अपेक्षा नहीं तो कैसी उपेक्षा – शुभ्रा बैनर्जी
जीवन के बारे में बड़े-बूढ़ों का तजुर्बा कभी ग़लत नहीं होता। उम्र के आखिरी पड़ाव में चेहरे पर झुर्रियां,भूत वर्तमान और भविष्य की लहरों की तरह समय के परिवर्तन शील होने का प्रमाण देतीं हैं।आंखों की रोशनी कम तो हो जाती है,पर अनुभव का उजाला टिमटिमाते रहता है,बूढ़ी आंखों में।”बचपन”परीकथा की तरह सुखद होता है। … Read more