बच्चों ने दी संस्कारों की सीख – शुभ्रा बैनर्जी

आज संगीता जी के यहां किटी पार्टी का आयोजन था।वह ख़ुद बहुत अच्छा खाना पका लेतीं थीं। मेहमानों को खुश करने के चक्कर में,आज उन्हें अपने हांथ के खाने के स्वाद में त्रुटि दिखने लगी।सामने मेज पर विभिन्न पकवान सलीके से सजाकर रखे हुए थे। स्टार्टर,मेन कोर्स और डेज़र्ट्स पंक्ति बद्ध रखें गए थे,जो मेजबान की कुशलता में चार चांद लगा रहे थे।घर की साथ सज्जा किसी होटल जैसी लग रही थी।मेहमान सखियां आंखों ही आंखों में एक दूसरे से मौन वार्तालाप करने लगीं थीं।एक बड़ा सा फूलदान कृत्रिम फूलों से लदा हुआ था,मजेदार‌ बात यह थी कि किसी विदेशी परफ्यूम की खुशबू आ रही थी।ऐसा भी हो सकता है क्या?होता होगा।

संगीता जी के बुजुर्ग सास -ससुर साथ ही रहतें थे।ससुर जी को शोरगुल पसंद नहीं था क्योंकि दिल के मरीज थे,तो उन्हें बताया गया था कि आज कीर्तन मंडली‌ आएगी।आप लोग अकारण बैठक वाले कमरे में मत आइयेगा।सभी मेहमानों को फूल देकर स्वागत कर रहीं थीं स्वयं संगीता‌ जी।इत्र भी छिड़काया गया।स्वागत के इस तरीके ने उन्हें मेहमाननवाजी में पहले पायदान‌ पर तो पहुंचा ही दिया था।मेहमानों की विस्मयकारी खुशी संगीता जी को अपने विजयी होने का संकेत दे‌ रही थी।अपनी आदत अनुसार सारी महिलाएं सास ससुर के पैर छूकर आशीर्वाद लेने गईं कमरे में।ससुर जी तो मानो धन्य हो गए।”आज के जमाने में ,जब लोग बहुओं की हमेशा बुराई करते रहतें हैं,ऐसी बहुएं भी हैं जो घूमना फिरना छोड़कर भजन कीर्तन करती हैं।वाह!हमारी बहू इतनी संस्कारी है,हमें तो पता ही नहीं था”।वो खुश होकर बोले‌ जा रहे थे,और सभी महिलाएं सकते में थीं।बाहर निकालकर‌ संगीता जी ने झूठ का पर्दाफाश किया कि क्यों उन्होंने किटी को कीर्तन बताया था‌ बाबूजी को।

खाने का दौर शुरू हुआ। इंपोर्टेड क्राकरी में चाय नहीं अमृत पी जा रही थी।खस्ते इतने करारे थे कि दुकान का नाम पूछने लगे सभी संगीता जी से।झट से उन्होंने पासा फेंका,”मुझे तो पता‌ नहीं कहां से लाए हैं आपके भाईसाहब।”




ड्रेस कोड भी गंभीरता से मानना अनिवार्य था किटी में।ग्रीन है तो पैरट ग्रीन,पिंक है तो मरून पिंक।मैचिंग क्लचर,सैंडिल, पर्स,बिंदी, चूड़ियां सम्मिलित थीं इस प्रतियोगिता में।बाज़ी मारी मिसेस कक्कड़ ने।प्रथम पुरस्कार में २०० रुपए की भेंट दी गई उन्हें संगीता‌ जी के द्वारा।कुछ महिलाएं स्वरचित काव्य पाठ कर रहीं थीं,तो एक ने हाई पिच का गाना लगाकर डांस करना शुरु किया।कोई किसी से कम क्यों रहे।हाउजी खेली गई,बीच -बीच में सौ बार रोककर नंबरों की जांच पड़ताल‌के साथ। कोल्डड्रिंक भी पेशे खिदमत हुआ।कुछ मेंटेन महिलाओं ने खाना सिर्फ चखा।सभी अपने-अपने परिवारों की बातें (चुगली)कर रहें थे।अपने बच्चों की योग्यता बढ़ा चढ़ाकर की जा रही थी।इस किटी पार्टी में नारी शोषण के विरोध में गजब की भाषणबाजी हो रही थी।महिला‌सशक्तीकरण का मंच था यह किटी पार्टी का आयोजन।

अब गेम खेलने की बारी थी।संगीता‌ जी‌ ने तैयारी कर के रखी थी पूरी।अब वाद विवाद के प्रतियोगी शांत हो चुके थे।गंभीर होकर जीतने के जतन सोच रहें थे शायद।

संगीता‌ जी के बच्चे उतने छोटे नहीं थे।सभ्य थे वे।अपने दादा दादी के साथ ही बैठें थे।टिंकू ने आज सुबह ही‌ सोच लिया था कि मम्मी को उनकी झूठ के नकाब से निकालना होगा।उन सभी को जो दोहरे चेहरे लेकर घूमती हैं। मोहल्ले में घूम घूम कर दूसरों के परिवारों में ताका-झांकी करती रहतीं हैं,और दोस्ती की आड़ में घर की बहुओं को‌ भड़काती रहतीं हैं।इसमें हमारी मां भी शामिल हैं।बांध में लोग कितना भला‌बुरा‌ बोलतें हैं।

रिंकू ने पूछा टिंकू से”भैया आपका‌ वीडियो तैयार है ना।मां को बुरा‌ तो‌ नहीं लगेगा ना ?”




“नहीं अब यह बहुत जरूरी हो गया है उनके लिए भी उनकी सहेलियों के लिए भी।”टिंकू तैयार था। पार्टी अंतिम दौर में थी,खेल का इंतजार था सभी को।तभी रिंकू अपनी दादी के साथ आम की शिकंजी लेकर आई और बताया कि दादी ने बनाया है घर पर।शिकंजी पीकर सभी की आत्मा तृप्त हो गई।तभी टिंकू ने आकर कहा”नमस्ते आप सभी आंटी को।आज‌ का गेम ज़रा हट के है।आप सभी को एक‌ वीडियो‌ दिखाया जाएगा एक साथ ,एक ही‌।बांध में आपसे उस संदर्भ में प्रश्न पूछे जाएंगे।”सभी महिलाएं अति उत्साहित हो गईं। टैलेंट की कमी थी क्या किसी में।सभी अपना व्हाट्स एप चालू करिए, वीडियो चालू होने वाला है।कोई ग़लती हो गई हो तो अपना बच्चा समझकर माफ़ कर दीजियेगा।सारी महिलाएं बेसब्री से मोबाइल पर आंख टिका चुकीं थीं।संगीता जी को भी यही करने को कहा गया।रिंकू ने बेचैनी बढ़ाते हुए शुरू किया गिनना-३ ,२ और अब १।

वीडियो शुरू हो गया था।सबकी आंखें मानो पत्थर की हो गईं,पलकें तक नहीं झपकी किसी ने।संगीता जी के झल्लाकर चिल्लाने का दृश्य था सबसे पहले। उफ्फफफफफ बड़ी आफ़त है यह किटी विटी भी।एक तो इतना छोटा सा घर,उस पर इन बूढ़ों ने एक कमरे पर कब्जा कर के रखा है,मेरी छाती पर मूंग दलने के लिए।अपने मन का कुछ भी नहीं कर सकती।सौ बहाने बनाने पड़ते हैं।वो मिसेज शर्मा आते ही अपने गहनों की नुमाइश शुरू कर देगी,कितनी बार कहा‌ है इनसे एक मेरे लिए भी बनवा दीजिए,पर नहीं फिजूलखर्ची है यह।मिसेज वर्मा शहर में बने एक और मकान की कहानी सुनाएंगी, बाथरूम इतना बड़ा है कि सौ लोग साथ में नहा लें।उफ्फ।अपने घर पर हुई पार्टी के खाने का तो इतना बखान करेंगीं जैसे खुद ही बनाया है।सब अनपढ़ जाहिल हैं एक से बढ़कर एक।अपने पतियों की दो नंबर की कमाई पर इतराती हैं।और उस पर हैं एक खास खड़ूस मिसेज बैनर्जी।स्कूल में पढ़ाती हैं तो ठीक है ना।यहां पर टीचरी झाड़ने की क्या जरूरत है?उनके सामने किसी की बुराई ज़रा सा कर दो बस ,बड़ी -बड़ी आंखें दिखाकर कहा देंगी झट से “यह ग़लत है।”किसी दूसरे के बारे में उसकी अनुपस्थिति में चर्चा करना उचित नहीं।हां हां सारे उचित-अनुचित का ठेका उन्होंने ही‌ लेकर‌ रखा है।पता नहीं क्या खाक सेवा करतीं हैं अपने सास की कि सभी बड़ी तारीफ कर कर के उनका मन बड़ा दिए हैं।अरे ख़ुद ना करें हमें करने से‌ रोकना क्यों।महीने में एक बार ही तो मिल पातें हैं‌ सब।अरे टिंकू पार्लर वाली अभी तक नहीं आई।बाल‌सैट करवाना था।पिछले महीने बोल चुकी हूं सहेलियों को।अब क्या मुंह दिखाऊंगी।एक काम अगर तुम लोग सही कर सको।अरे मां जी!कितना समय और लगेगा अभी आपको कचौड़ी की तैयारी में।पकोड़े भी बनाने हैं।मटर भी नहीं उबला‌अभी तक।अब खत्म होगा यह सब।थोड़ा और जल्दी कराते,नहीं तो आपकी बहू की ही नाक कटेगी।और हां सब के आ जाने पर बाहर आकर पूछते मत पारियों कि कैसा बना है?मेरी सहेलियों को शक हो जाएगा।जासूस हैं पूरी।तुमसे पूछे आकर अगर तुम्हारी लाड़ली मिसेज बैनर्जी तो कहियो बाजार से मंगवाया है।अपना‌ दुखड़ा सुनाने न बैठ जाना।और बाबूजी को अभी से खांसी की दवा दे दो।नहीं तो पूरा समय खांसते ही रहेंगे।चलो चलो जल्दी कर लो‌ तैयारी।मेरा क्या है ,मैं तो बहू हूं,तुम्हारे बेटे की इज्जत तो बचाना‌पड़ेगा ना सोसायटी में।




वीडियो ख़त्म हो चुका था।सभी को मानो सांप सूंघ गया था।रह केवल संगीता की स्टोरी नहीं‌,वहां उपस्थित अधिकांश महिलाओं की आपबीती थी।हम सभी यही तो करते हैं अक्सर।हम हमेशा खुद को बच्चों के पालक मानते हैं,उन्हें नैतिकता का पाठ पढ़ाते हैं और समय पढ़ने पर उन्हें सीख देने के लिए शरीर पर चोट भी देतें हैं।आज लेकिन बच्चों ने संस्कारों की जो शिक्षा हम मांओ को दी ,मैं नतमस्तक हो गई उनके सम्मुख।नैतिकता का पाठ पढ़ते हुए बच्चों ने अनैतिकता का विरोध करना सीख लिया था।यह उनके सुखमय भविष्य की पहली सीढ़ी थी।

यह सच है कि घर की चारदीवारी में दिन रात रहकर औरों को खुश करते-करते हमारा अपना जीवन शून्य होने लगता है।स्वयं के मनोरंजन के लिए‌ हम प्रसाधन‌ ढूढ़ते हैं। स्वस्थ परिवेश में रहकर एक दूसरे से मिलने पर हमें अपनी समस्याओं का समाधान भी मिल जाता है कभी कभी।परंतु सर्वश्रेष्ठ की अंधी दौड़ में दौड़कर हम अपने परिवार से या तो दूर होते जा रहें हैं या वो हमसे पीछे रह जा रहें हैं।घर पर रहकर घर संभालने से ज्यादा विशिष्ट कार्य और कुछ नहीं।हम आम नहीं खास हैं औरतें।ईश्वर ने सभी को कोई न कोई गुण देकर भेजा‌ है‌ दुनिया‌में।उसे ढूंढ़ने का प्रयास करें और वहीं अब हमारा शौक बन जाएगा पता ही नहीं चलेगा।जिन्हें हम सखी,सहेली‌कहते हैं‌ यदि उनके बारे में नकारात्मक विचार रखते हैं तो ऐसे रिश्तों को तुरंत खत्म कर देना चाहिए।जिसके पास जितनी आय है उस हिसाब से‌ यदि हम अपने घरों के आयोजन करेंगे तो वे‌ सफल ही होंगे।यह किसी एक महिला‌के लिए‌नहीं संपूर्ण महिला‌ जाति के लिए है।हम हैं शक्ति शाली क्योंकि हम परिवार‌को शक्ति का आनंदमई भोजन देते हैं।तो फिर महिला‌सशक्तीकरण पर अपने‌परिवार में काम करने को शोषण का रूप देना क्या उचित है??

शुभ्रा बैनर्जी 

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