रेनू मां मां ••••चिल्लाते हुए अंदर आई बोली मां मैं आ गई •••
अरे मेरी प्यारी मीसा बेटू कहां है •••रेनू के कहते ही तब उसकी मां बोली- “अरे बेटा चैन की सांस लेकर थोड़ी बैठ तो जा …और चाय ,पानी पी ले। फिर बुला लेना।”
हां- हां मां मैं पानी पी लूंगी।और चाय भी पी लूंगी पहले ये तो मीसा बेटू कहां है…वो मीसा… मीसा… आवाज़ लगाने लगती है,तभी भाभी ननद की आवाज़ सुनते ही पानी ले आती है। दीदी सब बढ़िया,आप बैठो ,मां से बात करो,तब तक मैं चाय बना कर लाती हूं।
फिर मां से रेनू पूछती -अरे मां मेरी प्यारी भतीजी मीसा कहां है? तब वे कहती – यही कहीं खेल रही होगी।तभी सरला जी कहती हैं-बहू मीसा को बुला कहां है।वो, उसे कहना कि बुआ आई है।
हां मां जी बुला रही हूं।
फिर वह चाय बनाकर मीसा को बुला लाती है। फिर रेनू सबको हैप्पी होली कहती-” मम्मी मैंने सोचा यहां मार्केट तक आई तो तुम सबको हैप्पी होली भी कह दूं, और मिल भी लूंगी।”
हां हां दीदी सही किया दीदी, आप होली के दिन तो हम से मिल ही नहीं पाते।इतनी रंगबाजी जो होती है। तो हम भी घर से निकल ही नहीं पाते हैं।आपको भी एडवांस में हैप्पी होली।
फिर रेनू बैग से चाकलेट ,चिप्स मार्क्स,कलर, पिचकारी सब मीसा को देने लगती है। तब उसकी मां कहती -“अरे ,रेनू इतना सब क्यों ले आई है?इसकी क्या जरूरत थी। ” फिर वह भाभी को मिठाई देते हुए कहती -“भाभी होली की मिठाई मीठा मुंह करने से होगी।आप लोग हमारे तरफ से मीठा मुंह कर लेना।”
तब सास नीता को झिड़कते हुए कहती हैं-” बड़े हाथ बढ़ा कर मिठाई ले ली ,तू भी कुछ दे, लेने की रहेगी क्या? तुझे नहीं पता क्या बेटी के घर का रखते नहीं है। बल्कि उससे चार गुना देने की रीत है।
तब रेनू कहती – ” मां आपके इसी व्यवहार के कारण बुआ नहीं आती हैं ,और आप उन्हें बुला नहीं पाती कि चार गुना ज्यादा देना पड़ेगा।
ऐसा भी क्या लेन देन की रस्म जो एक दूसरे को दूर कर दे।होली या कोई त्योहार तो मिलने का बहाना होते हैं ,ताकि हम एक दूसरे से मिल सकें।नहीं तो किसी के यहां लोग जाते ही नहीं हैं।कभी कथा पूजन हो ,बर्थडे हो,या एनीवर्सरी ,तब ही जाना होता है। आजकल तो मां किसी के पास इतना समय कहां है।आपको याद है पहले बुआ वो कितना आती थीं।वो अपनी हैसियत के मुताबिक सामान और मिठाई लाती, लेकिन आपको कहीं ज्यादा देना न पड़ जाए तो आपने उन्हें बुलाना ही छोड़ दिया।
अरे रेनू, कैसी बातें कर रही है मुझसे, तुझे पता नहीं क्या ,तेरी बुआ कैसा सामान लाती थीं।वो लेनदेन के लायक क्या ,वो उपयोग करने लायक भी न होता था। इसीलिए धीरे- धीरे उनका आना कम हुआ •••समझी कि न समझी। तू भी इसी घर की बेटी है••••तूने भी बचपन से देखा है।
हां मां बचपन से देखते आई हूं। इसीलिए कह रही हूं कि लेनदेन में कुछ न रखा है।अगर मेरे पास कुछ न हो तो मुझे भी भाभी और आप न बुलाओगी। इसका मतलब तो यही हुआ ना, जैसे आप बुआ को कम बुलाती हो।
आज तो भाभी से यही कहना चाहूंगी जितना हो सके, आपस में बस प्यार रखो, न कि कड़वाहट रखो कि किसने क्या दिया।अगर यही सोचने लगे तो लेनदेन के चक्कर में आना जाना ही न छूट जाए।
तभी उसकी भाभी नीता कहती – ” हां दीदी आप सही कहती हो ,अगर हम भी ऐसा सोचने लगे तो कैसे एक दूसरे से जुड़ें रहेंगे।बस हमें तो बुआ जी और मां जी से यही सबक और सीख लेनी चाहिए कि लेनदेन के कारण कहीं आपसी खटास और मनमुटाव न हो। ”
तभी सरला जी दोनों की बात सुनकर कहती हैं -“हां रेनू तू सही कह रही है, लेनदेन के कारण ही कड़वाहट बढ़ती है।कभी सबक सीखने का अंत नहीं होता, अब से मैं कभी अपनी ननद की चीज से उनके व्यवहार को न परखूगीं।उन्हें इसी भाईदूज में खुशी -खुशी बुलावा भेजूंगी।वो भी कितने दिनों से न आई है। और हमारे रिश्ते मजबूत भी होंगे।उनका आना भी मेरे व्यवहार के कारण कम जो हुआ है।अब भले ही उनसे कोई सामान न लूं।पर ज्यादा देना न पड़े।इस बात को मन से निकाल दूंगी।” मुझे ही अब बेरंग होते रिश्ते में फिर रंग भरना ही होगा।
बहू आज से तुम्हारी जिम्मेदारी है कि कैसे रिश्ते को निभाना है ,क्योंकि मेरे बाद तो रेनू बिटिया तुम्हारे बुलाने के हिसाब से ही आएगी।जैसा तुम बुलाओगी वैसे वो आने का सोचेगी। क्योंकि हमें ही दूरियां को मिटाना है,तुम्हारी ही अब जिम्मेदारी है, मेरी बेटी को कभी पराया न होने देना।क्योंकि जब बुआ के आने घर में चहल पहल होती थी।तुम लोग भी कितने खुश हो जाते थे कि बुआ आने वाली है।
इसी तरह तुम लोग सदा मिलकर रहना । हमें बेरंग होते रिश्ते में हमें रंग भरने का समय आ गया है। मुझे भी गलती समझ आ गई नीता बहू।अब तो तेरी बुआ सास के आने इंतजार रहेगा। तुम छोटों के प्यार के रंग कभी फीके न पड़े और हमें क्या चाहिए।इस तरह होली व सभी त्योहार पर बुआ को भी मान सम्मान से बुलाया जाने लगा। बेरंग होते आपसी रिश्ते में फिर खुशी के रंग भर गए।
दोस्तों -लेनदेन की रीत के कारण कभी -कभी मायका छूट जाता है।क्योंकि लेनदेन में लोग पैसे की कीमत देखने लगते हैं।अगर हमें आपसी प्यार बनाकर रखना है तो रिश्तों के बीच लेनदेन की रीत खत्म करनी चाहिए। ताकि प्रेम औपचारिक न रह जाए। हमें आपसी व्यवहार से रिश्तों को निभाना चाहिए। ज्यादा से ज्यादा औपचारिक रूप से लेनदेन करना चाहिए। ताकि पैसे की वजह से प्रेम के रिश्ते कहीं फ़ीके न हो जाए।
स्वरचित मौलिक रचना
अमिता कुचया