फैसला – पुष्पा ठाकुर : Moral stories in hindi

” बेटा , परेशान मत हो ,सब ठीक हो जाएगा।इस तरह परेशान होकर किसी भी समस्या का हल नहीं निकाला जा सकता और अभी हम हैं न तेरे साथ?

   बहू की हालत ऐसी है कि उसे, उसके मायके में रखना ही एक हल है। वहां उसकी मां,भाई और भाभी सभी हैं। फिर हम नर्स भी तो लगा रहे हैं।

तुम अपने आप को संभालो , देखो पीहू अभी छोटी है,बहू के साथ जो भी हुआ है, उसमें हम तो दोषी नहीं हैं ।

बहुत कुछ सोच समझकर हम सभी ने ये फैसला लिया है। “

अश्विन की मां उसे समझा रही थीं।

  छोटी सी पीहू लगातार पापा से लिपटकर रो रही थी और एक ही बात कह रही थी – “पापा,प्लीज़ मम्मा को यही रहने दो न, मैं मम्मा के बिना नहीं रहूंगी, मुझे भी मम्मा के साथ जाने दो ।”

“बेटा , मम्मी बीमार हैं ,उनकी मम्मा, उनकी केयर करेंगी या आपकी? डाक्टर अंकल ने बोला है न ,अच्छी केयर होगी तो सालभर में मम्मा ठीक होकर वापस आ जाएंगी।”

   कहते हुए पीहू की दादी ने उसे अपनी ओर खींचना चाहा।वो रोते हुए बेबस अपने पिता को तक रही थी।

कहते हैं जिंदगी रंग बदलती है।सुख और दुख सबकी जिंदगी में आते हैं,जाते हैं लेकिन ये बात मासूम बच्चे क्या जाने? उन्हें तो ये भी नहीं पता कि जिंदगी क्या होती है, उनके लिए तो उनकी मां ही पूरी दुनिया होती है।

कल तक जिस घर में पीहू की खिलखिलाहट हरदम गूंजती रहती थी,आज बस उसकी सिसकियां रह गई हैं ।

   उसे बस इतना पता है कि रोज की तरह उस दिन भी वो आंगन में साइकिल चला रही थी और अपनी मम्मी के आफिस से आने का इंतजार कर रही थी ।शाम से रात हो गई पर मम्मी नहीं आई । उसके बाद पापा को एक काल आई और पापा के हाथ से फोन छूटकर गिर गया। कुछ ही देर में पीहू ने सुना कि मम्मी की गाड़ी को किसी कार ने पीछे से ठोकर मार दी, जिससे वो ओवर ब्रिज से सीधा नीचे जा गिरीं। उनके पैर टूट चुके हैं और वो कोमा में हैं।पूरा परिवार सकते में आ गया।

   महीने भर के बाद ,पीहू की मम्मी राखी अस्पताल से वापस घर लाईं गई थीं।वो कोमा से बाहर आ चुकी थीं लेकिन अभी अपने कोई भी काम खुद कर पाने में सक्षम नहीं थीं।

हालात देखकर सभी ने’ फैसला ‘लिया था कि राखी की हालत में सुधार होते तक उसे मायके,उसकी मां के पास रखा जाएगा।

        “बेटा,चलो गाड़ी आ गई।”पीहू की दादी ने उसके पिता अश्विन को थपथपाते हुए कहा।

अश्विन खड़ा हुआ और राखी के पलंग के पास जाकर उसके हाथ थामते हुए बोला –

“सात जन्म का वादा तो नहीं करता, लेकिन इस जन्म में मैं तुम्हारा साथ आखिरी दम तक निभाऊंगा। शादी के बाद ही मेरा एक्सीडेंट हो गया था,तब तुमने दिन रात एक कर दिए थे मेरी देखरेख में। तुम चाहतीं तो तब तुम मायके चली जातीं कि मेरा परिवार यहां है।जब तुमने हर हाल में मेरा साथ निभाया है तो मैं कैसे तुम्हें अकेला छोड़ दूं। हमारी जिंदगी एक है, हमारे दुख अलग कैसे हुए।

पीहू, मम्मा कहीं नहीं जाएगी,वो अपने घर में आराम से रहेंगी और हम हैं न …हम करेंगे मम्मा की केयर।”

   अश्विन का ‘फैसला ‘सुनकर सभी निशब्द हो गए।

मेरी कहानी को अपना अमूल्य समय देने के लिए आपका हृदयतल से आभार। कृपया कमेंट कर जरुर बताइएगा कि ये सच्ची कहानी कैसी लगी और अश्विन का फैसला सही है या नहीं?

   लेखिका – पुष्पा ठाकुर

छिंदवाड़ा मप्र 

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