती या तीज-त्यौहार  होता वह सपरिवार यहाँ आ जाता। उसके आने से घर में रौनक आ जाती। वृद्ध माता-पिता खुश हो जाते। 

   करण की पत्नी सुंदर शांत स्वभाव की थी। जबतक रहती सास-ससुर के आगे पीछे करती रहती… पूरे परिवार का ख्याल रखती। उसके दोनों बेटे कक्षा में प्रथम आते। वह परिश्रमी खुशमिजाज़ और रिश्तों को अहमियत देने वाली लड़की थी फलतः सबकी प्यारी भी थी। 

लेकिन मीता से उसकी घनिष्ठता हो नहीं पाई थी। मीता को अपने उच्च शिक्षा ,कॉलेज की नौकरी …पति का डाॅक्टर होना… सर्वश्रेष्ठ का घमंड…की अहमभावना कूट-कूट कर भरी थी। वहीं देवरानी नुपूर साधारण परिवार की ग्रैजुएट कन्या थी। उसके पति की हैसियत भी ऊंची नहीं थी। लेकिन दोनों पति-पत्नी अपने सद्गुणों से  सबके चहेते थे। उनके बच्चे मेधावी और अनुशासित थे… यह सब मीता को फूटी आंखों भी नहीं सुहाता था। 

   मीता को आज कॉलेज से आने में देर हो गई… वह भीतर ही भीतर कुढती लडने का प्लाॅट  तैयार करती झुंझलाती गृह में प्रवेश किया… क्या  देखती है…देवरानी नुपूर इसके दोनों बच्चों को बैठाकर तन्मयता से पढा रही है और बच्चों को ऐसा मन लगाकर खुशी-खुशी पढते देख उसे अपने आंखों पर सहज विश्वास नहीं हुआ, “अरे वाह, आज बहुत पढाई  हो रही है “!

नुपूर सहम  गई, “दीदी छोटे बच्चों को पढाने लायक हूं! “

“हुंह”मीता का अहंकारी छोटा दिल… यह सब मानने को तैयार नहीं। 

   लेकिन उस दिन से एक परिवर्तन  हुआ …मीता के बच्चों को पढाने खिलाने सुलाने की खुली छूट नुपूर को मिल गई… देवरानी जेठानी के चारों बच्चों के धमाचौकड़ी से हवेली गुलजार हो उठा। वृद्ध सास-ससुर को भी आनंद आने लगा। 

  बच्चों की परीक्षा खतम हुई… मीता अपनी नौकरी को ज्यादा  समय देने लगी और नुपूर बच्चों को कभी इस पार्क कभी म्युजियम… दर्शनीय स्थलों का सैर कराने लगे। 

  बच्चों के नीरस जीवन में बहार आ गई। नुपूर जेठ-जेठानी के खाने पीने पसंद नापसन्द का ध्यान रखती। फलतः मीता और वरुण ..पति-पत्नी के रिश्ते में मिठास घुलने लगी। 

  आज बच्चों का परीक्षाफल आया… दोनों बच्चे सभी विषयों में उत्तीर्ण थे… एक भी लाल धब्बा नहीं। 

  डाॅ वरुण उछल पड़े, “वाह नुपूर तुमने तो कमाल कर दिया… कितना अच्छा होता करुण अपना ट्रांसफ़र यहीं करा लेता और सब साथ रहते… बताओ तुम्हें क्या उपहार चाहिए !”

    नुपूर कुछ बोले कि इसके पहले ही अपने स्वभाव से मजबूर मीता कलह करने के लिए आगे बढी की तलमला कर गिर पड़ी। सिर फट गया पैर मुड़ गये। 

 पति ही डाक्टर थे… तुरंत मरहम पट्टी हुआ… बेड रेस्ट अलग से। 

    “दीदी, आप ठीक हैं न… चिंता न करें.. मैं हूँ न सब संभाल लूंगी। “

   दर्द और  नुपूर की नेकनीयती से मीता जल उठी, मन ही मन बोली, “पहले बच्चे और अब पति सबपर  इसने काला जादू कर रखा है… हुंह। “

    मीता को देखने उसके माता-पिता आये। उस बुजुर्ग दंपति ने जब नुपूर का निश्छल प्रेमल सभी के दुख-सुख का ख्याल करते देखा और अपनी बेटी मीता का झूठा अहंकार… बिस्तर पर पडे़-पडे़ पैंतरेबाजी  से वे द्रवित हो गये, “मीता तुम  किस्मत वाली हो जो तुम्हें इतना सम्मान करने वाला पति, प्यारे-प्यारे दो बच्चे… चिंता करने वाले सास-ससुर और इतनी समझदार एक  पैर पर तुम्हारे कड़वी बोली के बावजूद भी तीमारदारी करने वाली देवरानी मिली है। “

“मगर मां, मैं ज्यादा पढी-लिखी हूं… हमदोनों ज्यादा कमाते हैं “मीता की हेठी कम नहीं हो रही थी। 

 “पढाई-लिखाई, ज्यादा कमाई… अपनी-अपनी किस्मत है अतः परिवार और रिश्तों से इसको तौलना कहाँ तक उचित है। अभी भी आंखे खोलो …तुम्हारी देवरानी हीरा है… जौहरी बनकर उसे गले लगाओ…प्यार दो.. .सम्मान पाओ!”

   माता-पिता चले गये लेकिन मीता के सामने एक प्रश्न छोड़ गये…. देर से ही सही मीता ने स्वीकारा, “नुपूर यहाँ आओ मेरे पास बैठो और बताओ तुम्हें क्या चाहिए। “

  जेठानी की आंखों में अपने लिए प्यार और हृदयपरिवर्तन देख नुपूर का दिल भर आया, “सब कुछ मिल गया दीदी “दोनों के सम्मिलित खिलखिलाहट से  चारों ओर खुशियां बिखर गई। आपसी मेलजोल… अपनों का प्यार …साथ सर्वोपरि। 

सर्वाधिकार सुरक्षित मौलिक रचना -डाॅ उर्मिला सिन्हा

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