बादलों की घुमड़न- लतिका श्रीवास्तव : hindi stories with moral

hindi stories with moral : एक्सक्यूज मी मैडम…..तीसरी बार वही वाक्य सुनकर शिवानी ने उस ओर देखा तो एक नवयुवक सामने की सीट से उससे कुछ कहने की कोशिश कर रहा था.. क्या बात है पूछने पर समझ आया कि वह अपने  पिता को लेकर चिंतित था जो पहली बार हवाई यात्रा कर रहे थे बुजुर्ग थे इसलिए युवक शिवानी से सीट बदलने की बात कर रहा था ताकि उसके  पिता उसके पास बैठ सके और वह और उसकी पत्नी यात्रा के दौरान उनका ख्याल रख सकें….!

शिवानी ने तुरंत मना कर दिया ।अब तो मैं अपनी सीट में अच्छे से बैठ गई हूं सीट बेल्ट भी बांध ली है …  सीट बदलना और नई सीट पर बैठना बेल्ट बांधना फिर से सामान व्यवस्थित करना उसे बहुत कष्टकारी प्रतीत हुआ हिम्मत नही हुई सो उसने मना कर दिया… युवक कुछ नहीं बोला।

रूई के बादल चारों तरफ तैर रहे थे… ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो झक सफेद रुई का विशाल पर्वत धीरे धीरे पिघल रहा है  .. धरती पर खड़े होकर  आसमान की जिस सुंदरता को शिवानी निहारती थी आज उसके बीच पहुंच कर उसे निकट से महसूस कर रही थी अगर वायुयान की खिड़की थोड़ी से खुलती तो मेरे हाथ उन रुई के बादलो को अपने हाथों से छूकर पकड़ लेते …

लेकिन क्या बादलों को पकड़ना मेरे हाथों के लिए संभव था ..!!

यही कोशिश तो  करती रही हर बार खुले आसमान  के बादल पकड़ने की निरर्थक कोशिशें करने में ही जिंदगी जाया होती रही।

सच तो यह है कि बादल को पकड़ते नहीं है उनके बीच से गुजर जाते हैं थोड़ी ही देर में वे छंट जाते हैं।

विचारो के बादल की घुमड़न भी तो ऐसी ही होती है कुछ देर के लिए धुंध सी छा जाती है चारो तरफ …कुछ सूझता ही नहीं है ।

शिवानी का मस्तिष्क भी ऐसी ही घुमड़न में तैर रहा था जैसे कोई धुंध सी छाई थी…!

सागर आखिर मेरी गलती क्या है!!

एक ही ऑफिस में काम करते थे एक ही कॉलोनी में किराए के मकान में रहते थे और एक ही बस से रोज आना जाना करते थे .. शिवानी और सागर दोनों…ऐसा नहीं था कि सिर्फ वे दोनो ही थे ऑफिस में उनके अलावा भी दर्जनों कर्मचारी थे कॉलोनी में भी उनके अलावा दर्जनों परिवार थे और बस में भी…लेकिन कुछ तो ऐसा था जिसने शिवानी और सागर दोनों को बाकी सबसे अलग कर दिया था।

और ये कोई पहली नजर वाला किस्सा नहीं था बल्कि बकायदे सोच समझ कर दिल की गहराइयों से किया जाने वाला और हमेशा हमेशा साथ निभाने वाला जिंदगी का हिस्सा बन गया था.. ना ही इसमें कोई बड़ी बड़ी कसमें खाई गईं अलबत्ता चौपाटी पर रोज साथ साथ चाट खाने के सिवा…. ना ही जीने मरने के बेहिसाब वादे लिए गए अलबत्ता शिवानी के बीमार होकर हॉस्पिटल में एडमिट होने पर सागर ऑफिस से छुट्टी लेकर दिन रात उसकी सेवा टहल में हॉस्पिटल में लगा रहा…।

ना जाने क्या बुरी नजर लगी उन दोनों के अनकहे अबूझ साथ को कि यकायक सागर शिवानी की तरफ से अनमना हो गया अब उसे ना ही मिलने में कोई उत्साह रहा ना ही चाट खाने का शौक तीन दिनों तक शिवानी के ऑफिस ना आने पर भी एक फोन तक नहीं किया मानो उसे अब कोई मतलब ही नहीं रह गया था …बस में भी वही बेरुखी …!

बिचारी शिवानी क्या कहती किससे कहती कोई सुनने वाला भी तो हो.!!अब तो हर कोई शिवानी में ही खोट निकालने में लग गया था जरूर तुम्हीं ने कुछ किया होगा सागर तो बहुत ही शरीफ और नेक इंसान है …. फिर इतने दिनों से तुम लोग एक दूसरे को जानते हो अचानक की मुलाकात तो है नहीं…..वैसे शिवानी मुझे तो पहले से लगता था सागर कितना अलग है तूझसे वह कितना हंसमुख और जिंदादिल है और तू है तो एकदम गंभीर दार्शनिक सी…… मालूम ही था हम लोगों को एक दिन सागर तुझे मुंह मोड़ ही लेगा….. उसके लिए तो लड़कियों की कोई कमी नही है तू अपना देख ले शिवानी सागर का टैग लग गया है तुझ पर पता नहीं अब तेरा क्या होगा…!!

जितने मुंह उतनी बातें..!! शिवानी किसका मुंह बंद करती और क्या कह के बंद करती!! उसे अपनी कोई गलती समझ ही नहीं आ रही थी… जितना सोचती उतनी ही दुखी होती आखिर सागर क्यों चला गया मैंने क्या किया…!! जुड़ना जितना सरल और अल्हादकारी होता है विलग होना  उतना ही दुष्कर और असह्य…..!!

सबकी उलाहनाओं से तंग आकर ना चाहते हुए भी उसने खुद ही सागर को फोन लगा दिया था तीन चार बार रिंग जाने के बाद उसने उठाया ।हेलो हां सागर मैं तुमसे एक बार मिलना चाहती हूं बात करना चाहती हूं…..

लेकिन मुझे तुमसे कोई बात नही करनी है

पर सागर मैं सबको बताना चाहती हूं कि ऐसी कोई बात हमारे बीच नहीं हुई मैने ऐसा कुछ नही किया जिसके कारण तुम मुझसे मिलना नहीं चाहते हो तुम एक बार आकर सबको ये क्लियर कर दो

फिजूल की बातों के लिए मेरे पास वक्त नहीं है वैसे भी तुम्हारे साथ मैने अपना बहुत कीमती वक्त बर्बाद कर दिया है

सागर ये तुम क्या कह रहे हो वक्त बर्बाद किया

हां मैं बिल्कुल सही कह रहा हूं शिवानी तुम्हारी जैसी रूखी लड़की से हर कोई पल्ला झाड़ ही लेगा तुम्हारी मुश्किल मैं समझ सकता हूं देखा तुमने मेरे बिना तुम्हारा काम नहीं चल रहा होगा कोई तुम्हे घास नहीं डालेगा अगर ऐसी बात है तो रहम करने आ सकता हूं… बोलो बोलो उसकी विद्रूप हंसी तिलमिला गई थी शिवानी को और उसने फोन काट दिया था।कितनी वाहियात बाते कर रहा है सागर !! मेरे जैसी रूखी लड़की!! मतलब क्या है उसका!!

मेरी ही गलती बता रहा है सबसे यही कहता होगा …! बर्दाश्त करने की भी कोई सीमा होती है जब मेरी कोई गलती नही है …!सबके उलाहने मेरे लिए … सबके व्यंग्य मेरे लिए… क्यों!!क्या गलती है मेरी!! दिमाग भन्ना रहा था शिवानी का !! मैं क्यों और किसके सामने अपने को सही साबित करने की उलझन में हूं … क्या मेरी बाकी की जिंदगी एक सागर के होने या ना होने के भंवर जाल में फंसी रह जायेगी जब मैने कोई गलती ही नहीं की तो किस बात का अपराध बोध और किस बात की सफाई ..! मीता उसकी सहेली सही कहती है बेवजह खुद को दुखी मत कर जिंदगी में बदलाव ला…अब समय आ गया है इस सागर रूपी भ्रमजाल को तोड़कर बाहर निकलने का !

आज पूरे छह महीनों के बाद वह घर से निकली है …..हवाई उड़ान   की ऊंचाइयां उसकी मानसिक उड़ान से प्रतिस्पर्धा सी कर रही थीं…!

तभी उसने देखा सामने की सीट पर बैठा  युवक फिर से उससे सीट बदलने की रिक्वेस्ट करने के लिए खड़ा हो रहा था शिवानी के पीछे बैठे उसके वृद्ध पिता भी शिवानी को आशा भरी नजरो से देख रहे थे

अचानक शिवानी को लगा सच में उसकी जिंदगी में भी सीट बदलने का समय आ गया है  ….युवक और उसके वृद्ध पिता के साथ खुद अपने लिए भी कुछ नया और अच्छा करने की भावना बलवती हो गई …… नई सीट नई सुरक्षा पेटियां उसका इंतजार कर रही हैं…. वह एक झटके से उठी इस सीट की सुरक्षा पेटियां वहीं पर छोड़ नई सीट बदलने और नए सिरे से सब व्यवस्थित करने की ओर अग्रसर हो गई…..!

बादलों से पार वायुयान उड़ चला था… शिवानी के दिलो दिमाग पर से भी बादल की धुंध छटने लगी थी…!!

लतिका श्रीवास्तव

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