बहू का प्रमाण पत्र – शुभ्रा बैनर्जी

सौम्या की बेटी की शादी की बातचीत चल रही थी।बेटी पढ़ी-लिखी और समझदार थी ।मां से उसका भावनात्मक लगाव कुछ ज्यादा ही था।बचपन से उसने सौम्या को संघर्ष करते ही देखा था।बड़ी होने पर अक्सर बोलती “मैं शादी नहीं करूंगी कभी।तुम्हारे जैसी अच्छी बहू ना मैं बनना चाहती हूं और ना ही बन पाऊंगी।सारा जीवन खाली दूसरों को खुश करने में बिता दिया।तुम्हें क्या मिला?

तब सौम्या टीचर की तरह समझाती”देख जैसे स्कूलिंग खत्म करके तुम सब डिग्री लेने विभिन्न संस्थाओं में प्रवेश लेते हो।कोई प्रथम, द्वितीय, तृतीय आता है,ठीक उसी प्रकार एक नए परिवार में आकर नए परिवेश में सभी के साथ ताल मेल बिठा कर जीवन जीना ही बहू की डिग्री मिलना है।प्रिया कभी सहमत होती नहीं थी।

आज सौम्या विदा कर रही थी अपनी प्रिया को।ना रोने की कसम पहले ही डाल दी थी दुष्ट ने,सो रोई नहीं सौम्या।विदाई के बाद पूजा घर में बैठकर मन भर के रोई।ये धन्यवाद के आंसू थे।पगफेरे में प्रिया आई थी समीर के साथ।अपने ससुराल के विषय में एक भी बात नहीं की उसने, सौम्या ने भी जैसे ही कुछ पूछना चाहा,उसने बात बदल दी। सौम्या को अंदर ही अंदर चिंता सताने लगी। किससे पूछे?अपनी नवविवाहिता बेटी की ससुराल के बारे में दामाद से पूछना तो अति अशोभनीय होगा।दो दिन‌ हंसी खुशी बिताकर प्रिया और समीर अपने घर जाने लगे।दो दिनों बाद ही हैदराबाद जाना है दोनों को प्रेजेंटेशन के लिए कंपनी का।गाड़ी में चढ़ते हुए पूछा ही लिया प्रिया से” ससुराल में सब कैसे हैं बेटा?

“सब कौन मां?हम चार लोग ही तो हैं वहां।प्रिया ने बताया ।

“नहीं मतलब उनका व्यवहार तुम्हारे प्रति? सौम्या ठीक से पूछ भी ना पाई।”मां, तुम क्यों चिंता करती हो?हर समस्या का समाधान होता है। तुम्हारी बेटी समस्या को सूंघकर पहले ही समाधान की व्यवस्था कर रखती है।और मेरे ससुराल में होने वाली किसी भी बात पर तुम दखल मत देना,ना ही समीर को इतना अधिकार दे देना कि वो तुम्हारे परिवार में अनावश्यक दखल दे।”प्रिया का दो टूक पर सही जवाब सुनकर सौम्या चुप हो गई।अगले दिन प्रिया को फोन लगाया तो डांट रही थी अपनी सास को। सौम्या के पैरों से जमीन खिसकने लगी।जोर से डांटकर पूछा “प्रिया अपनी मां जैसी सास को क्यों डांटकर बात कर रही है तू?”




“तुमने मुझे क्यों डांटा अभी?प्रिया ने मुझपर ही सवाल दागा ।”मैं मां हूं तुम्हारी। तुम्हें प्यार करती हूं ,तो डांटने का हक भी है मुझे। सौम्या बोली।

“वाह मां! तुमने तो खुद अपने सवाल का जवाब दे दिया।”जिन्हें हम प्यार करते हैं,उन्हें डांटने का हक भी रखते हैं।”दवाई नहीं खा रही थी न इसलिए डांटा मैंने।

है भगवान!इसे सुबुद्धि देना।ऐसा ही चलता रहा तो किसी दिन समीर के मम्मी पापा मेरी क्लास जरूर देंगें।समीर से शिकायत करनी चाही तो उल्टा उसने भी मुझे समझा दिया”मम्मी आप कूल रहो।आपकी बेटी सब मैनेज कर लेती है।”मैनेज कर लेती है!!!मैनेजर है क्या?समीर को भी नचा रही होगी ज़रूर।डरता होगा तभी तो पक्ष ले रहा उसका।दो दिन बाद दोनों लौट चुके थे,और इधर उसी दिन समीर की मां बाथरूम में गिर पड़ीं और पैर बुरी तरह टूट गया था।समीर के पापा ने फोन पर खबर दी। सौम्या ने प्रिया को तुरंत आने के लिए कहा तो बोली”अभी सिर्फ समीर आ रहा है मां।मैं बाद में आऊंगी।”सौम्या एक दबी हुई चिंगारी को सुलगते हुए देख सकती थी।डर था तो इस बात का कि यह कहीं ज्वालामुखी बनकर फूट ना जाए किसी दिन। सौम्या समीर की मां के सामने बहुत शर्मिन्दा हो रहीं थीं।इस बुरे वक्त में नहीं आ सकी प्रिया।ये अच्छा नहीं किया उसने।समीर ने आकर मम्मी को एडमिट करवाया।पापा भी उसके सक्रिय थे। सौम्या को बता दिया गया अपने घर चले जाने के लिए।अगले दिन‌ समीर आकर खाना ले जाएगा। सौम्या ने कहा भी कि मैं रुक जातीं हैं तुम्हारे घर पर।चाय ,दूध‌,नाश्ता ,खाना‌सभी तो देखना होगा।समीर ने शांति से कहा “आप कूल रहिए मम्मी,हम और पापा मैनेज कर लेंगे ना”सौम्या समझ रही थी कि समीर के मुंह से प्रिया ही बोल रही थी।

हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होकर घर आते ही समीर चला‌ गया और प्रिया आ गई।चार महीने रही एक या दो बार ही आ पाई सौम्या से मिलने।जाने के दो दिन पहले आई और सौम्या को साथ ले जाकर‌ घर की जरूरतों की सारी चीजें खरीद लाई।मौका देखकर सास के बारे में कुरेदने ही वाली थी कि प्रिया गंभीर होकर बोली”मां!!!मैं किसी जंगल में नहीं गई।घर है वो मेरे पति का।सास एकदम से मां तो नहीं बन जाएगी ना।मैं चाहती भी नहीं।सबका‌ओहदा‌ अलग-अलग होता है।मेरी ज़िंदगी में मैं रिश्तों को उलझाना नहीं चाहती।तुम मेरी मां हो,समीर की नहीं,और समीर‌अपनी मम्मी का बेटा है मैं बेटी नहीं।रिश्तों को उलझाओगे तो और उलझते चले जाएंगे।तुम ज्यादा जाने लगोगी वहां तो तुम्हारा‌ खुद का आत्मसम्मान चोटिल होगा।जब विशेष जरूरत है तभी जाना।और हां ये चुगली चाकरी वाली आदत अब तुम मत सीखना नया नया।तुम बाकी मां से अलग थी हमेशा ,अलग ही रहना।कुछ भी लगेगा बताना मुझे।”सौम्या बेटी की तरफ देखे जा रही थी।




कुछ दिनों के बाद सोचा‌ सौम्या ने कि समीर की मम्मी को देख आए।वहां जाकर देखा मानो पार्ट  चल रही है।वह वापस जाने के लिए मुड़ी ही थी कि समीर की मम्मी ने अपनी सहेलियों से जोरदार ताली बजवाई सौम्या  के लिए।पक्का प्रिया‌ की करतूतों का बदला लेंगी मेरी बेइज्जती करके।समीर की मां अब चल सकती थीं।सौम्या को गले लगाते हुए कहा “आपके कारखाने में तैयार बहू सर्वगुण संपन्न है बहन जी।आग भी है,बारिश की बूंद भी है।ममता की मूरत है तो शेरनी भी है।मैनेजर, इंजीनियर,डाक्टर, नर्स, क्या-क्या नहीं सिखाया आपने उसे?आप तो इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ बहू हैं।शादी के समय प्रिया की दादी से कुछ देर बात हुई थी,तब कहा था उन्होंने “मेरी बहू दुनिया की सबसे श्रेष्ठ बहू है,उसकी संतान है प्रिया।अब आप को कुछ भी सोचने की जरूरत नहीं।सच में बहन जी जिस बहुत को उसकी सास प्रमाणपत्र दे दे,उस बहू का मिलान‌ किसी से नहीं हो सकता।” 

आपकी बेटी शादी से पहले ही मुझसे मिलकर समीर की ,पापा की,मेरी पसंद नापसंद के बारे में पता कर लिया था।अपने भविष्य की योजनाओं को बताया है उसने।भविष्य में परिवार बढ़ने,पढ़ाने, दवाइयां,आदि के खर्चों में वह बराबर का पैसा देना चाहती है।सुख हो या दुख पति के पैसों में अपना पैसा मिलाकर ही भविष्य में कुछ भी करेगी वह।मेरे पैर टूटने पर अगर दोनों आते तो दोनों की सैलरी कम होती।उसने मुझे बताकर ही समीर को भेजा तब।जब मैं घर आ गई तो मेरी सेवा करने महीनों की सैलरी गंवाकर मेरी सेवा की।मेरे बेटे का हांथ खर्चीला है, इसलिए मैंने मंगवाएं हैं बोलकर समीर के पैसे मुझे भेजकर एस आई पी करवाई मेरे नाम से ताकि भविष्य में हैदराबाद में घर ले सकें।समीर के पापा का खाना पूरा कंट्रोल कर दिया है इसने।”

समीर की मम्मी ने और राज खोले” बहन जी आपकी बेटी आपका अभिमान है।आपके आत्मसम्मान को कभी मिटने नहीं देगी आपकी बेटी।मुझे भी समझाया कि हम दोनों अगर जरूरत से ज्यादा करीब आएंगे तो बच्चों के बीच दूरियां आ जाएंगी।समीर अपने पेरेंट्स को जैसी इज्जत देगा वैसी आपको नहीं देगा कभी।इतिहास गवाह है।इसलिए आप उसकी बिल्कुल चिंता मत करिए।आपके फैक्ट्री से निकली हमारी बहू लाखों करोड़ों में नहीं अपने आप में एक ही है।

#बहु 

शुभ्रा बैनर्जी

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