हीरे की परख – डा.मधु आंधीवाल | best family story

दिल्ली से मुम्बई जाने वाली ट्रेन की आर ए सी सीट में बैठी कनिका मन ही मन दुआ कर रही थी कि काश दूसरे यात्री की ट्रेन छूट जाए ताकि उसे पूरी बर्थ मिल जाए। ये सोचते हुए उसने पैर फैला पूरे बर्थ पर कब्जा कर लिया लेकिन हर बार वह कहाँ होता जो आपने सोचा होता है। अगले ही पल एक भारी भरकम आवाज सुनाई दी, “एक्सक्यूज मी मैम, आप मेरी सीट पर बैठी हैं ” कनिका  कुढ़ते हुए चुपचाप अपनी सीट की ओर खिसक गई।  उस शख्स ने अपनी सीट पर बैठते हुए हैरानी से कहा,  ” तुम कनिका ही हो न , मैं आशीष,  पहचाना नहीं मुझे” 

अब हैरान होने की बारी कनिका की थी। आशीष के इस नये आकर्षक व्यक्तित्व को देख कनिका का मुंह खुला का खुला रह गया । कभी दुबले पतले साँवले से सीधे सादे तथाकथित गंवार आशीष के प्रणय निवेदन को उसने कैसे ठुकरा दिया था ।

      कनिका बीते दिनों की यादों में पहुँच गयी । आशीष उसका कालिज का होनहार विद्यार्थी था पर शक्ल सूरत से सीधा सादा ग्रामीण परिवेश में पला बढ़ा हुआ था । कनिका उतनी ही मार्डन और उच्च सोसायटी में पली हुई । कालिज के सब छात्र उससे दोस्ती चाहते थे पर वह बहुत मूडी थी । आशीष उसका सीनियर था । वह कनिका की सुन्दरत से प्रभावित था । धीरे धीरे कुछ ऐसी परिस्थितियाँ बनी कि उन दोनों की दोस्ती हो गयी । कनिका उसकी मदद पढ़ाई में लेने लगी ।

जब सब सहेलियां उसे छेड़ती तो वह हंस कर कहती  “कहां राजा भोज और कहां गंगू तेली ” मै तो बस उससे नोट्स आदि बनवा लेती हूँ जिससे मेरा मतलब हल हो जाये । तुम सब सोच सकती हो यह गंवार मेरे लायक है। जब आशीष का आखिरी पेपर था तब उसने कनिका से कहा कि वह उसे प्यार करता है और उससे शादी करना चाहता है।




तब उसने बहुत नाटकीयता से कहा मि. आशीष कभी अपना स्तर और मेरा स्तर देखा है। तुम कितना अपने आपको मेरे लायक समझते हो । तुम्हारी मदद क्या ले ली पढ़ाई में कि तुम शादी के ख्वाब देखने लगे । आशीष बहुत दुखी मन से चला गया ।

       कनिका के पिता मि. सिन्हा शहर के जाने माने उद्योग पति थे । कनिका दो भाईयों के बीच अकेली बहन थी । मि.सिन्हा और दोनों भाई उसके लिये अच्छा लड़का चाहते थे । उसी समय उसकी शादी शहर के ही जाने माने उद्योग पति के बेटे शोभित से तय हुई और आलीशान लोगो की आलीशान शादी हो गयी। आशीष मन की भावनाओं को दबा कर उच्च शिक्षा के लिये जुट गया । कुछ दिन कनिका बहुत खुश रही पर धीरे धीरे शोभित के चेहरे से नकाब उतरने लगा वह ड्रग लेता था व उसके बहुत से अवैध सम्बन्ध थे । वह कनिका को अधिक महत्व नहीं देता था ।

बस उसकी जरूरत कभी कभी रात में बिस्तर तक सीमित थी । जब उसने घर की पुरानी सेविका से पूछा पहले तो वह टाल गयी पर कनिका की आंखो में आंसू देकर कहा बिटिया तुम्हारे साथ धोखा हुआ इस घर में सबको इनकी इन आदतों का पता था । बस पग फेरे की विदा के बाद  उसने ससुराल जाने से मना कर दिया ।

अब उसने अपने पापा की एक ब्रांच जो बोम्बे थी उसको संभाल लिया । आज वह बॉम्बे जा रही थी । उसकी फैक्ट्री निरन्तर तरक्की कर रही थी कुछ खास बात के लिये वह दिल्ली आई थी । शोभित से बहुत पहले तलाक ले लिया था ।




अचानक आशीष को सामने देखकर वह कुछ बोल ही नहीं पाई क्योंकि आशीष बिलकुल बदल गया था । जब अर्दली और गनर उसके साथ देखे वह समझ गयी कि किसी अच्छे ओहदे पर है। आशीष ने कहा कनिका कैसी हो पति कैसे हैं बच्चे नही साथ अकेली कहां जा रही हो । कनिका बोली मैने तलाक ले लिया बॉम्बे पापा की फैक्ट्री संभालती हूँ । आशीष ने कहा अरे वह तो तुम्हारे स्तर का और तुम्हारे लायक था फिर भी ।

उसी समय गाड़ी दूसरे स्टेशन पर रुकी आशीष उठा और एक सुन्दर सी महिला को हाथ पकड़ कर लाया बोला कनिका मेरी पत्नी यह यहाँ जिलाधिकारी हैं कुछ समय के लिये अवकाश लेकर मेरे साथ जा रही हैं । कनिका की आंखों में हल्की नमी आ गयी । सोचने लगी मै जौहरी नहीं थी इस हीरे को नहीं परख पाई ।

स्वरचित

डा.मधु आंधीवाल

#पछतावा

(v)

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