अंतर्मन की लक्ष्मी ( भाग – 22) – आरती झा आद्या : Moral Stories in Hindi

“आ गईं महारानी घूम घाम कर।” विनया को देखते ही बड़ी बुआ ताना लिपटे हुए शब्दों के साथ उसका स्वागत करती हैं।

“आपके मुॅंह में घी शक्कर बुआ जी।” चरण स्पर्श करती हुई विनया कहती है।

विनया की हाजिरजवाबी पर संपदा खिलखिला कर हॅंस पड़ी और बुआ और बुआ के बगल में बैठा मनीष को भी कोई जवाब नहीं सूझा।

“क्या ठी…ठी करके हॅंसती रहती है।” मंझली बुआ का तेवर देखते हुए संपदा विनया के साथ अंदर कमरे में चली गई।

“कैसी हैं माॅं”… अंजना के पैरों पर झुकती हुई विनया पूछती है।

“हूं ठीक हूॅं।” बोलते हुए अंजना की ऑंखों में विनया के लिए प्रशंसात्मक भाव झिलमिला रहे थे।

अंजना की ऑंखों में झिलमिलाते सितारों को देख विनया ने महसूस किया कि उसे अंजना का समर्थन और स्वीकृति मिल गई। विनया का आने वाले समय के लिए स्वयं के प्रति आत्म–समर्थन बढ़ गया। “मैंने जिस ओर कदम बढ़ाया है, वो व्यर्थ नहीं जाएगा।” अंजना की मुस्कान ने उसमें आत्मबल भर दिया था।

“मनीष वो मैंने बुआ के बेटे बहू को यहाॅं आने का निमंत्रण दिया है। कल सुबह वो लोग पहुॅंच जाऍंगे।” डिनर करने के लिए सबके एक साथ बैठे होने पर विनया जो एक सप्ताह इस बात को मन में दबाए हुए थी, रहस्योद्घाटन करती है।

“कैसे, कब, बिना पूछे तुमने”…. बड़ी बुआ एकदम से चीख पड़ी।

“ये तो अच्छा है ना बुआ, उन लोग के यहाॅं आए भी कितने दिन हो गए। विनया ये तुमने बहुत ही सही काम किया है।” मनीष खुश हो उठा था।

“इस ठंड छोटा बच्चा है, उसे लेकर इधर उधर आना जाना सही नहीं है मनीष।” इस भरी ठंड में भी बड़ी बुआ के ललाट पर स्वेद कण दिखने लगे थे।

“ये इधर उधर कहाॅं है बुआ जी, अगर ये इधर उधर वाली जगह होती तो क्या आप यहाॅं आती। सबसे बड़ी बात उस छोटे बच्चे की देखभाल की दादी हैं यहाॅं और हम सब भी तो हैं। आप चिंता मत कीजिए बुआ।” सबके प्लेट में रोटी सर्व करती विनया कहती है।

“बिल्कुल, हम सब हैं बुआ। वैसे भी आपके रहते किसी को क्या दिक्कत हो सकती है। हमारे चक्कर में वो मासूम अपनी दादी के प्यार से वंचित रह जाता है।” मनीष विनया की ओर प्रशंसा के भाव से देखता हुआ कहता है।

“लेकिन”…

“लेकिन वेकिन कुछ नहीं बुआ, बहुत मजा आएगा। भैया भाभी की शादी में भी दोनों नहीं आ सके थे।” संपदा बुआ के मुॅंह में रोटी का एक टुकड़ा देती हुई कहती है।

“विनया तुमने संभव और कोयल को आमंत्रित कर अच्छा किया। लेकिन दामाद जी को आमंत्रित क्यों नहीं किया।” अंजना विनया से बुआ के पति के बारे में पूछती है।

“मम्मी, अच्छा किया भाभी ने, पानदान हैं वो।” फूफा के बारे में हॅंसती हुई संपदा कहती है।

“पानदान?”… पूछते हुए विनया की ऑंखें फैल गई थी।

“उनका मुॅंह दिन भर से भरा रहता है भाभी। जब बोलेंगे तो आधी बात तो पान के साथ ही चबा जाते हैं। फिर कहेंगे मेरी तो कोई कद्र ही नहीं है।” पान चबाने की एक्टिंग करती हुई आवाज भारी करके संपदा कहती है।

“गलत बात है संपदा। बड़े हैं वो तुम्हारे।” अंजना कहती है।

“पहले जब भी आते थे, उनके पान में चुना, कत्था लगा कर देने की जिम्मेदारी मुझे सौंपा जाता था। भाभी कभी कभी तो इच्छा होती थी पान की दुकान ही कर लिया जाए।” संपदा के साथ साथ अब विनया भी हॅंसने लगी थी।

अंजना के चेहरे पर डर की रेखा स्पष्ट थी, जब उसने संपदा से कहा, “संपदा तुम्हारी बुआ को इस तरह हंसना बोलना पसंद नहीं है। धीमे बोलो।” उसकी आँखों में छिपा हुआ भय और डर उसके व्यक्तित्व को छूने लगे, जैसे कि वह खुद को सामने बैठी संजीवनी बूँदों से बचा रही हो।

“क्या मम्मी, अब तो”…बोलती हुई संपदा अंजना के चेहरे पर डर देख विनया के ऑंखों में “ना” का भाव को समझ कर चुप हो गई। संपदा अच्छे से समझती है कि विनया किसी की भी भावनात्मक स्थिति उसकी अपेक्षा बेहतर समझती है। इसलिए वो कुछ बोलने से पहले एक बार विनया की ओर देखना पसंद करती है।

भाभी, आपने उस समय मुझे मम्मी से बोलने से मना क्यों कर दिया। अपने अपने कमरे में अपने अपने बिस्तर पर लेटी हुई विनया और अंजना संदेशों का आदान–प्रदान कर रही थी। संदेश भेजते हुए उसके चेहरे पर शंका और जिज्ञासा की अभिव्यक्ति थी, जो उसकी उत्सुकता को दर्शाती थी। विनया भी उसकी तरफ ध्यान दे रही थी, जिससे यह स्थिति और भी रोचक बन रही थी।

विनया ने संपदा के संदेश की ओर मुस्कान सहित देखा और प्यार भरे भावनाओं के साथ लिखने लगी, “विनया, मम्मी पिघल रही हैं, लेकिन पूरी तरह से अभी पिघली नहीं हैं। वो जो बर्फ का ठोस गोला बचा है ना, वो तो हावी होगा ना, इतने दिनों से उसकी पहचान ही वही थी तो पानी बनने से पहले कई बार वो इसी स्थिति में रहना चाहेगा क्योंकि असहज होते हुए भी वो इसे सहज स्थिति समझने लगा है। हमें आपसी समझदारी और धीमे तरीके से सब कुछ ठीक करना है।” विनया के संदेश को पढ़कर अंजना के चेहरे से संशय की छाया हटी और उसने अपने भाभी की सलाह को सुनते हुए खुद को समझाया।

“सुनो, आज सब कुछ भैया और भाभी की पसंद का बनना चाहिए। मैं भी आधे दिन की छुट्टी लेकर आ जाऊॅंगा।” मनीष टाई का नॉट बाॅंधता हुआ विनया से कहता है।

लेकिन उनकी पसंद”… 

“बुआ से पूछ लो, बुआ को सब पता होता है।” मनीष विनया की बात बीच में ही काट कर कहता है।

“बुआ जी, भैया भाभी को खाने में क्या क्या पसंद है, बता दीजिए तो आज वही सब बनेगा।” जैसे ही मनीष कमरे से बाहर आता है विनया जान बूझकर उसी समय बुआ से पूछती है।

“मुझे क्या मालूम, किसे क्या पसंद है।” बुआ चिड़चिड़ाती हुई तुनक कर कहती हैं।

“लेकिन मनीष कह रहे थे आपको सबकी पसंद नापसंद मालूम है।” विनया साफ सफाई करती हुई कहती है।

“पसंद नापसंद, यही काम”… बड़बड़ाती हुई बुआ घूमती हैं तो मनीष को खड़े देख बात बदलती हुई कहती हैं, “बहू दोनों जगह की देखभाल करते हुए पसंद नापसंद याद रखने का समय कहाॅं मिल पाता है।”

विनया के चेहरे पर उत्तेजना और आश्चर्य की रंगत दिखने लगी थी, जब उसने बुआ जी का गिरगिट की तरह बदलते रंग को देखा। पहले तो वह खिन्न हो गई, जैसे कि कोई नई चुनौती का सामना कर रही हो, लेकिन फिर एक मुस्कान उसके होने वाले स्वीकृतिवादी भावना को दर्शाती हुई सामने आई। उसकी मुस्कान में समझ, समर्थन और साहस की एक नई दिशा छुपी थी, जिसने उसकी छवि में एक सकारात्मक परिवर्तन को दर्शाया। इस बदलाव ने उसके अंदर नई ऊर्जा का स्रोत प्रकट किया और उसे आने वाले समय के साथ सही सामंजस्य स्थापित रखने के लिए तैयार किया।

“हम सुबह से आपकी प्रतीक्षा में बैठे हैं संभव भैया।” संपदा संभव और कोयल का स्वागत करती हुई कहती है।

“ठंड का मौसम में पसरे कुहासे में हमारी रेलगाड़ी कुहासे से आज्ञा ले लेकर हिचकोले खाती हुई आगे बढ़ती है और उसी हिचकोले में हम बैलगाड़ी का आनंद लेते हुए गंतव्य तक पहुॅंचते हैं।” संभव सोफे पर बैठता हुआ मजाकिया लहजे में कहता है।

मम्मी नहीं दिख रही हैं, चारों ओर देखता हुआ संभव अंजना की ओर देखकर पूछता है।

“मंदिर गई हैं, आती ही होंगी।” अंजना बताती है।

“कोयल भाभी आप आराम से बैठिए और इस गोलू मोलू को मुझे दीजिए।” संपदा उनके बेटे गोलू को अपनी गोद में लेती हुई कहती है।

“सॉरी सॉरी भैया, सॉरी भाभी, मैं लेट हो गया।” मनीष घर के अंदर प्रवेश करता हुआ कहता है।

“अरे भाई, हम भी अभी आए हैं।” मनीष से गले लगता हुआ संभव कहता है।

“आप सब फ्रेश हो जाइए। लंच का समय हो चला है, लंच किया जाए।” विनया कोयल से कहती है।

“ये सब तो होता रहेगा, सच में मामी, आपकी बहू तो बहुत ही रूपसी है। स्वर्णप्रभा नाम होना चाहिए था आपका। स्वर्ण की तरह चमकता सौंदर्य है आपका।” कोयल विनया को अपने बगल में बिताती हुई कहती है।

कोयल की इस मिठास भरी तारीफ ने विनया शरमा गई थी और पहली बार मनीष उसे इतने गौर से देख रहा था। जब उसने इस स्थिति का सामना किया तब उसके चेहरे पर शर्म और आनंद का अद्वितीय मिश्रण छा गया था। पहली बार मनीष ने भी उसे इतने गौर से देखा था और वह उसकी मुस्कराहट की आलोकमाला में खो गया था। विनया की शर्मीली मुस्कान और कलाकृति जैसी प्रतिमूर्ति ने भावनाओं का यह अनूठा मेल हर किसी को अच्छी तरह से महसूस करवा दिया था।

विनया की शर्मीली मुस्कान के साथ कोयल की मिठास ने एक खास और प्यार भरा पल बना दिया। वह पहली बार ऐसे ध्यान से और इतनी समर्पितता से मनीष की दृष्टि में आई थी कि उसकी आत्मा में कुछ नया उत्थित हुआ। मनीष भी उसकी मुस्कराहट में इस एक पल में गुमनाम सा हो गया और उसकी दिल की धड़कनें इस सुंदर साझेदारी में बढ़ने लगीं। इस अद्वितीय मोमेंट में विनया को ऐसा प्रतीत हुआ की जिस क्षण की वो व्यग्रता से प्रतीक्षा कर रही है, उसका नया अध्याय शुरू होने वाला है, जो उन दोनों को एक-दूसरे के साथ और भी क़रीब ले आएगा।

“क्या मनीष भैया, इससे पहले हमारी स्वर्णप्रभा को आपने नहीं देखा था। खा जाने वाली नजरों से घूरे जा रहे हो। कहीं हमारी देवरानी से पुनः प्यार–व्यार तो नहीं हो गया आपको।” कोयल मनीष की ठहरी पलकों को देखती हुई मजाक बनाती भाभी धर्म भी निभा रही थी।

“नहीं नहीं भाभी, इसे तो दे इधर।” झेंपता हुआ मनीष संपदा के हाथ से गोलू को अपनी गोद में लेता हुआ कहता है।

“क्या संपदा जी आप भी, आज से गोलू को इनके पास ही रहने दीजिए। थोड़ी प्रैक्टिस हो जाएगी तो हमारी देवरानी को भविष्य में आराम रहेगा।” कोयल मनीष को छेड़ने के मूड में थी।

“भाभी मैं माॅं के साथ जरा किचन देखती हूॅं। आपलोग फ्रेश हो जाइए।” कोयल की बात पर मनीष और विनया नजरें मिली और विनया हड़बड़ा कर उठती हुई कहती है।

“ठीक है देवरानी जी, जो हुकुम।” कहती हुई कोयल खिलखिला पड़ी थी।

“बुआ कहाॅं हैं संपदा।” मनीष दोनों बुआ को अनुपस्थित देख पूछता है।

“मंदिर गई हैं भैया।” संपदा बताती है।

“अभी।” घड़ी में समय देखता हुआ मनीष कहता है।

“मेरी माॅं काम बढ़ते देख नदारद हो ही जाती हैं। आ जाएंगी।” संभव खड़ा होता हुआ चिंतित मनीष का कंधा थपथपा कर कहता है और फ्रेश होने के लिए चला गया। गर्भनाल का जुड़ाव ऐसा होता है कि बच्चे को एक माॅं और माॅं को उसके बच्चे से ज्यादा ना कोई जान सकता है और ना ही समझ सकता है। संभव अभी इसी का उदाहरण बना हुआ अपनी माॅं के स्वभाव के बारे में बता रहा था क्योंकि उसे अपनी माॅं का तिकड़म करना कभी पसंद नहीं आया था, जिसकी परिणति थी की दोनों ही एक दूसरे के साथ माॅं–बेटे की तरह कम और अपरिचितों की तरह ज्यादा ही पेश आते थे।

मनीष के अलावा अभी उस घर में सब नई परिस्थिति को एंजॉय करते हुए मगन थे और मनीष गोलू को संपदा के हवाले कर बालकनी में जाकर बुआ की टोह लेने की कोशिश करता है, कहीं वो दोनों आती हुई दिख जाएं। सोचता हुआ मनीष बालकनी में खड़ा सड़क के पार तक देखने का प्रयास करने लगा।

“भैया और भाभी के आने से थोड़ी ही देर में घर कितना गुलजार हो गया ना माॅं।” किचन में अंजना की सहायता करती हुई विनया अंजना से कहती है। 

विनया के इस वाक्य से अंजना स्पष्ट तौर पर समझ रही थी कि है कि घर के माहौल में खुशियों को महसूस करने के लिए उत्सुक है। उसका सहानुभूति और भावनात्मक संवाद घर की सुख-शांति को बढ़ावा देना चाह रहा है, जो उनके परिवार के सदस्यों के बीच एक मधुर संबंध का आदान-प्रदान कर सकता है।

अंजना ने विनया की भावनाओं को समझते हुए भी उसके इस वाक्य का उत्तर सिर्फ “हूं” करके दिया। इससे यह लगता है कि अंजना भले ही उसे समझ रही हो लेकिन वह अभी तक खुद की भावनाओं को व्यक्त करने में हिचकिचा रही थी।

आरती झा आद्या

दिल्ली

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