एहसास- डॉ संगीता अग्रवाल: Moral Stories in Hindi

राखी एक पढ़ी लिखी,इंडिपेंडेंट लड़की थी,खुद कमाती और खूब खर्च करती,एकदम मस्त रहती। बाकी सब तो ठीक था पर शादी का नाम सुनते ही बिदक जाती।

उसके मां बाप परेशान थे,ये ऐसा क्यों करती है,अक्सर उसकी मां उसे समझाती कि शादी बिना इस जीवन का क्या मतलब है,हम कुछ दिन बाद नहीं रहेंगे फिर अकेले कैसे रहेगी?

और सबसे बड़ी बात,उसके घर में रहते,उसके भाई के लिए भी अच्छे रिश्ते नहीं आ रहे थे।

राखी ने ,दरअसल शुरू से अपनी मां को पहले दादी के हाथों ,फिर पिता के हाथों जलील होते देखता,वो लोग कुछ न कुछ ताने मारते, और मां उसे चुपचाप सहती ,ये ही देखा था उसने और उसका कहना था कि मैं बिना गलती के ,मम्मी की तरह   कुछ भी सुननाऔर सहना,बर्दाश्त नहीं करूंगी।

उसे बहुत गुस्सा आता जब उसके पापा,उसकी आराम करती मां को उठाकर अपने लिए चाय बनवाते या कुछ भी मुंह खोलने पर बुरी तरह टोक देते।

मां लिहाज में चुप रहती पर राखी के मन में ससुराल,पति के प्रति एक अनजाना भय,विद्रोह और गुस्से का जन्म लेता रहा।

जब भी मां उसे सिखाती,बेटा!किसी की बात चुपचाप सुनना बहुत हिम्मत का काम होता है,दूसरों को माफ कर देने से अपना ही दिल हल्का रहता है और भारतीय स्त्रियां तो हमेशा से ही सहनशील होती हैं।

आप ही इतनी महान बनो पर मुझे नफरत है ऐसे समाज से जहां ये दोगलापन है,वो कहती,आजकल ईट का जबाव पत्थर से दिया जाता है।बिना गलती कोई कुछ बर्दाश्त नहीं करता।

समय बीतता गया,उसकी उम्र बढ़ रही थी और वो शादी को लिए गए फैसले में टस से मस न होती। एक दिन राखी के पापा,उसकी मां की क्लास ले रहे थे…तुम कितनी जाहिल हो,एक लड़की को ये भी नहीं मना सकतीं कि वो शादी को तैयार हो जाए?

वो सुनती ही नहीं,मैने कहा कई बार…वो दबी आवाज में बोली।

वो फिर बुरा भला कहने लगे थे उसकी मां को, राखी दनदनाती हुई कमरे में गई और बोली,ये मां की वजह से नहीं बल्कि आप की वजह से मैं शादी नहीं करती,मै आप जैसा कोई आदमी अपनी जिंदगी में नहीं चाहती जो बिना गलती मुझे बातें सुनाए, मै कतई बर्दाश्त नहीं करूंगी पापा ये व्यवहार!!

उसके पापा सन्न रह गए…कुछ बोलने को उनके होंठ फड़के थे पर वो चुप लगा गए,वो अपनी पत्नी को ही इसका जिम्मेदार ठहराना चाहते थे पर बेटी की उपस्तिथि से डर गए और डर गए उसके दुष्परिणामों से जो आज उन्हें दिख रहा था अपनी बेटी की जिद में।

समय बदल रहा है..अब लड़कियां पहले की तरह शांत और गम सहने वाली नहीं हैं,वो खुद का बचाव करना जानती हैं,अपने आत्म स्वाभिमान को जिंदा रखने के लिए निर्णय ले सकती हैं इसलिए समाज की मानसिकता बदलनी चाहिए।

धीरे,धीरे राखी के पापा में सुखद बदलाव आ रहा था,उन्हें एहसास हो चुका था कि बिना पत्नी के सम्मान किए वो अपनी बेटी को सुसंस्कार नहीं दे सकते,उसको ये विश्व दिलाना होगा कि वो किसी पुरुष के साथ सुखी और संतुष्ट तभी रह सकती है जब उसने अपने घर में ऐसा देखा होगा।वो ध्यान रखते कि उनकी पत्नी के आत्म सम्मान को चोट न पहुंचाए और इसका सकारात्मक प्रभाव राखी के व्यवहार में दिखने लगा था।

कुछ दिनो में ही राखी की शादी एक सुलझे हुए,सुदर्शन युवक  से हो गई और वो एक खुशहाल जिंदगी जीने लगी थी अब।

संगीता अग्रवाल

वैशाली

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