धागे प्रेम के – प्राची अग्रवाल : Moral stories in hindi

घर को फूलों से अच्छी तरह से सजाया जा रहा था। सभी दरवाजों पर वंदरवार लगायी जा रही थी। बैलून डेकोरेशन वाला हार्ट की शॉप में लाल गुलाबी गुब्बारे फुला रहा था।

कई मेकअप आर्टिस्ट घर की और रिश्तेदारी की महिलाओं को सजाने-संवारने के लिए लगे हुए थे। कुछ रिश्तेदार आ चुके थे। कुछ आ रहे थे। बाकी सब रात को पार्टी के समय ही आने वाले थे। बड़े जश्न की तैयारी हो रही थी क्योंकि मालिनी और अक्षत की विवाह की सिल्वर जुबली मनाई जा रही थी। तीन दिन का प्रोग्राम सेट किया गया था।

जिस तरीके से वैवाहिक कार्यक्रम होते हैं उसी तरीके से वैवाहिक वर्षगांठ को भी धूमधाम से मनाया जाना था। रिश्तेदार भी दो वर्गों में विभाजित थे। एक वधू पक्ष एक वर पक्ष। वधू पक्ष में महिलाएं और लड़कियाँ अधिक थी इसलिए यह पक्ष ज्यादा हावी हो रहा था। खूब धूम मच रही है। हल्दी का कार्यक्रम पूरी धूमधाम से मनाया गया। शाम को मेहंदी और डीजे नाइट का प्रोग्राम था। चारों तरफ जश्न का माहौल हो रहा था। हर कोई मगन था नाचने-गाने में।

जब पैसे की चमक बढ़ जाती है तो फैमिली फंक्शन्स के नाम पर भी खूब पैसे उड़ाए जाते हैं। सही बात है पैसा बात को या स्वाद को।

आज बड़े होटल में ग्रैंड सेरेमनी होगी। वर पक्ष बड़े गेट से ढोल ताशो के साथ जाएगा ऐसी तैयारी हो रही थी। सब बढ़िया-बढ़िया कोट सूट पहनकर बाराती बनकर आ गए‌।

लेकिन यह क्या अक्षत के पिताजी पुराना घर का बना हुआ स्वेटर पहनकर तैयार हो गए‌। उनको ऐसा देखकर सभी को अटपटा लग रहा था। अक्षत को भी बहुत बुरा लगा। उसने अपने पापा से कहा,”पापा मैं आपके लिए स्पेशल थ्री पीस सूट बनवाया है। आपने वह क्यों नहीं पहना? यह कितना पुराना स्वेटर क्यों लटकाए है आपने?”

अक्षत के पिताजी सुस्त से हो जाते हैं। उनकी आंखों में पानी झलकने लगता है। वह बड़ी हिम्मत करके धीरे से कहते हैं, “बेटा आज तुम्हारी शादी की 25 वीं सालगिरह है। सब बाराती बनकर जा रहे हैं। लेकिन अब तुम्हारी माँ जो इस दुनियाँ में अब नहीं रही। मुझे उनकी कमी बहुत महसूस हो रही थी।

उसके हाथ का बना हुआ स्वेटर पहनकर मुझे ऐसा महसूस हो रहा है जैसे तुम्हारी माँ मेरे साथ यही है। इस स्वेटर में उसकी उंगलियां से की गई बुनाई अपनेपन ‍की महक छोड़ती है। मुझे जब भी तुम्हारी माँ की बहुत याद आती है, मैं इस स्वेटर को पहन कर उन्हें महसूस कर लेता हूँ। आज इतने खास दिन पर तुम्हारी मांँ की मौजूदगी को महसूस करने के लिए मैंने यह स्वेटर पहन लिया है। तुम्हें अच्छा नहीं लगा तो मैं उतार देता हूँ।”

उनकी बात सुनकर अक्षत व मालिनी की आंखों भी भर जाती हैं। आज अक्षत को स्वयं पर#धिक्कार महसूस होता है।वह तुरंत अपने पापा से गले से लिपट जाता है, ताकि वह भी अपनी माँ की गोद को महसूस कर सके।

“नहीं पापा आप पहने रखिए। मम्मी ने मेरे लिए भी तो बुना था स्वेटर।”

हां बुना तो था, लेकिन आउट फैशन कहकर तुमने उसे पहनने से मना कर दिया था।”

अक्षत को अपनी गलती पर बहुत पश्चाताप  हुआ।

ऊन के धागों से बुने गए स्वेटर रिश्तो में नजदीकियांँ बढ़ाते  हैं। बिकने के लिए तो बाजार में एक से एक बढ़िया चीज मौजूद है फिर भी ऊन के धागे अपना अस्तित्व बचाए हुए हैं ताकि कुछ रिश्तो में प्रेम बना रहे। आज भी घर की महिलाएं बड़े शौक से बुनाई करती हैं ताकि ऊन के यह धागे रिश्तो में प्रेम की बुनाई कर सके।

प्राची अग्रवाल

खुर्जा उत्तर प्रदेश

#धिक्कार शब्द पर आधारित बड़ी कहानी

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