सेठ रोशनलाल शहर के बहुत बड़े आदमी थे,पृरे शहर में उनका मॉन सम्मान होता था,
बड़ा खानदान था सेठ जी भी पांच भाई थे,
सभी का विवाह हो चुका था ,
भरा पूरा घर चारो भाइयो की संतानें भी थी सबके एक एक पुत्री थी पर रोशनलाल के चार पुत्र थे,
उन्हें बहुत खुशी होती थी कि कोई पुत्री नही है किसी रिश्ते के लिये नाक नही रगड़नी पड़ेगी,
चारो भाइयो की बेटियों की शादी भी हो गई और वह ससुराल चली गई,
परिवार में चारो भाई बच्चो को सर्विस लगने के कारण दूर शहरों में रहने चले गये ,
और रोशनलाल के लड़कों की शादी होते ही वह अलग अलग रहने लगे,
दो लड़के विदेश चले गये उंन्होने वही विवाह कर लिया,
रोशनलाल और उनकी पत्नी अकेले रह गये,
सुवह खाना खाना और बैंक की जमा रकम के व्याज से ही गुजारा करना यह नियति बन गई,
क्योकि दोनो लड़के उन्हें खर्च नही देते थे,
और बहू भी आधुनिक थी तो उन्हें विल्कुल ख्याल नही रहता था इन बुजुर्गों का,
एक दिन रोशनलाल बीमार पड़ गये उनकी सेवा करते करते उनकी पत्नी भी बीमार हो गई ,
दो दिन से भोजन नही बना जो घर मे गुड़ आदि रख्खा था उसी से काम चलाया और बड़े लड़के के पास खबर भेजी की हम दोनों की तवियत ठीक नही है,
आकर देख लो कही इलाज करवा दो ,
बेटा और बहु आये तो पर इलाज के नाम पर बहाने बनाने लगे,
रोशनलाल समझ रहे थे कि लड़कों से उम्मीद करना बेकार है,
उंन्होने अपने एक मित्र की सहायता से गाड़ी मंगवाई और हस्स्पिटल में भर्ती हो गये,
हॉस्पिटल में उनकी तबियत बिगड़ती रही पर नर्स के रूप में रुपाली उनकी बड़ी सेवा करती थी,
रोशनलाल सोंचते की काश मेरी बेटी होती तो आज यह दिन न देखने पड़ते,
एक दिन उंन्होने रुपाली को पास बुलाया और परिवार के वारे में जानना चाहा तो रुपाली रोने लगी कहने लगी माता पिता और भाई कोई नही है इस दुनिया मे उसका बस जो भी है वह अस्पताल में आये मरीज ,
और जब देखा आपको देखने कोई नही आता तो अपना माता पिता समझकर सेवा करने लगी,
रोशनलाल और उनकी पत्नी के आंसू निकल पड़े,
एक दिन रोशनलाल और उनकी पत्नी चल बसी ,
बेड पर एक लिफाफा पड़ा था,
जिस पर दीपाली लिखा था,
पूरे हॉस्पिटल स्टाफ के सामने जब वह खोला गया तो उसमें लिखा था,
हमारे चार पुत्र है पर किसी को मत बुलाना मेरी पुत्री दीपाली है,
सम्पूर्ण जायजाद की मालकिन अब वही होगी,
दीपाली रोने लगी और रोशनलाल की बेटी की भांति संकल्प लिया कि वह ही अंतिम संस्कार करेगी,
मुक्ति धाम पर आज दीपाली दोनो चिताओं को अग्नि देते हुये गर्व महसूस कर रही थी कि आज बेटे का फर्ज वह अदा कर रही थी,,
यह कहानी सिर्फ कहानी है यह बेटों के खिलाफ नही है क्योकि करोड़ो परिवारों में कोई एक घटना घटती है जैसी,।।
अनजाने में अनेकों,
सबक,माता पिता का सम्मान करो ,सेवा करो,समाज से डरो,
लेखक गोविन्द