बुढ़ापा कष्टकारी ना देना भगवन् -रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

“ कै हई…?”फोन पर नित्या और उसके बेटे को देखते हुए उसकी नानी ने अपनी बेटी से पूछा 

“ प्रणाम नानी… तुम्हारी निति और ये तुम्हारा परनाती देखो।” कहते हुए नित्या अपने बेटे कुशाग्र को नानी को देख कर प्रणाम करने बोली 

“ आहहा निति कैसी है मेरी बच्ची…. नानी की याद नहीं आती जो कभी मिलने तक नहीं आती…. और मेहमान ( नित्या के पति) कैसे हैं … ये तेरा बेटा कब हो गया निति … मुझे किसी ने बताया भी नहीं…. ।”

“ क्या नानी भूल गई आई तो थी तुम इसकी छठी में…. कितने गीत गाए थे सब भूल गई..?”

“ अब बुढ़ापे में कितना याद रहेगा बेटा ये तो मोबाइल में तेरी माँ तुझे दिखा भी देती नहीं तो ई बुढ़ापा मे हम नाती नातिन के लिए तरसती रहती ।” नानी उदास हो कर बोली चेहरे पर झुर्रियों का पहरा लगा था….पर नाती नातिन का मोह आज भी पहले जैसा ही बरकरार था

नित्या नानी को देख जहाँ ख़ुश हो रही थी वही अंदर ही अंदर उसका हाल देख रो रही थी…. 

“ माँ नानी की तबियत ठीक तो है ना…क्या हो गया उनको जो तुम अचानक उन्हें देखने पहुँच गई…चलो ये भी अच्छा रहा कि तुमने मुझे विडियो कॉल कर के नानी से मिलवा दिया…. नहीं तो मामा मामी कहाँ ही बात करने देते हैं।”

“ बेटा कुछ दिनों से मुझे पिताजी सपने में आ रहे थे…. लग रहा था कह रहे हो जाकर माँ को देख लो अब वो भी मेरे पास आने को व्याकुल हैं पर तुमसे मिले बिना उसकी आत्मा चैन कहाँ पाएँगी… बस फिर क्या था मैं आ गई माँ को देखने।” माँ ने कहा 

नित्या आज नानी को देख कर उसके बारे में ही सोचने लगी….

नानी घर जहाँ उसका अधिकांश बचपन गुजरा था…. ढेरों फलों के पेड़…. जिनपर सब भाई बहन लटके रहते थे…. नानी नाना दोनों जी भर कर हम पर प्यार लुटाते थे …. दो साल पहले नाना क्या गए नानी दिन रात नाना के गम में रहने लगी….बार बार यही कहती बुढ़ापा भी साथ गुजार कर साथ ही ले चलते ।

कुछ दिन माँ नानी को बहुत ज़िद्द कर के अपने साथ ले आई थी ये सोच कर कि यहाँ पर माँ बेटी साथ रहेगी तो मन लगा रहेगा पर इस उम्र में भी नानी की एक ही ज़िद्द,“ बेटी के घर ज़्यादा दिन तो पहले नहीं रहती थी तो अब कैसे रहूँगी…. ना ना मुझे मेरे घर पर ही रहने दे।”

नानी के बाल जो पहले हमेशा चोटी बँधे रहते थे अब छोटे छोटे दिख रहे थे…. जो नानी हमेशा सिर पर पल्लू लेकर रहती थी अच्छे से साड़ी बाँधतीं थी आज अपने पोते के टी-शर्ट और पेटीकोट में बैठी थी…. लाचार हो गई थी बच्चों का तरह कब शूशू हो जाए उसे पता तक नहीं चलता था…. जब गीला गीला लगता तो कहने लगती देखो कौन पानी डाल गया रे… तब मामी ग़ुस्सा करते हुए उनके कपड़े बदलती ….पहले तो नानी को नाइटी पहनाया जाता रहा पर  अब हर बार पूरे कपड़े बदलना मुश्किल होने लगा था इसलिए मामी बेटे का टी-शर्ट पहना देती….जब उनके 

खाने पीने पर पाबंदी लगी तो नानी नखरे दिखाने लगती …. मामी नहीं देती तो वो भूखी रह जाती…अब तो मामा भी नानी को डपट देते..,“ ये क्या नाटक लगा रखा है….. चलने फिरने लायक़ भी नहीं रही हो फिर भी नखरे कर रही हो… माँ देखो जो मिलता है चुपचाप खा लो…. हर दिन के तमाशे में मेरा घर आने का भी मन नहीं करता है ।”

ये सब सुन कर नानी चुपचाप जो रूखा सूखा मिलता खा लेती…. कई बार रोटी कड़ी हो जाती तो पानी में भिगोकर मुलायम कर के खाती ….

ये सब नित्या को उसकी माँ ने बताया था जिन्हें उनके पड़ोसी गाहे-बगाहे फोन कर उनकी माँ का हाल बता दिया करते थे क्योंकि मामा मामी से जब भी बात होती यही कहते…अब उम्र हो रही है माँ की बुढ़ापे में हारी बीमारी तो लगी रहती है…आप चिन्ता नहीं करे हम है ना सब करने के लिए….. कभी-कभी माँ को ये लाइनें चुभ सी जाती थी…. ऐसा नहीं था कि वो करना नहीं चाहती थी आख़िर वो उनकी भी माँ है ….पर नानी कभी माँ के पास रहने को तैयार ही नहीं होती थी….हमेशा नानी एक ही बात कहती रहती थी बुढ़ापा कष्टकारी ना देना भगवन्…देना लिखा हो तो मौत दे देना …पर कष्ट ना देना ।

 ये सब सोचते सोचते नित्या कुशाग्र के साथ वही सोफे पर सो गई थी।

मुश्किल से कुछ दिन ही गुज़रा होगा कि एक दिन माँ का कॉल आया…रोती बिलखती माँ बस इतना ही कह पाई,“ माँ चली गई नित्या…. बाबूजी के पास…. देख बाबूजी ठीक ही कह रहे थे…. माँ कष्ट में रहने लगी थी और मेरे बाबूजी माँ को कभी कष्ट में रखे ही नहीं थे अब जब माँ कष्ट में आई तुरंत उन्हें भी अपने पास बुला लिया…. मैं अभी वही जा रही हूँ…. जाकर फ़ोन करूँगी बेटा एक बार तू भी आख़िरी बार फोन पर ही सही नानी के आख़िरी दर्शन कर लेना…. सबको याद करती रही और आख़िर में चली गई।”माँ कह कर रोने लगी थी 

नित्या हतप्रभ रह गई….. अभी तो कुछ दिन पहले ही नानी को देखी थी….और बातें भी की थी और आज वहीं नानी सबको छोड़ कर हँसी ख़ुशी चली गई…. वो भी तो जाना ही चाहती थी….. मौत का ही तो इंतज़ार कर रही थी…. ख़ुश होना चाहिए ना नानी को कष्ट से मुक्ति मिल गई पर ना जाने क्यों रह रह कर बुरा लग रहा है शायद माँ के लिए जिसके हिस्से का मायका अब छूट ही गया था क्योंकि जब तक नानी थी वो जाती रहती थी…. मामा मामी को कभी कोई लगाव ही नहीं रहा हम सब से…. कड़वे बोल हमें कभी फिर नानी घर जाने नहीं दिए… माँ भी अपनी माँ के मोह में चली जाती थी पर अब उसके मायके का  दरवाज़ा नानी के जाने के साथ ही बंद हो गया था ।

दोस्तों आजकल बुढ़ापे में बहुत कष्ट उठाने पड़ते हैं…. बच्चे करने वाले हो तो आप समझ लो गंगा नहाए हो …नहीं करने वाले हो तो बस प्रभु से मृत्यु की गुहार ही लगाए रख सकते हैं…. ये सब क्यों होता है कारण खोजे तो वो खुद ही समझ आ जाएगा…. वैचारिक मतभेद अक्सर रिश्तों में दरार ले आता है…. क्यों उस घर की बेटियाँ जो हमेशा अपने माता-पिता की सेवा करती हैं या उन्हें उनके माता-पिता की सेवा करते हुए देखती है अपने घर आकर सब क्यों भूल जाती है….कहीं पर तो कुछ बेटे भी इसके लिए ज़िम्मेदार होते हैं…जो अपने ही माता-पिता के बुढ़ापे को और कष्टकारी बना देते हैं ।

आप इस बारे में क्या सोचते हैं ज़रूर बताएँ ।

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धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

# बुढ़ापा 

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