गुस्सा पी जाना-डाॅक्टर संजु झा : Moral Stories in Hindi

रंजना जी ने अपनी दोनों संतानों को उच्च शिक्षा दिलवाई। उन्होंने बेटी और बेटा दोनों की समान परवरिश की। पढ़ाई के बाद जब उनकी बेटी नमिता ने  शादी मेट्रोमोनियल से एक लड़के को चुना ,तो उनलोगों ने लड़के तथा उसके परिवार से मिलने के बाद शादी करने की स्वीकृति दे दी।रंजना दम्पत्ति तथा उनकी बेटी … Read more

एक नई शुरुआत-कमलेश आहूजा : Moral Stories in Hindi

“माँ आपसे कितनी बार कहा है,कि बात बात पर पूजा से बहस ना किया करो।लेकिन आप मानती नहीं रोज क्लेश करती रहती हो।”सोमिल गुस्सा होते हुए रमा से बोला। “तू तो हर बार मुझे ही गलत समझता है और बहु को कुछ नहीं कहता।मैंने इसे मायके वालों को फोन करते सुना था,कि मेरी सास कोई … Read more

हम साथ साथ -रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

हम साथ साथ “ कब तक यूँ ही चुपचाप ग़ुस्सा पीते रहोगे…. माना रिश्ता बना कर रहना चाहिए पर ये कैसा व्यवहार है कि बिना गलती तुम सब बर्दाश्त करते रहते हो ।”निकिता अपने पति मयंक को समझाते हुए बोली “ निकिता पाँच साल से मेरे साथ हो ना….फिर भी तुम्हें समझ नहीं आया मैं … Read more

सुखी बुढ़ापा -गीता वाधवानी : Moral Stories in Hindi

शशिकांत जी पार्क से सैर करके वापस आए तो देखा कि उनकी माताजी आंगन में कुर्सी पर बैठी है। उन्होंने अपनी माता जी के चरण स्पर्श किए और उन्ही के पास दूसरी कुर्सी खिसका कर बैठ गए और उनका हाल चाल पूछने लगे। वे लगभग प्रतिदिन ऐसाही करते थे। तभी बच्चों की स्कूल वैन उन्हेंलेने … Read more

अपना घर स्वर्ग -ऋतु गुप्ता : Moral Stories in Hindi

आज दोनों बुजुर्ग दम्पत्ति लखमीचंद जी और उनकी पत्नी पुष्पा जी झूले पर बैठे अपने घर के आंगन में अपने स्वर्ग जैसे घर का आनंद ले रहे थे। तभी लख्मी चंद जी की आंखों के सामने  तीन वर्ष पहले का एक दृश्य सचित्र घूम गया, जब उन्होंने अपने बेटे से कहा था….. बेटा कहां थे … Read more

अगले जन्म मोहे बिटिया ही कीजो -शनाया : Moral Stories in Hindi

बालकनी में डला झूला और उस पर बैठी माही, हर सुबह की तरह आज भी बालकनी में बैठे बैठे अख़बार पढ़ रही थी और आने जाने वाले लोगों को देखकर उसे जो ख़ुशी महसूस होती थी , उसी ख़ुशी को आज भी महसूस कर रही थी।  उसे अच्छा लगता था ऐसे सुबह सुबह सोसाइटी के … Read more

बुढ़ापा -डाॅक्टर संजु झा : Moral Stories in Hindi

मनुष्य जिन्दगी के तीन पहर तो आसानी से काट लेता है,परन्तु चौथा पहर काटना उसके लिए कठिन हो जाता है।बुढ़ापे में स्वास्थ्य भी गिरने लगता है,उसपर से अगर हमसफ़र का साथ छूट जाएँ तो जिन्दगी ‘कोढ़ में खाज’ के समान लगने लगती है।बुढ़ापे में ऊषा जी को अपना वतन बहुत याद आता है।यहाँ अमेरिका में … Read more

जीवन का सवेरा (भाग -7 ) – आरती झा आद्या : Moral stories in hindi

“जल्दी से फ्रेश हो लो। मैं खाना लगाती हूँ। खुद भी भूखे रहो और सबको भूखा रखो।” बोल क़र बड़बड़ाती हुईं राधा किचन की ओर बढ़ गई। “और सब लोग सो गए हैं। सबने खाना खा लिया था ना।” आरुणि अपनी सहेलियों के साथ अंदर आती हुई पूछती है। “हाँ सबने खाना तो खा लिया … Read more

अंतिम यात्रा – भगवती सक्सेना : Moral Stories in Hindi

बचपन से साथ खेलते रहे हरी और यशोदा पड़ोसी भी थे। गाँव का हरा भरा खुला वातावरण था, कभी तालाब कभी खेत मे बच्चो का खेलना सबको अच्छा लगता था। एक बार तालाब के किनारे दौड़ते हुए यशोदा फिसल गयी और तालाब में गिर पड़ी। उस समय बारिश का समय था, पानी बहुत था, किसी … Read more

जीवन का सवेरा (भाग -6) – आरती झा आद्या : Moral stories in hindi

“मोहतरमा तभी इतनी इठलाती किचन के अन्दर गई थी”, रोहित कैफ़े के बाहर जाकर बोर्ड देखकर अंदर आता है और जोर से हँसते हुआ बोलता है, “आरुणि कैफे बड़े बड़े अक्षरों में लिखा है। मैंने कभी देखा ही नहीं, मेरे जैसे लोग आँख होते हुए भी अंधे होते हैं।” “और दिमाग होते हुए भी कमअक्ल”… … Read more

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