बदसूरती का दिखावा – शुभ्रा बैनर्जी 

आज तक यही सुना और देखा था मधु ने ,कि लोग अपनी सुंदरता,शिक्षा,पद और प्रतिष्ठा का झूठा दिखावा करते हैं।दिखावे के नाम पर शादी-ब्याह,पूजा -पाठ और रिश्तेदारी में अनगिनत झूठ के आवरण देखें थे मधु ने।

आज अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था रंजना को देखकर।रंजना की मां गुलाबो कॉलोनी में लोगों के घरों में काम करती थी।चार बेटियां और एक बेटा था उसका।पति आए-दिन मार -पीट करता रहता था।गुलाबो समय से पहले ही बूढ़ी हो गई थी।कभी -कभार जब अपने साथ काम पर अपनी बेटियों को लेकर आती,तो मधु को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था। बार-बार समझाने पर उसने बेटियों का मधु की सहायता से सरकारी स्कूल में दाखिला करवा दिया था।बेटा बचपन से ही मां के साथ रहता‌ था।ज्यादा पढ़ नहीं पाया पर सिलाई अच्छी कर लेता था।

तीन बेटियों की शादी जैसे-तैसे कर दी थी गुलाबो ने।चौथी बेटी रंजना अभी अविवाहित थी।हमेशा मैले-कुचैले कपड़ों में,बदसूरत सी रंजना गुलाबो के साथ अब काम पर आती थी।गुलाबो की बड़ी बेटी को ससुराल वालों ने निकाल दिया था।बहुत रोई थी गुलाबो मधु के सामने,”दीदी,भगवान कभी थकेगा नहीं क्या मेरी परीक्षा ले-लेकर।बड़ी मुश्किल से कर्ज ले-लेकर शादी कर पाई थी।अब देखिए ना घर पर आकर बैठ गई।”मधु के पास उसकी बातों का कोई उत्तर नहीं था।

आज शहर से बाहर मॉल में पिक्चर देखने जाना हुआ था बेटे के साथ।टिकट काउंटर पर एक खूबसूरत सी लड़की को देखकर, पता नहीं क्यों बहुत अच्छा लगा।लड़कियों को स्वावलंबी बनाने की पहल मॉल वालों की बड़ी प्रेरणादायक लगी।सिनेमा शुरू होने में समय था अभी।अनायास ही  नजर बार-बार उस सुंदर लड़की पर चली जा रही थी।




मधु की यह आदत कोई नई नहीं थी।कहीं भी किसी अनजान व्यक्ति से भावनात्मक जुड़ाव बहुत सहज ही हो जाता था उसका।अपनी इस अति संवेदनशील आदत को कभी बदल नहीं पाई थी वह।मध्यांतर में वेटर जब खाने का सामान और पानी की बोतल लेकर आया तो बेटे को बहुत आश्चर्य हुआ।उसने पूछा”मां,आपने कब आर्डर कर दिया?मैं तो लाने ही वाला था।”मधु स्वयं अवाक थी,कहीं उसके किसी छात्र ने तो नहीं भेजा?

असमंजस की स्थिति में जैसे-तैसे पिक्चर खत्म हुईं।बाहर निकल आंखें उस अनजान शख़्स को ढ़ूंढ़ रही थीं।कहीं कोई भी परिचित दिखाई नहीं दिया।बेटे ने तब वेटर से पूछा।वेटर ने काउंटर पर बैठी उसी खूबसूरत लड़की की ओर इशारा किया।मधु दिमाग पर जोर डालने लगी,यह किस बैच की है?कब पढ़ाया मैंने इसे?तभी वह लड़की आकर बेटे से बोली”भैया,मुझे आंटी से कुछ देर बात करनी है,आप बुरा‌ तो नहीं मानेंगे ना?”

बेटे को मधु के  शिक्षक होने का ऐसा संकेत पहले भी मिल चुका था,हो वह कुछ दूर चला गया।अब वह सुंदर लड़की मधु की आंखों में आंखें डालकर निर्भीकता से बोली”आंटी!!मैं रंजना हूं,गुलाबो की बेटी।”

“क्या???मधु को मानो सांप सूंघ गया।ओह तो इसलिए यह चेहरा इतना जाना पहचाना लग रहा था।रोज़ सुबह तो मिलती हूं इससे सड़क पर चलते।”आंटी!पहचान नहीं पा रहीं हैं ना आप??”रंजना ने इधर-उधर देखते हुए धीमी आवाज में पूछा।

“हां रे!!!रंजना,मैं क्या तुझे तो तेरी मां भी नहीं पहचान पाएगी।इतनी सुंदर दिखती है तू,और कैसी बनी रहती है घर पर??”मधु ने खुशी जताई।




“आंटी,आपको पता है ना हम कहां रहतें हैं? आस-पास सारे बदमाश लड़के रहतें हैं।यदि मैं अपने चेहरे और शरीर पर गंदगी का दिखावा ना करती तो,अब तक मेरी इज्जत चली गई होती।खूंखार भेड़ियों से बचने के लिए ही मैं बदसूरती का दिखावा करती हूं।आपने मुझे दसवीं तक पढ़ाई में जो मदद की,उसी की वजह से थोड़ी बहुत अंग्रेजी बोल लेतीं हूं।मैंने अपनी मां को भी अपनी कसम देकर रखी है कि,मेरी सुंदरता की चर्चा घर-बाहर किसी से ना करें।बाप तो सालों से घर आता नहीं।उसे पता भी नहीं मैं कैसी दिखतीं हूं।दोनों जीजा जब भी आंतें हैं,भूखे कुत्ते की तरह देखते हैं मुझे।मेरे शरीर से आने वाली बदबू और बदसूरती देखकर मुझे पागल समझते हैं वो।हर बार मुझे पाने की कोशिश करतें हैं,पर मैं उनके हांथों नहीं आई अब तक।आंटी मैं थोड़ा अनुभव पा लूं,फिर किसी और जगह अपनी मां को लेकर चली जाऊंगी हमेशा के लिए।”रंजना रोते हुए बोले जा रही थी और मधु का पूरा शरीर सुन्न पड़ने लगा था।

“आंटी,आपसे विनती है,इस बात का पता किसी को मत चलने दीजिएगा।एक गरीब जवान लड़की की सुंदरता उसके चरित्र में दाग होती है।मैं जहां काम कर जातीं हूं,पुरुषों की नज़रों को परखती हूं।एक बहुत पुरानी पिक्चर में देखा था मैंने।हीरोइन अपने आपको बदसूरत दिखाकर अपनी इज्जत बचा पाती है।मैंने भी वही किया।भैया से भी कुछ मत कहिएगा ना।”

मधु बुत बनी सुनती रही रंजना की बात। आज तक दिखावे के कई रूप देख चुकी थी वह।आज रूप के इस दिखावे ने औरत पर गर्व करने को विवश कर दिया।झूठी प्रसिद्धि के लिए रील बनाकर,अपनी झूठी आई डी बनाकर,लड़कों से झूठे प्यार का दावा करने वाली लड़कियों के बारे में सुना और देखा तो था,पर आज एक लड़की के आत्मसम्मान की शक्ति के आगे नतमस्तक हो गई मधु।इस दिखावे में कितना पवित्र मर्म था।बेटे से कहा दिया मधु ने”अरे,तुम नहीं पहचानोगे,बहुत कम समय के लिए ही एडमिशन लिया था इसने।एक महीने पढ़कर ही चली गई थी,पिता के तबादले के कारण।मुझसे मिलकर बहुत खुश हुई।मैं भी बहुत खुश हुई उससे मिलकर।”

“हां ,वो तो आपके चेहरे से ही दिख रहा है।अब चलें मां?”बेटे के सामने मधु का दिखावा भी काम कर गया था।।।

#दिखावा 

शुभ्रा बैनर्जी 

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