चौबाइन चाची – कनक केडिया

कुछ काम से,रास्ते मे आज बाजार जाना हुआ। रास्ते में ममतालु से चेहरे वाली गोल गोल एक अधेड़ औरत को देख जाने क्यूँ मायके की चौबाइन चाची की याद आ गयी। याद जब आ ही गयी है तो उस याद को आप सब से बाँटने का मन हो रहा है। सही बात तो ये है कि वो अब  हैं या नही ,नहीं मालूम मुझे पर जब देखा था तब जानने लायक शख्शियत ही थीं।

हमारी अम्मा बताती थीं कि चौबे चाचा वाली  चौबाइन चाची जब ब्याह कर मोहल्ले में आईं तो बिल्कुल दूबाईंन थीं मतलब दुबली पतली थी। उनकी सास बहुत ही कड़क वाली सास थीं, बिल्कुल पेरे रखतीं वो चाची को । पर चाची तो चाची थी ,न तो उनके मन को न ही उनके तन को कोई बात छूती ,वो तो मोहल्लेवाली सहेलियों के संग खिलखिलाती,बतियाती और मस्त खाती पीती थीं। इसी तरह वो दूबाईंन से चौबाइन का सफर  तय करती रही। इस बीच एक लल्ला उर्फ रंजीत ,और एक लल्ली उर्फ ललिता भी उनकी गोद का गौरव बढ़ाने उनकी जिंदगी में आ गए।

समय का कालचक्र  चलता गया,चौबाइन चाची की सास का वैकुंठवास हो गया । चौबाइन चाची  का तो रास्ता साफ मतलब अब छौबाईन बनने की तरफ आसानी से कदम बढ़ा सकती थीं। घी और शक्कर का भरपूर  प्रयोग और सेवकों की सेवा भी इस सफर की सफलता में  सहायक होने लगी। अनुशासन जिंदगी से दूर हो गया।

इसी सफर में चौबाइन के लाले रणजीत की  शादी की चर्चा चली । फिर वी दिन भी आया जब मुहल्ले वालों ने लड्डू खा, ज़ीरो फिगर वाली सुम्मी का चौबाइन चाची की बहू के रूप में स्वागत किया। 




बड़ा गजब हुआ। अम्मा एक दिन गईं बगल में नई बहू के हाल चाल लेने तो चौबाइन चाची का तो रोना ही नही रुक रहा था। अब ये बार बार चौबाइन सुन कर आप ऊब गए होंगे पर माँ शपथ हमे उनका असली नाम नही मालूम और हमे तो लगता है शायद ही किसी को होगा ! वैसे भी गावँ कस्बे में  यूँ ही पुकार कर काम चल जाता है जैसे फलाना की बहुरिया या ढिकना की मेहरारू।

हाँ तो याद आता है उस दिन अम्मा बता रहीं थीं कि चाची के सभी सपनों को सुम्मी भाभी ने चकनाचूर कर दिया। चाची कह रहीं थी कि जे सुम्मी तो माता जी से भी कड़क हिटलर निकली। अब तो घर मे ज्यादा फल ही नाश्ते में और कम घी तेल की सब्जियों के साथ रूखी रोटी मिलती है। अम्मा जब हमें बता रहीं थीं तो अम्मा के साथ हम भी खूब हँसे थे। सुम्मी ने चाची को सुबह आधा घण्टे घूमने का भी आदेश दिया था और सेवकों को कड़ी ताकीद थी कि उसके बिना उन्हें चाय न दी जाए। सच गजब जुल्म हो रहा था चौबाइन चाची पर।

एक दिन हुआ कुछ यूं कि एक गली का कुत्ता चाची के पीछे लग गया। चाची ने  तेज चलने की कोशिश की तो कुत्ते महाशय भौंकते हुए उनकी तरफ दौड़े।अब कोई बताए ड्रम को डुगराना आसान तो नही ना सो वही हुआ जो इस परिस्थिति में होना चाहिए। चाची का पैर फंसा साङी में और चाची चारों खाने चित्त गिरीं। खबर पहुंची और बेटे बहु दौड़े आये। प्लास्टर चढ़ा।

इस घटना ने तो चाची का नाम ही बदल दिया। बहु ने चाची को कह दिया अगर चाची खाना सुधार कर और घूमना तथा घर मे काम मे मदद कर वजन नही उतारें गी तो वो उनकी सर्ज़री करवा चर्बी कम करवा देगी। भोली चाची डर कर बहु की आज्ञानुसार चलने लगीं। फिर कुछ महीनों की मेहनत के बाद तो हमे भी उन्हें चौबाइन चाची कहने में शर्म आने लगी। फूले फूले गाल अपनी सामान्य गोलाई पर आ गए। ड्रम,कनस्तर हो गया।सच पूछें तो चाची की उम्र ही घटा गया उनकी बहू का अनुशासन। अब हम बच्चों को दिक्कत होने लगी कि चौबाइन चाची को किस नाम से बुलाएं तो हम बच्चा पार्टी एक दिन उनको घेर लिए। जब हमने उनसे नाम पूछा तो वो बड़ा शरमाईं फिर कहा” नन्ही “। खैर चाची सिकुड़ कर भी नन्ही तो नही हुईं थीं पर हमें उन्हें नन्ही चाची कहना शुरू करना पड़ा। हमारी जीभ ने भी पहले बगावत की कि चौबाइन वाली मिठास नन्ही में नही। हमने अपनी अपनी जिभों को समझाया ,सुम्मी भाभी का डर दिखलाया। कभी कभी हिटलर पना कितना अच्छा होता है ना।

पर जीभ उन्हें चौबाइन चाची नाम से ही पुकारती है।

 हर पढ़ते सुनते को भगवान ऐसी ही सुम्मी हिटलर से पाला पडवाये।

देखिये एक गोलू मोलू औरत को देख मैंने आप को कितनी लम्बी सैर करवाई। कैसी लगी चौबाइन चाची  से मुलाकात। कसम से बड़ी स्वीट लगती थीं जब ड्रम थीं।

स्वरचित 

कनक केडिया

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!