आज का सत्यवान – डॉ पारुल अग्रवाल 

डॉक्टर दिनेश चौहान अपनी पत्नी और 6 साल के बच्चे के साथ खुशी खुशी जीवन बिता रहे थे, सब अच्छा चल रहा था। पर कहते हैं ना की समय का चक्र कब घूम जाए पता नहीं चलता।किसको पता था कि कोरोना की दूसरी लहर इतनी भयावह होगी जो सुरसा के मुख की तरह अपने अंदर सब लील लेने को आतुर होगी। ऐसा ही कुछ डॉक्टर साहब के साथ भी हुआ। कोरोना से बचने के सारे उपाय किए जा रहे थे कि पता नहीं पत्नी अमृता कैसे इसके चपेट में आ गई।बहुत तेज़ बुखार आया। तीन चार बाद जब टेस्ट की रिर्पोट आई तो उसमें पुष्टि भी हो गई। घर पर ही पूरी तरह अलग करके उनका उपचार शुरू हुआ लेकिन सात दिन में ही हालत बहुत अधिक खराब हो गई। वहीं के हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया, घर पर छोटा बच्चा और खुद डॉक्टर साहब। दोनो तरफ से कर्तव्य से मजबूर, एक तरफ पत्नी की गिरती सेहत और दूसरी तरफ इस महामारी के समय मरीजों के प्रति अपने कर्तव्य। बच्चे को उसके दादा दादी के पास रखा, पत्नी के पास भी एक रिश्तेदार को रखा।

फिर जाकर अपनी कार्यसेवा ग्रहण की। पर पत्नी की हालत में कोई सुधार ना था। फेफड़े गिरते जा रहे थे, ऑक्सीजन लेवल लगातार नीचे जा रहा था। जिस हॉस्पिटल में पत्नी का इलाज़ चल रहा था उन्होंने एक तरह का जवाब दे दिया था। फेफड़े 95 प्रतिशत तक नष्ट हो गए थे। पर डॉक्टर साहब हिम्मत हारने को तैयार नहीं थे। पत्नी को लेकर अहमदाबाद के सबसे बड़े कोविड हॉस्पिटल चले गए। वहां भी उपचार करने वाले डॉक्टर ने कोई सकारात्मक जवाब नहीं दिया पर डॉक्टर साहब पत्नी को मौत के मुंह से वापिस लाना चाहते थे, उनका कहना था कि जब सात जन्मों का साथ देने का वादा है तो एक जन्म में कैसे छोड़ दूं। उनका ऐसा हौसला देख कई लोग साथ आ गए। पर परीक्षा अभी बाकी थी। असल में पत्नी को जिस मशीन पर रखा था, उसका एक दिन का खर्चा एक लाख से ऊपर का था। अब तक के इलाज़ में ही लाखों रुपया लग चुका था।


पर डॉक्टर साहब किसी भी तरह पत्नी की सांसों को पहले की तरह वापिस लाना चाहते थे। उपचार में करोड़ों का खर्च आने वाला था। उन्होंने सोचा फिर अपनी एमबीबीएस की डिग्री गिरवी रखी, जिस पर 70 लाख का लोन मिला, एक प्लॉट बेचा, कुछ मेडिकल समिति की तरफ से मदद मिली, इस तरह इलाज़ लायक पैसा आ गया। पत्नी के लिए उन्होंने अपनी एमबीबीएस की डिग्री जो उन्होंने अपने कठोर परिश्रम से पाई थी उसको भी गिरवी रखने में जरा नहीं सोचा उनका कहना था कि पत्नी बच गई तो सब दुबारा कमा लूंगा। खैर भगवान ने भी उनकी सुनी, पूरे 87 दिन बाद पत्नी मृत्यु पर विजय प्राप्त करके वापस आ गई। डॉक्टर साहब का संघर्ष रंग लाया। उन्हें पूरा विश्वास है कि थोड़े समय में वो अपना लोन भी चुका देंगे। 

मेरा दिल से नमन है डॉक्टर साहब को, जिन्होंने बैरी पिया का ऐसा भी चेहरा दुनिया के सामने रखा। हमने तो अब तक सावित्री के ही सत्यवान को यमराज के पास से वापस लाने के बात सुनी थी पर कलयुग में तो डॉक्टर साहब ने सत्यवान बनकर अपनी सावित्री को मौत के मुंह से वापिस ले लिया। बैरी पिया बड़ा रे बेदर्दी वाला कथन का भी साक्षात दूसरा पहलू उजागर कर दिया।।

ये कहानी सत्य घटना पर आधारित है पर पात्रों के नाम बदल दिए हैं।

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!