खुशी का दिखावा – प्रीती वर्मा

ब्याह के बाद पहली बार मानसी अपने मायके के किसी कार्यक्रम में शामिल होने आई थी।साथ में उसकी सास भी आई थीं।खूब अवभागत हुई उनकी, आखिर वो बेटी की सास जो थी।उनकी आवभगत में कोई कमी कैसे रहती भला?

मौका था मानसी के चचेरे भाई की सगाई का।उसके पहुंचते ही घर गुलजार हो गया।सभी भाई बहन इक्कठे थे।घर हंसी ठहाको से गूंज रहा था।तैयारियां भी जोरो शोरों से चल रहा था।

मानसी की नई नई शादी थी, तो वो भारी साड़ी और सोने के गहनों से लदी थी।कानों में बड़ी बड़ी चांद बलिया, हाथों में सोने के कंगन और भरी भरी चूड़ियां, गले में जड़ाऊ रानी हार, पावों में पाज़ेब, दोनो हाथों की उंगलियों में बड़ी बड़ी छतरी नुमा अंगूठियां।

घर आए सभी रिश्तेदार तो मानसी को देखते ही रह गए।कुछ एक तो आपस में खुसुर फुसुर भी कर रहे थे…बड़ी भाग्यवान है मानसी, कितना खुश रखते हैं उसके ससुराल वाले।आखिर रिश्तेदार यही देखकर तो खुशी का अनुमान लगाते हैं।लोगों की नजरों में बहु बेटियां जितना अधिक जेवरों और गहनों से लदी होती हैं, उतना ही अधिक खुश होती हैं।

पर मानसी का हाल कौन समझ रहा था, कि जून की इतनी भयंकर गर्मी में वो इतने भारी भरकम कपड़ों और गहनों में कितना असहज महसूस कर रही थी।

लेकिन जबसे मानसी आई है, उसके चेहरे पर हंसी के बीच तैरती उदासी को उसकी मां गरिमा जी बखूबी देख पा रही थी।चमकते गहनों के बीच दर्द की बारीक रेखा उन्हे साफ दिख रही थी। आखिर वो मां जो थी। मां की आंखे तो ममत्व का दर्पण होती हैं, जिसमें बच्चों के खुशी, दर्द और गम सब प्रतिबिंबित हो जाते हैं। मां को शब्दों की जरूरत नहीं पड़ती, मां की आंखे तो बच्चों का चेहरा देख कर ही उनका अंतर्मन नाप लेती है।

शाम को सभी इंगेजमेंट में शामिल होने के लिए तैयार थे।कुछ देर में सभी मेहमान गेस्ट हाउस के लिए निकलने वाले थे।तभी मानसी के सास की नजर उसकी भाभी सविता पर गई।जो साधारण सी दिखने वाली शिफॉन साड़ी, और लाइट ज्वेलरी में बहुत सुंदर लग रही थी।

“देवर की सगाई का मौका और तुमने इतने साधारण कपड़े पहन रखे हैं??और ज्वेलरी भी कितनी साधारण और हल्की है।लगता है ये लोग, तुम्हारे सास ससुर तुम्हे खुश नही रखते हैं। एक मुझे देखो मैं तेरी ननद को कितना खुश रखती हूं!हर पल गहनों और महंगे कपड़ों से सजा कर रखती हूं । आखिर हमारी बहुएं खुश तो हम भी खुश।”मानसी की सास मानसी की भाभी सविता को देखकर दंभ भरते हुए बोलीं।




आंटी जी ! महंगे कपड़े और भारी गहने ही खुशी का पैमाना नहीं होते।ये तो सिर्फ खुशी का दिखावा करने का सहारा मात्र होते है।मैं बहुत खुश हूं अपने ससुराल में!ये बताने और दिखाने के लिए मुझे गहनों और महंगे कपड़ों से खुद को सजाने की जरूरत नहीं है।मैं अपने मन की मालकिन हूं, जो पहनना चाहूं पहन सकती हूं।और न ही कोई कमी है। ना ही कोई रोक टोक है कि मुझे कब क्या पहनना है, और कैसे रहना है।मैं स्वछंद हूं।

और खुशी तो चेहरे और आंखो में झलकती है ! जो खुशी आप मेरी आंखों में देख सकती हैं क्या वो मानसी की आंखों में भी देखा है कभी ?? जरा गौर से देखिए, उसके आंखो में कितना दर्द है,कितनी उदासी है।कभी उस के मन को भी टटोलने की कोशिश कीजिए!और उसे उस के हिस्से का सम्मान और खुशी दीजिए।उसे अपना निर्णय लेने की आजादी दीजिए।उसे अपनत्व और स्नेह दीजिए, महंगे गहने और कपड़े नही।इसी में एक स्त्री की खुशी होती है।महंगे कपड़ो और गहनों में नही।बहु को खुश रखने का दिखावा मत कीजिए उसे सच में खुश रखिए ।

सविता की बातों से मानसी की सास का सर झुक गया,उनके पास कोई जवाब नही था ! क्योंकि आजतक वो महंगे कपड़ों और गहनों को ही खुशी का पैमाना मानती थी।और दिखावा करना तो उनकी फितरत में था।अपनी बात बहुओं पर जबरदस्ती थोपती थीं वो।लेकिन आज के बाद शायद ही वो अपने नियमों पर कायम रह पाएंगी।

थोड़ी दूरी पर खड़ी मानसी की मां की आंखों में खुशी की बूंदे ठहरी थीं, आखिर जो उन्हे दिखा मानसी के चेहरे पर, खुशी के परत के नीचे का दर्द, वो उनकी बहु ने भी देखा। ऐसे ही थोड़ी ना कहते हैं, भाभी मां समान होती है।

स्वरचित मौलिक

प्रीती वर्मा

कानपुर

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