मां तुम तो वट वृक्ष हो हमारी – शुभ्रा बैनर्जी | best hindi kahani

इस लड़की का मैं क्या करूं?कभी सुनती ही नहीं मेरी।सुधा पहले से ही जानती थी कि उसकी बेटी यशा मानेगी नहीं।शादी की बातचीत जब से शुरू हुई थी,तब से सुधा का मन इसी आशंका से आहत हो रहा था।पक्की बात करने जब वैभव और उसके माता-पिता आए,तभी यशा ने सहज तरीके से उन्हें समझाया था कि शादी की कोई भी रस्म बिना मां के नहीं होगी।वैभव से इस सिलसिले में उसने पहले ही बात कर ली थी।वैभव‌ ने अपने माता-पिता को यशा के इस फैसले के बारे में शायद बता दिया था,तभी तो उन्होंने सहज ही स्वीकृति दे दी थी।

जाते समय वैभव की मां से नजर नहीं मिला पा रही थी सुधा।क्या सोचतीं होंगी वो अपनी होने वाली बहू के बारे में।इतनी ज़िद यदि ससुराल पहुंच कर करेगी ,तो कैसे सामंजस्य बिठा पाएगी।सुधा वैभव की माता जी को बगीचा दिखाने के बहाने अकेले में बाहर लेकर आई और बोली”बहन जी ,आप चिंता मत करिएगा।मैं शादी की रस्मों के समय कुछ बहाना करके‌ यशा से दूर ही रहूंगी।मेरी छाया नहीं पड़ने दूंगी उस पर।मेरी बहुत चिंता करती है ना,इसलिए ऐसी जिद पकड़ के बैठी है।आप अपना मन छोटा ना करिएगा किसी अनिष्ट की आशंका से।”

“कैसी बातें कर रहीं हैं आप ?बहन जी ऐसी बेटी की मां होने पर आपको गर्व होना चाहिए।आजकल तो बच्चे अपनी शादियों को लाइमलाइट में लाना चाहतें हैं।अपनी ज्वैलरी,लंहगा, मेकअप और डेस्टिनेशन वैडिंग के बारे में सोचते हैं बच्चे।आपकी बेटी को इन चीजों की कोई चिंता नहीं है।वह तो सिर्फ इतना ही चाहती है,कि आप उसके सभी रस्मों में शामिल रहें।”वैभव‌ की मां ने जिस सरलता से यह बात कही,सुधा के मन से बोझ उतर गया एकदम से।फिर भी मां है ना वह,अपनी‌बेटी के अनिष्ट का कारण कैसे बन सकती है।विधवाओं को तो विवाह के किसी रस्म में शामिल होने की मनाही है। सुधा ने कहा”बहन जी आप ही किसी पंडित जी की आज्ञा कहकर यशा को समझाइए ना।मैं नहीं रहना चाहती उसके आसपास।”




“देखिए बहन जी,मैं क्षमा चाहती हूं आपसे।जिस दिन यशा घर आई थी वैभव के साथ,उसी दिन उसने मेरा‌ दिल‌ जीत लिया।मैंने कही थी उससे यही बात विधवा वाली।जानतीं हैं उसने मुझसे क्या कहा?”

उसने मेरा हांथ पकड़ कर पूछा”

 अपने बेटे की शादी करवाने के‌ लिए  आप और अंकल‌ कितना दौड़ -भाग कर‌ रहें हैं।सारा बाहर का काम अंकल‌संभाल रहें हैं और घर ,रिश्तेदार,गिफ्ट की जिम्मेदारी आप पर है ना?मैंने जब कहां हां,तो वह बोली पर मेरी मां अकेली मां और पापा दोनों का फर्ज निभा रही हैं।भाई के साथ जा -जाकर हर चीज ध्यान से देख समझ कर ला रही है।उन्हें इतना सुख तो मिलना चाहिए कि वह अपनी बेटी को अपने सामने दुल्हन बनते और वैभव को‌ दामाद के रूप में देखे।पापा‌ की बहुत देखभाल की उन्होंने,पूरे‌ आठ साल।जी जान लगा दी मां ने‌,पापा को बचाने में।नियति को ही मंजूर नहीं था सो पापा चले गए।मेरी मां जिंदा‌ है‌,तो उन्हें बेटी के ब्याह के सुख से वंचित क्यों‌ रखा जाए।आंटी भगवान ना करे,यदि अंकल नहीं होते तो क्या वैभव‌आपके‌ बिना शादी करने को तैयार होता?कभी नहीं।मैं ही ना करती यदि वो ऐसा करता।आंटी मां का अपने बेटी -दामाद को देखकर आशीर्वाद देना ही सबसे बड़ा शगुन है।आप अभी सोचकर बोलिए।घर पर मम्मी के सामने ये सब बातें मैं बोल नहीं पाऊंगी।ना मैं उनके सामने कमजोर होना चाहती हूं और ना ही उन्हें कमजोर देखना चाहती हूं।”

“बहन जी ऐसी बेटी जो अपनी मां के सुख के लिए इतना सोचती है,अपनी सास का दिल कभी नहीं दुखाएगी।मुझे ऐसी ही स्पष्ट बोलने वाली‌ बहू चाहिए,जिसके मन में कोई खोट ना हो।दिखावे‌ के दो चेहरे ना हो।”वैभव की मां के सुलझे विचारों ने सुधा का दिल जीत लिया।




शादी बहुत साधारण तरीके से करने की यशा की शुरू से इच्छा थी।हल्दी भी सुधा‌ के हांथों ही लगवाई पहले।तैयार होते समय सुधा को अपने पास ही बिठाकर रखा विशेष टिप्पणी के‌ लिए।वरमाला‌के समय वैभव को चिढ़ाते हुए उसकी मां से बोली”डाल दूं ना आंटी?आप को यही बेटी ही चाहिए ना बहू के रुप में?”सुधा से भी पूछने लगी” देख लो मां आखिरी मौका है,अगर तुम्हें नहीं पसंद तो नहीं डालती वरमाला।”सभी खिलखिलाकर हंसने‌ लगे।विदाई के समय अपनी सास को कह कर रखा था कि मां को रोने मत दीजिएगा बिल्कुल।फिट आने लगें हैं उन्हें।और वैभव की मां हांथ पैर छोड़ छोड़ कर सुधा को मनाती रही ना रोने‌ के लिए।वो तो बाद में उन्होंने जब पूछा सुधा से फिट के बारे में तो उनका हंस-हंसकर कर बुरा हाल हो गया।यशा ने सास को लगाया हुआ था सुधा के पीछे झूठ बोलकर कि कहीं रोए ना ज्यादा।

शादी के बाद भी आई यशा चहकती हुई अपने सास-ससुर के साथ।इन्हें अकेले छोड़कर आने का मन नहीं किया मां।वैभव के बिना ये लोग कभी नहीं रहे ना।यशा की बातें सुनकर आज सुधा को शांति मिली कि बेटी ने अपने सास-ससुर को उचित प्रेम और सम्मान देना सीख‌ लिया है।

कुछ एक महीने बाद ही वट सावित्री का उपवास था।यशा और उसकी सास के लिए पूजा की साड़ी खरीदकर गई  थी सुधा पहुंचाने।एक ही शहर में ससुराल होने का यही फायदा था।तभी वापस आते समय यशा की सास ने जामुन के बीज के रंग की एक सिल्क साड़ी सुधा के हांथों में देकर कहा,”आप पहनना इसे पूजा वाले दिन।”




सुधा घर आकर‌ सोचने लगी,यह रंग तो यशा को पता था मेरा पसंदीदा।हम्म,उसी‌ ने खरीदी होगी और सास के हांथ से दिलवाई।दिमाग तो कंम्पयूटर से भी तेज चलता‌है,बचपन से इसका।सुधा के घर के पीछे बड़ा सा वट वृक्ष था।शायद सौ साल उमर होगी उस पेड़ की।सभी वहीं पूजा करते थे।वैभव के घर के आसपास पेड़ ना होने से उसकी मां मंदिर‌ जाती थीं हर साल।वहां वट वृक्ष के नीचे पूजा करती थीं।इस बार यशा उन्हें लेकर सुधा के घर आ गई। ” मां मैं मम्मी को यहीं ले आई पूजा करने। तुम्हारी दी हुई साड़ी ही पहनी है हमने।तुम भी तो पहन लो।पूजा मत करना यदि मन नहीं है,पर साथ में जाकर खड़ी तो यह सकती है।”

यशा ने जब सुना से कहा तो सुधा को अच्छा नहीं लगा।क्यों सास को भी यहीं ले आईं?अब वह भी जिद करेंगी मुझसे साथ में चलने की।यशा को चुपचाप बुलाकर सुधा समझाने लगी यही सब।यशा ने सुधा का हांथ पकड़ा और पीछे लगे वट वृक्ष की ओर देखकर बोली”,मां तुम हमेशा से  इस घर का वट वृक्ष ही थी।तुम्हारी छाया ने दादा जी को दस साल बीमारी से लड़ने‌ की शक्ति दी,तुम्हारी छाया ने तुम्हारे‌ मायके और ससुराल वालों को प्रेम का संबल‌ दिया, तुम्हारी छाया ने मुझे कम उम्र में बाहर पढ़ने का हौसला‌ दिया,तुम्हारी‌छाया में रहकर पापा डटे रहे अपनी‌ बीमारी‌ के आखिरी दिनों तक।तुम्हारी छाया में रहकर ही भाई‌ चरित्रवान बन पाया।तुम्हारे प्रेम और देखभाल की छाया में इतने बड़े आपरेशन के बाद भी दादी चल पा रहीं हैं।तुम्हारे प्रेम और ममता की छाया में तुम्हारा पढ़ाया‌ हुआ हर बच्चा आज भी तुमको मानता है।तुम तो खुद ही वट वृक्ष हो।और वट में सावित्री स्थापित हैं।तो तुम हुई ना वट सावित्री।”

यशा की बातें सुनकर उसकी सास भी रोने लगी और सुधा अपलक निहार रही थी अपनी बेटी को।कितना गहन विश्लेषण कर लेती है तू अपनी मां का।सदा सुहागन रह बेटी,हमेशा खुश रह और दूसरों को खुश रख।

शुभ्रा बैनर्जी 

#पछतावा

(व)

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!