बूढ़े माता-पिता अच्छे नहीं लगते – शुभ्रा बैनर्जी | motivation story in hindi

रागिनी अपनी ननद के बेटे के उपनयन संस्कार में दिल्ली आई थी। सास-ससुर एक महीने पहले ही आ चुके थे।सास को इस अनुष्ठान के विधि-विधान का अच्छा अनुभव था, इसलिए ननद ने जल्दी बुलवा लिया था।दस साल पहले रिटायर हो चुके ससुर के पास जमा-पूंजी के नाम पर कुछ विशेष नहीं बचा था।उनके घर का … Read more

मां तुम तो वट वृक्ष हो हमारी – शुभ्रा बैनर्जी | best hindi kahani

इस लड़की का मैं क्या करूं?कभी सुनती ही नहीं मेरी।सुधा पहले से ही जानती थी कि उसकी बेटी यशा मानेगी नहीं।शादी की बातचीत जब से शुरू हुई थी,तब से सुधा का मन इसी आशंका से आहत हो रहा था।पक्की बात करने जब वैभव और उसके माता-पिता आए,तभी यशा ने सहज तरीके से उन्हें समझाया था … Read more

काश!!!मैंने अपने दिल की सुनी होती – शुभ्रा बैनर्जी | Real Life Love Story In Hindi

शुभा जब भी बाहर निकलती,हर अपरिचित से संवाद करना आरंभ कर देती थी।इस स्वभाव से कभी नुकसान पहुंचा हो ऐसा भी नहीं,पर परिवार में उसकी इस आदत से सभी उस पर हंसते थे। सब्ज़ी वाला,ऑटो वाला,रेहड़ी वाला,अखबार देने वाला या ब्रेड बेचने वाला ,हर किसी से सुख -दुख की बात कर लेती थी वह।सब्जी वाला … Read more

बदसूरती का दिखावा – शुभ्रा बैनर्जी 

आज तक यही सुना और देखा था मधु ने ,कि लोग अपनी सुंदरता,शिक्षा,पद और प्रतिष्ठा का झूठा दिखावा करते हैं।दिखावे के नाम पर शादी-ब्याह,पूजा -पाठ और रिश्तेदारी में अनगिनत झूठ के आवरण देखें थे मधु ने। आज अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था रंजना को देखकर।रंजना की मां गुलाबो कॉलोनी में लोगों … Read more

रिश्तों में बंधा स्वार्थ या स्वार्थ में बंधा रिश्ता – शुभ्रा बैनर्जी

आज संध्या को मां की बात रह -रह कर याद आ रही थी।कैसे वह भी अनुज के आगे-पीछे दौड़ती रहती है,उसके काम पर जाने से पहले और काम से आने के बाद।बचपन में मां का पापा के आगे-पीछे घूमना उसे बिल्कुल पसंद नहीं था।कभी चैन से बैठे नहीं देखा उन्हें।टोकने पर हंसकर हमेशा यही कहती”संधू,पति … Read more

भंडारे का आधुनिकीकरण – शुभ्रा बैनर्जी

आज मोहल्ले की महिलाएं सुबह से ही किसी गंभीर विषय पर यंत्रणा में लगी हुईं थीं।थोड़ा पास जाने पर पता चला कि,कल शनिवार को हनुमानजी के मंदिर में हमारे ही मोहल्ले के मनीष जी ने भंडारे का आयोजन किया है।महिलाओं में उत्साह अस्वाभाविक नहीं था।एक दिन दोपहर के खाना बनाने से मुक्ति जो मिलेगी।शीतल जी … Read more

चुपचाप जिम्मेदारी निभाता हुआ पुरुष  – शुभ्रा बैनर्जी

चुपचाप जिम्मेदारी निभाता हुआ पुरुष अपने भाई के श्राद्ध में जैसे ही दोनों विवाहित बहनों ने सुधा के हांथों कुछ रुपए रखे,सुधा को लगा मानो उसके पति के मुंह पर थप्पड़ मार दिया है उन्होंने।बच्चों ने भी पहले ही बोल कर रखा था कि किसी से पैसों की मदद नहीं लेना मां।सुधा आस पास के … Read more

बहू का प्रमाण पत्र – शुभ्रा बैनर्जी

सौम्या की बेटी की शादी की बातचीत चल रही थी।बेटी पढ़ी-लिखी और समझदार थी ।मां से उसका भावनात्मक लगाव कुछ ज्यादा ही था।बचपन से उसने सौम्या को संघर्ष करते ही देखा था।बड़ी होने पर अक्सर बोलती “मैं शादी नहीं करूंगी कभी।तुम्हारे जैसी अच्छी बहू ना मैं बनना चाहती हूं और ना ही बन पाऊंगी।सारा जीवन … Read more

बच्चों ने दी संस्कारों की सीख – शुभ्रा बैनर्जी

आज संगीता जी के यहां किटी पार्टी का आयोजन था।वह ख़ुद बहुत अच्छा खाना पका लेतीं थीं। मेहमानों को खुश करने के चक्कर में,आज उन्हें अपने हांथ के खाने के स्वाद में त्रुटि दिखने लगी।सामने मेज पर विभिन्न पकवान सलीके से सजाकर रखे हुए थे। स्टार्टर,मेन कोर्स और डेज़र्ट्स पंक्ति बद्ध रखें गए थे,जो मेजबान … Read more

मां का अंधविश्वास या भेदभाव – शुभ्रा बैनर्जी 

भेदभाव एक सर्वव्यापी सामाजिक बुराई है,जिसका सूत्रपात परिवार से होता है और सूत्रधार होतीं हैं औरतें।पुरुष का योगदान नगण्य है।रजनी के परिवार में इसका प्रत्यक्ष प्रमाण मिला,ननद के प्रथम प्रसव के समय।रजनी ने चार महीने पहले ही एक स्वस्थ बेटे को जन्म दिया था सामान्य प्रसव द्वारा।अब नव ब्याहता ननद आई थी प्रसव के लिए।रजनी … Read more

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