अपने बारे मे सोचना खुदगर्जी नहीं .. – अंजना ठाकुर : Moral stories in hindi

ये देखो इन्हें जरा भी चिंता नहीं है इतनी मेहनत से बना खाना  कैसे बर्बाद करने मैं लगे है थाली में सब्जी बची हुई देख पारस जी की बहू रीना ताना देती हुई बोली।

बहू वो सब्जी मैं मिर्च ज्यादा थी तो खाई नहीं गई थोड़ा मिर्च कम डाला करो।

लो अब खाने मैं भी नखरे है हम भी बही खाना खा रहे है किसी ने शिकायत नहीं करी ।जबकि रीना ससुर के खाने मैं उपर से मिर्च डाल देती जिस से वो ज्यादा खाना ना खाए ।

पारस जी अपने बेटे के साथ रहते थे उनकी पत्नी की कुछ समय पहले मृत्यु हो गई थी जब तक वो थी तो सारा काम बही सम्हाल लेती रीना को ज्यादा काम की आदत नहीं है ।उनके जाने के बाद ससुर की पूरी जिम्मेदारी उस पर आ गई ।इस बात को ले

कर वो उन्हे ताने मारती रहती इस कारण पारस जी तनाव मैं रहते ।

उनका बेटा अंकित भी अपनी पत्नी के इशारे पर चलता एक दो बार उन्होंने बताया भी की बहू इस तरह बात करती है तो उसने उन्हीं को डांट दिया की आपको घर मैं रखे है ये ही बहुत है ।पारस जी चुप हो गए अब इस उम्र मैं कहां जाएं ।अंकित उनकी इकलौती संतान है ।

आज काफी दिनों बाद पारस जी अपने पेंशन के पैसे लेने गए तो रास्ते मै उनका पुराना दोस्त मिल गया नौकरी के समय दोनों बहुत खास थे फिर रिटायर होने के बाद मिलना कम हो गया ।

दोनों बैठकर बात करने लगे पारस जी को तनाव मैं देख उसने वजह पूछी तो पारस जी बोले अब क्या बताऊं बहू के साथ बेटा भी पराया हो गया किसी को परवाह नहीं है उपर से ताने अलग सुनने को मिलते है और खाना भी ढंग से नसीब नही होता ।

दोस्त बोला तो तुम इतना सहन क्यों कर रहे हो तुम्हारी अच्छी खासी पेंशन है ,मकान भी तुम्हारे नाम है तो अपने लिए एक फूल टाइम मेड रख

ले जो तेरे सारे काम करेगी ।

पारस जी बोले लेकिन पेंशन के सारे पैसे तो बेटे को देने पड़ते है कुछ रुपए ही मेरे पास रहते है वो भी दवाई मैं चले जाते है।बेटा कहता है नही तो घर से निकाल देगा अब मैं इस उम्र मैं कहां जाऊंगा कैसे रहूंगा बेटे के बगैर।

दोस्त ने कहा इसी बात का फायदा बच्चे उठाते है तू कुछ दिन ये करके देख ।बेटे को एक रूपया मत देना और निकालने की बात करे तो कह देना घर तेरा है वो निकले ।

उसकी बात सुन पारस जी का तनाव थोड़ा कम हुआ पैसे लेकर घर आ गए ।

शाम को बेटा आया बोला लाओ पापा पैसे दे दो ।

पारस जी बोले अब मैं तुझे एक रूपया भी नही दूंगा अपनी जरूरत का सामान मैं खुद ले आऊंगा और मैं अपने लिए एक मेड भी रख लूंगा जो सारे काम कर देगी।फिर तुम लोगों को कोई परेशानी नही होगी ।

तभी रीना बोली इस घर मैं सिर्फ मेरी मर्जी चलेगी मेड को पैसे देंगे तो हमारा खर्चा कैसे चलेगा क्योंकि अंकित की तनख्वाह इतनी नहीं थी वो तो बाबूजी के पैसे पर ही पल रहा था इसी वजह से रीना भी साथ मैं रह रही थी ।सास ,ससुर भी मजबूरी मैं चुप थे की चलो बेटा ,बहु साथ है उनकी इसी मजबूरी का फायदा दोनों उठा रहे थे।

पारस जी बोले भूलो मत ये घर मेरी मेहनत की कमाई से बना है अगर तुम्हे दिक्कत है तो जा सकते हो छोड़कर ।मेरे जाने के बाद पेंशन तो बंद हो जाएगी ही मैं घर भी किसी को दान दे दूंगा।

पहली बार उनका ऐसा रूप देख दोनों को समझ आ गया की अब उनकी चालाकी नहीं चलेगी

दूसरे दिन से ही रीना ने सारे काम सम्हाल लिए और वाणी मैं भी मिठास आ गई।

पारस जी का तनाव दूर हो चुका था उन्हें अपनों से दूर भी नहीं जाना पड़ा था और इज्जत भी मिलने लगी थी ।

#तनाव

स्वरचित

अंजना ठाकुर

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