दिल का रिश्ता -डाॅक्टर संजु झा Moral stories in hindi

 कभी-कभी किसी के साथ दिल का रिश्ता इस तरह सम्मोहन में जुड़ जाता है,जिसे चाहकर भी हम भूल नहीं पाते हैं।मैं अमन ऐसा नहीं कह सकता हूँ कि मुझे आरंभ से ही नीलिमा से प्यार था,परन्तु उसमें कोई  चुम्बकीय आकर्षण तो जरुर था,जिसे मैं चाहकर भी भूल नहीं पाता था।उसकी मृगनयनी सी आँखें बार-बार मेरे सपनों में आकर मेरे दिल के तारों को झंकृत कर जाती थीं।

अतीत के किताब के पन्ने आज भी मेरी आँखों के समक्ष उपस्थित होकर फड़फड़ा उठते हैं।दसवीं पास करने के बाद हम पन्द्रह साथियों ने आगे की पढ़ाई के लिए   बिहार  से  राजस्थान  के कोटा शहर जाने का निर्णय किया।इस निर्णय में हमारे माता -पिता भी हमारे साथ थे।राजस्थान का कोटा शहर चंबल नदी के किनारे बसा हुआ है।कोटा शहर औद्योगिक नगरी होने के साथ-साथ कुछ वर्षों से कोचिंग की नगरी के रुप में भी उभरकर सामने आया है।यहाँ देश के हर कोने से विद्यार्थी अपने डाॅक्टर-इंजिनियर बनने के सपने लेकर आते हैं।कुछ के सपने पूरे होते हैं,कुछ के अधूरे रह जाते हैं।यहाँ तक कि कुछ विद्यार्थी तनाव में टूटकर बिखर भी जाते हैं।

दसवीं  अच्छी तरह पास करने के बाद मुझे तो कुछ खास जानकारी नहीं थी,परन्तु अपने पन्द्रह मेधावी दोस्तों के साथ आगे की पढ़ाई के लिए मैंने भी कोटा जाने का निर्णय किया।जिन्दगी में पहली बार माता-पिता के पास से हमारा ठिकाना उठ रहा था।मैं अमन तो बचपन से ही बहुत शर्मीले स्वभाव का था।हमेशा माँ का ही पल्लू पकड़े रहता था।स्कूल से लौटने पर थोड़ी देर के लिए भी माँ नहीं दिखती थी,तो मैं बेचैन हो उठता था।माँ के बिना खुद को बिल्कुल असहाय महसूस करता था।कभी भी अपने छोटे से भी काम नहीं करता था।मन में बहुत सारे सवाल उठ रहे थे।कैसे वहाँ रहूँगा?क्या खाऊँगा?कैसे  पढ़ूँगा?परन्तु दोस्तों ने समझाते हुए कहा था -” अमन!ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है।हम पन्द्रह साथी एक-दूसरे का मददगार बनकर रहेंगे।”

दोस्तों की सलाह मानकर हम पन्द्रह साथी  मन में  ढ़ेरों अरमान लिए  हुए अपने माता-पिता के साथ कोटा शहर पहुँच गए। हमलोग कुछ दिन अपने माता-पिता के साथ होटल में रुके।कोचिंग शुरू होने के एक दिन पहले कोचिंग सेंटर के कान्फ्रेंस हाॅल में विद्यार्थियों और उनके माता-पिता के लिए एक सभा आयोजित की गई  थी,जिसमें  विद्यार्थियों की दिनचर्या की रुपरेखा शामिल थी।हमारे लिए सबकुछ नया और अजूबा था।हम कोचिंग अध्यक्ष महोदय की बात टकटकी लगाए सुन रहें थे।मेरे बगल में एक खुबसूरत-सी लड़की बैठी थी,उसने इशारों-इशारों में मुझे हाय कहा।मैंने शर्माते हुए जबाव में मुस्करा दिया।स्कूल के दिनों से ही लड़कियाँ मुझमें आकर्षित होती थीं और मैं इतना शर्मीला था कि लड़कियों से हमेशा दो गज की दूरी बनाए रखता था।

अगले दिन से हमारे लिए ठिकाने की तलाश शुरु हुई। कोटा शहर विद्यार्थियों से अटा पड़ा था।कोटा शहर में शिक्षा का पूर्ण रुप से व्यवसायीकरण हो चुका है।वहाँ के मकान-मालिक, खानेवाले,दुकानदार सभी विद्यार्थियों का नाजायज फायदा उठाते हैं।पहली बार घर से आएँ हुए  मासूम बच्चों के दोहण का तरीका उन्हें बखूबी आता है।हम तीन करीबी दोस्तों के लिए एक ही मकान खोजा गया और दोस्तों ने अगल-बगल घर ले लिया।हमारे चिन्तित माता-पिता को आश्वासन देते हुए मकान-मालिक ने कहा – ” सर!ये मेरे भी बच्चे हैं।इनका मैं पूरा ख्याल रखूँगा।आपलोग आश्वस्त होकर बिहार वापस जाओ।इन्हें पढ़ने दो।”

कोटा में बच्चों के दाखिले के समय मकान-मालिक से लेकर टिफिन वाले तक सभी गार्जियन की जी-हजूरी करते हुए नहीं थकते हैं,बाद में मासूम बच्चों को अपना असली रंग दिखाने लगते हैं।कुछ विद्यार्थी इनके व्यवहार से,तो कुछ पढ़ाई के बोझ से डिप्रेशन के शिकार भी हो जाते हैं।मैं भी कई बार डिप्रेशन का शिकार हो चुका था।खैर!हमारी मकान की समस्या तो दूर हो चुकी थी,अब हमारी जरुरत के सामानों की बारी थी।हमारे माता-पिता अपने बच्चों को एक बार जरुरत का सारा सामान देकर जाना चाहते थे।उसके लिए उन्हें ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी।दुकानदार ने बनी-बनाई लिस्ट के अनुसार सारा सामान घर पर भेज दिया।सारा सामान आ जाने के बाद हमारे कोचिंग जाने के लिए नई साईकिल भी आ गई। सारे इंतजाम हो जाने के बाद हमारे माता-पिता के लिए हमारे खाने की समस्या सबसे बड़ी थी।हमारे माता-पिता घूम-घूमकर हर मेष में खाना खाते।मेषवाले इतने चालाक थे कि विद्यार्थियों के गार्जियन के रहते सभी अच्छा खाना खिलाते।बाद में इतना घटिया खाना खिलाते थे कि यादकर आज भी मुँह का स्वाद कड़वा हो जाता है।हमारे माता-पिता यथासंभव हमारे लिए इंतजाम कर  अपने शहर वापस लौट गए। 

कुछ दिनों बाद हमारी कठिन दिनचर्या शुरु हो गई। दिन-दुनियाँ से अनजान दसवीं पास बच्चों के लिए कोटा में शुरुआत के दिन बहुत कठिन और तनावग्रस्त होते हैं।

एक तो बारहवीं पास करने का दबाव और दूसरा कोचिंग का कठिन रुटीन।कुछ विद्यार्थी तो इस तनाव को झेल नहीं पाते हैं।मेरे दो दोस्त तनावग्रस्त होकर वापस अपने शहर लौट चुके थे।मुझे भी कभी-कभी इच्छा होती कि मैं भी वापस अपने माता-पिता के पास लौट जाऊँ!परन्तु  अपना भविष्य सँवारने हेतु उस वातावरण में खुद को ढ़ालने का प्रयास करने लगा।

हमारी कोचिंग रफ्तार पकड़ चुकी थी।पहले दिन वाली लड़की रोज मेरे बगल में बैठती थी।मैं उसे देखकर भी अनदेखा कर देता था।एक दिन उस लड़की ने अपना परिचय देते हुए कहा -” हाय!मैं नीलिमा।मैं भी तुम्हारे साथ इसी बैच में हूँ।”

मैंने भी मुस्कराते हुए झिझक के साथ कहा -” हाय!मैं अमन!”

अब नीलिमा के साथ कभी-कभार बातें होने लगीं थीं।

अभी हमारी कोचिंग शुरु हुए दस दिन भी नहीं हुए थे कि मकान-मालिक ने हल्ला करने के झूठे बहाने बनाकर हमें घर खाली करने का आदेश दे दिया।कोचिंग के प्रेशर से हमें खुद का होश नहीं रहता था,अब एक नई परेशानी आ खड़ी हुई। मैं तो छोटी-छोटी बातों से काफी परेशान हो जाता था,परन्तु हमारे दोस्त काफी होशियार थे।उन्होंने जल्द ही दूसरा मकान ढ़ूँढ़ लिया।

कोटा -प्रवास के दौरान हमारी एक समस्या खत्म नहीं होती कि दूसरी समस्या सुरसा की भाँति मुँह बाए आकर उपस्थित हो जाती।कुछ दिनों बाद ही हमारे तीनों दोस्तों की साईकिल एक साथ चोरी हो गई। मैं अंतर्मुखी  स्वभाव का था,इस कारण अपनी समस्या किसी से शेयर नहीं करता था।साईकिल चोरी के बाद  मैं कोचिंग के बाहर चुपचाप उदास-सा बैठा हुआ था।अचानक से नीलिमा आकर मेरे बगल में बैठ गई। दुखी होने के कारण मैं तुरंत उठकर जाने लगा।नीलिमा ने बड़ी बेबाकी से मेरा हाथ पकड़कर मुझे बैठाते हुए कहा -“अमन!थोड़ी देर बैठ जाओगे,तो कुछ नहीं बिगड़ेंगे!”

उसकी बातों के सम्मोहन में आकर मैं फिर से बैठ गया।

नीलिमा ने पूछा -” अमन!कुछ परेशान  लग रहे हो?”

मैंने उसे साईकिल चोरी की बात बता दी।उसने मुझे सांत्वना देते हुए कहा -” अमन!जिन्दगी में बहुत सारी समस्याएँ आती रहेंगी।इस तरह मायूस होकर बैठने  से कुछ नहीं होगा।समस्या का हल खुद ढूँढ़ना होगा।”

मैं एकटक उसकी बातों को सुनकर रहा था।दोस्तों की सांत्वनापूर्ण बातें  जहाँ मुझे उपदेशात्मक लगतीं थीं,वहीं नीलिमा की बातों में जादू था।वह बोलती रही और मैं चुपचाप सुनता रहा।उसका बोलना कहीं न कहीं मेरे दिल को सुकून दे रहा था,परन्तु उससे गहरी दोस्ती कर मैं एक नई मुसीबत मोल लेना नहीं चाह रहा था।अब मैं उठकर अपने घर की ओर रवाना हो गया।

हमारी कोचिंग जारी थी।क्लास में बहुत सारे लड़के थे,परन्तु नीलिमा मुझसे ही ज्यादा बातें करती थीं।नीलिमा मुझे भी अच्छी लगती थी,परन्तु मैं प्यार के जाल में उलझना नहीं चाहता था।मैं नीलिमा के प्रति अपनी भावनाओं को जान-बूझकर दबाने की कोशिश करता।मुझे अभी अपने कैरियर का विस्तृत खुला आसमान  नजर आ रहा था।मैं इश्क-मुहब्बत के फेर में पड़कर अपने सपनों के पर नहीं कुतरना

 चाहता था।

समय के साथ हमारी बारहवीं की परीक्षा और कोचिंग पूरी हो चुकी थी।हम इंजिनियरिंग इन्टरेंस की परीक्षा देकर रिजल्ट के इंतजार में अपने-अपने घरों को लौटनेवाले थे। नीलिमा ने जाने से पहले मिलने का आग्रह किया।उस मुलाकात में नीलिमा ने बातों-ही-बातों में अपने प्यार का एक तरह से इजहार कर दिया।मैं भी नीलिमा के साथ दिल का रिश्ता महसूस कर रहा था,परन्तु अभी इजहार करने की हिम्मत मुझमें नहीं थी।मैं पहली बार इतने नजदीक से नीलिमा की खुबसूरती को देख रहा था।गोरा रंग,ऊँचा कद ,झील-सी गहरी आँखें,नागिन-सी बलखाती चाल किसी को भी अपना दीवाना बना सकती है।परन्तु मैंने मेनका रुपी नीलिमा के सामने अपनी भावनाओं को काबू में रखा,उसे विश्वामित्र के समान बेकाबू नहीं होने दिया। विदा के समय एक – दूसरे की सुखद भविष्य की कामना करते हुए नीलिमा की आँखों से अनायास ही कुछ आँसू की बूँदें गिर पड़ीं,जिन्हें मैंने दिल-ही-दिल में जज्ब कर लिया,परन्तु अपने प्यार का इजहार न कर सका।

समय के साथ दोनों का एडमिशन अच्छे इंजिनियरिंग काॅलेज में हो गया।हम सभी दोस्त अलग-अलग हो गए। हमारे फोन नम्बर भी बदल गए। हम अपने भविष्य को संवारने में लग गए। एक बात अवश्य थी कि नीलिमा से अलग होने पर भी उसके साथ दिल का रिश्ता महसूस होता।कभी-कभी हँसती-खिलखिलाती नीलिमा मेरे सपनों में आकर खड़ी हो जाती।

मेरी इंजिनियरिंग की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी।उच्च शिक्षा के लिए मैं अमेरिका चला गया।दो साल MBA.की पढ़ाई के बाद वहीं सैफ्रां सिस्को में नौकरी करने लगा।मैं वहाँ के वातावरण में बिल्कुल रच-बस गया था,परन्तु हमेशा नीलिमा के साथ  एक दिल का रिश्ता महसूस करता था।उसके बारे में जानकारी न होने के कारण दिल-ही-दिल में बेबसी का एहसास होता रहता।अब माता-पिता मुझपर शादी के लिए  दबाव बनाने लगें,परन्तु मैं हर साल अगले साल पर टाल देता था।मैं समझ रहा था कि अब नीलिमा का इंतजार बेमानी है,फिर भी न जाने क्यों  उससे मिलने की दिल में एक उम्मीद-सी बनी रहती थी।

सुबह की सुनहरी किरणें अपना आँचल फैला रही थीं।छुट्टी का दिन था।मैं हाथ में काॅफी का मग लिए अपनी बाल्कनी से प्राकृतिक नजारों का आनंद ले रहा था।अचानक से वहाँ नीले रंग की छोटी-छोटी चिड़ियाँ चहककर शोर करने लगीं।ये अमेरिका की रोबिन नाम की खुबसूरत चिड़ियाँ थीं।इनका नीला रंग  और बेफिक्री  में चहचहाना अनायास ही मुझे नीलिमा की याद  दिला गया।आजकल नीलिमा मेरे ख्वाबों में कुछ ज्यादा ही नजर आने लगी थी।अब महसूस होने लगा था कि  मेरे भी दिल में उसके प्रति प्यार था,जिसे मैंने जान-बूझकर दबाए रखा था।खैर अब सोचने से क्या फायदा?उसकी अपनी दुनियाँ बस गई होगी!

अब न चाहकर भी नीलिमा की यादें मेरे दिल के अकेलेपन और सन्नाटे में दस्तक देने लगी थीं।उसकी यादें यहाँ के मेपल पत्ते की तरह भूरे होने लगीं,भूरे होकर सूख-सुखकर गिरने लगीं।मैंने कई  बार नीलिमा के बारे में पता लगाने की कोशिश की,परन्तु नाकामयाबी ही हाथ आती।परन्तु सच ही कहा गया है कि जिस चीज को शिद्दत से चाहो,तो वो जरुर मिलती है।शायद अनजाने ही मेरे दिल की तड़प नीलिमा को तड़पा गई। एक दिन अकस्मात् ही नीलिमा मेरे दफ्तर में आ पहुँची। मैं विस्फरित नयनों से मंत्रमुग्ध हो एकटक उसे देखता ही रह गया।हाय-हलो कहते हुए  उसने बताया-” अमन!ज्यादा आश्चर्यचकित होने की जरूरत नहीं है!मेरी भी  नौकरी इसी शहर में लग गई है!”

 मैं कुछ बोल पाता इससे पहले ही छुट्टी के दिन मिलने का वादा लेकर नीलिमा चली गई। मैं उससे मिलने को बेकरार था।अब उसके साथ अपने दिल के रिश्ते की तड़प को बखूबी महसूस कर रहा था।छुट्टी के दिन निश्चित स्थान पर समय से पहुँचकर बेसब्री से नीलिमा का इंतजार कर रहा था।अचानक से सामने आकर नीलिमा बेबाकी से मेरे सामने बैठ गई। कई वर्षों बाद नीलिमा को करीब से देख रहा था।बंद कली से नीलिमा सुगंधित पुष्प  बन चुकी थी। मानो उसकी आभा सूर्य किरणों की भाँति चहुंओर छिटक रही थी।उसके काले घुँघराले बाल, सुराहीदार गर्दन और झील-सी गहरी  नीली आँखें कयामत ढ़ा रहीं थीं।मैं मन-ही-मन उसकी गहरी नीली आँखों की तुलना कभी ऐश्वर्या राय,तो कभी एंजेलिना जोली की आँखों से करता,परन्तु मुझे सबसे सुंदर नीलिमा की ही आँखें लगतीं।मुझे इस तरह एकटक देखते हुए नीलिमा ने मुस्कराकर पूछा -” अमन!तुम ऐसे क्या देख रहे हो?”

मैंने हिम्मत जुटाकर कहा-” नीलिमा!तुम काफी सुन्दर हो!”

नीलिमा ने फिर पूछा -“अमन!और कुछ?”

मैं अभी भी अपने प्यार का इजहार करने में डर रहा था।मुझे उसकी बातों से पता चल चुका था कि वह मेरे प्यार के इजहार का इंतजार कर रही है।अब हम बराबर एक-दूसरे के साथ  अपना समय बिताने लगें।वैलेंटाइन डे से एक दिन पहले नीलिमा ने पूछा -” अमन!कल का क्या प्रोग्राम है?”

मैंने पूछा -“नीलिमा!कल क्या है?”

नीलिमा -” बुद्धु!कल वैलेंटाइन डे है!”

मैंने फिर पूछा-” वैलेंटाइन डे को क्या करना है?” 

नीलिमा ने नाराज होते हुए कहा -” अमन !कल के बारे में मैं कुछ नहीं बताऊँगी।जो सोचना है,तुम सोचो।”

नीलिमा के जाने के बाद मैं सोच में पड़ गया।फिर मुझे महसूस हुआ कि अगर मैंने कल अपने प्यार का इजहार नहीं किया,तो फिर कभी नहीं कर पाऊँगा।मैंने फोन कर नीलिमा को अगले दिन  सैन फ्रांसिस्को के मशहूर पुल गोल्डन गेट पर आने को कहा।सैन फ्रांसिस्को की खाड़ी के दोनों छोरों को जोड़नेवाला यह सेतु कल मेरे भी दिल का रिश्ता जोड़ने का गवाह बनने जा रहा था।

वैलेंटाइन डे के दिन  सामने से आती नीलिमा नीले गाऊन में समंदर से निकली हुई कोई नील परी लग रही थी।उसके गोरे जिस्म नीले समंदर की भाँति लहरा रहे थे।मैंने उसे एकटक देखते हुए कहा -” नीलिमा!तुम्हारी सुन्दरता मुझे मदहोश कर रही है!”

नीलिमा ने मुस्कराते हुए कहा -” अमन!खुबसूरत तो मैं पहले से हूँ,परन्तु तुमने देखा ही कब था?”

मैंने उसे फूलों का खुबसूरत बुके देते  हुए अपनी लिखी हुई इन चार पंक्तियों में अपने प्यार का इजहार करते हुए कहा-

“तुम्हारी झील-सी आँखों के,

गहरे समंदर में डूब जाना चाहता हूँ,

तुम अगर इजाजत दो तो,

तुम्हारे आगोश में जिन्दगी भर कैद होना चाहता हूँ।”

नीलिमा ने शर्माते हुए कहा-“बुद्धु !यही सुनने के लिए मैं सात समंदर पार आ गई हूँ।मेरा यहाँ आना महज इत्तेफाक नहीं है! तुमसे दिल का रिश्ता मुझे यहाँ खींच लायाहै।”

मैंने सारी झिझक छोड़ते हुए अपने प्यार को अपने आगोश में समेट लिया।

समाप्त। 

लेखिका-डाॅक्टर संजु झा(स्वरचित)

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