ये हमारी भाग्यविधाता हैं: Moral stories in hindi

 “छि, छि, छि, कौन है ये बुढिया  ? इसने तो सारा फर्श गंदा कर दिया |”  निभा जोर से बोली और सोफे से उठकर  खडी हो गई |                                                    उसके बोलने से सबका ध्यान सामने की ओर गया | एक वृद्घ महिला हडबडाई, सकुचाई, लज्जित सामने खडी थी | वह शायद बाथरूम जा रही थी, पर बीच में ही पेशाब  हो गया और फर्श पर बहने लगा |  साधना के घर आज उसके दोस्तों की पार्टी थी | घर में थोड़ा चहलपहल था | पति आफिस गये थे और बच्चे स्कूल | साधना के दो बेटे थे, बड़ा शौर्य और छोटा शुभ |

बड़ा बेटा सोलह वर्ष का था और छोटा तेरह वर्ष का | उसके पति एक बड़ी कंपनी में मैनेजर थे | वेतन भी अच्छा था | घर में सुख सुविधा के सारे साधन मौजूद थे |किसी चीज की कमी न थी| अच्छी  सुख सुविधा के साथ घर में अच्छे संस्कार और व्यवहार भी थे | उसकी सहेलियों, महिलाओं का एक ग्रुप था जो आपस में मिलती रहती थी और दुपहर के खाली समय में बारी- बारी से अपने घर में पार्टी किया करती थी |

उस समय  सबके पति अपने- अपने काम पर गये होते और बच्चे अपने स्कूल, कालेज | अगर बच्चे स्कूल, कालेज से आ भी जाते तो खाना खाकर अपने-अपने कमरे में चले जाते | आज साधना के घर सब आई थी | साधना की पार्टी का सबको इंतजार रहता, क्योंकि वह खाने-पीने का बहुत अच्छा प्रबंध करती थी |

आज भी सब गप्पे हांक रही थी | खाना बन रहा था और खुशबू फैल रही थी |  साधना  बीच – बीच में रसोई में खाने की तैयारी देख रही थी और अपने  खाना बनाने वाली को हिदायत भी देती जा रही थी | सब खूब मजे कर रही थी, तभी निभा की आवाज से सबका ध्यान भंग हुआ और सबकी नजर उस वृद्घ महिला पर चली गई ,जो हाॅल के दरवाजे के बाहर सकुचाई खडी थी | आवाज सुनकर साधना रसोई से बाहर आई |

     “माला, तुरंत आओ | चादर बदलो, फर्श साफ करो |” वह जोर से बोली और उनका हाथ पकड कर बाथरूम में ले गई | थोड़ी देर बाद वह उनके कपड़े बदलकर उन्हें उनके कमरे में छोडी और अपने कपड़े बदलकर आ गई |उन्हें चाय भी दे दिया |तबतक माला ने सफाई भी कर दी|

      “साधना, कौन है यह बुढिया? ” राखी ने आश्चर्य भरी नजरों से उसकी ओर देखते हुए कहा | 

        ” यह कोई बुढिया नहीं, हमारी मां है |” साधना तुरंत बोली | 

         ” तुम्हारी माँ, पर तुम तो बोलती हो कि तुम्हारी माँ तो तुम्हारे बचपन में ही चल बसी थी |” नैना ने कहा | 

         ” ये मेरे पति दीपक की माँ है ं |” साधना सोफे पर बैठते हुए बोली |

          ” पर  पहले तो ये यहाँ नहीं रहती थी?  निभा ने कहा | 

          “हाँ, पहले पापा जिवीत थे तो दोनों गाँव में ही रहना पसंद करते थे | वहाँ उनका मन भी लगता था और खेतीवारी की देखभाल भी हो जाती थी |अब पिछले साल पापा चल बसे और इनकी तबियत ठीक नहीं रहने लगी, तो हम जबरदस्ती इन्हें एक माह पहले यहाँ ले आये |डाक्टर से दिखाया है और इलाज चल रहा है |कोई गंभीर बीमारी नहीं है |” साधना ने समझाते हुए कहा | 

       ” अरे तो इन्हें किसी हास्पिटल में भरती करवा देती या वृद्धाश्रम में छोड देती | क्यों अपने सिर परेशानी मोल ली और घर की शोभा भी बिगाड़ रही हो |” नैना झट से बोली  | 

         ” ऐसा मत बोलो | ये हमारी भाग्यविधाता  हैं |  हमारी माता है |  दीपक के पिता किसान थे , नौकरी नहीं करते थे | अगर इनका सहयोग और समझदारी न होती तो पिताजी अपने माता-पिता, बहन की जिम्मेवारियों में ही उलझे रहते और कभी दीपक का इतनी अच्छी तरह लालन- पालन, पढाई- लिखाई न करवा पाते | दीपक हमेशा कहते हैं कि उनकी इतनी अच्छी पढाई, नौकरी और सारी सुख सुविधाएं पिताजी की समझदारी और माँ के सहयोग की बदौलत हीं हमें मिला है | मैं अपने जीवन में अपने माता-पिता के कारण ही इतना कामयाब हो पाया हूँ | हम बहुत चाहते थे कि दीपक के माता-पिता हमारे पास हीं रहें, पर इनका मन हीं नहीं लगता था |गाँव में खेती की देखभाल करने, सभी लोगों से मिलने – जुलने और जरूरतमंद लोगों की मदद करने में इन्हें खूब मन लगता था | कहते थे कि पहले तो चाहकर भी कभी – कभी दूसरों की मदद नहीं कर पाता था, अब तो जितने पैसे बोलता हूँ, बेटा भेज देता है, तो खुशी से मदद कर देता हूँ | ये भी कभी मना नहीं करते थे | गाँव के लोग भी उन्हें बहुत सम्मान देते थे और हमारी कमी कभी महसूस नहीं होने देते थे |  हम जब मौका मिलता, जाकर मिल आते थे | यही कारण है कि पापा के जाने के बाद माँ भी वही ं रहना चाहती थी और एकसाल रही भी, पर जब उनकी तबियत खराब रहने लगी तो हम समझा बुझाकर इन्हें यहाँ ले आये |” साधना बोली | 

         “पर तुम्हें घिन नहीं लगती , मुझे तो उल्टी आने लगी |” राखी ने कहा | 

           “क्यों, जब हमने जन्म लिया था और छोटे थे, तो क्या हम ऐसा नहीं करते थे? तब क्या हमारे माता-पिता को घिन आती थी, उल्टी होती थी |” साधना ने पूछा |

        “पर इस तरह तो तुम्हारा घर से निकलना मुश्किल हो जायेगा | जब तुम घर में नहीं रहोगी तो फिर कौन इन्हें देखेगा? ” नैना ने कहा | 

          ” हम पूरे समय इनकी देखभाल के लिए किसी को रखना चाहते हैं | अभी तो माला को रखा है, पर यह पूरा समय नहीं दे पाती है, क्योंकि इसके भी दो बच्चे हैं | अगर आपलोगो ं की नजर में भी कोई हो, जो पूरे समय रात-दिन, या सिर्फ सुबह से रात होने तक भी इनकी देखभाल कर सके, तो जरूर बताइयेगा |” साधना ने सभी से कहा | 

          “मान गये साधना तुम्हें | भला आज के जमाने में कौन अपनी सास के लिए इतना  सोचता है,करता है? तुम्हारा दिल बहुत बड़ा है |” राखी बोली | 

         “इसमें महानता या बडप्पन वाली कोई बात नहीं है  |मैं जबसे शादी होकर आई, इन्होंने मुझे अपनी बेटी जैसा प्यार दिया और मैने भी इन्हें अपनी माँ ही समझा | सभी माता-पिता अपने बच्चों के भाग्यविधाता होते हैं |घरती पर ईश्वर का साक्षात रूप होते हैं , उनके लिए सब कुछ करते हैं, तो फिर बच्चों का भी तो कर्तव्य है कि  बुढापे में उनकी देखभाल करें |  बुढापा तो सबको आना हीं है | हम जो करेंगे, हमारे बच्चे भी वही तो सिखेंगे |हम भी तो माँ है ं, क्या हम नहीं चाहेंगे कि हमारे बच्चे भी बुढापे में हमारी देखभाल करें? ” इतना कहकर साधना चुप हो गईं | थोड़ी देर के लिए सभी चुप रहे |

      ” तुमने बहुत अच्छी बात कही | अब मैं भी अपने सास-ससुर से अलग रहने की जिद नहीं करूंगी |” राखी ने कहा |                       “साधना, सचमुच तुम बहुत अच्छी हो|तुमने आज हमारी आंखें खोल दी |मैं तो अपने सास- ससुर को बोझ समझती  थी उनसे हमेशा चिढी रहती थी, उन्हें वृद्धाश्रम भेजने के फेर में लगी थी | अब मैं भी उन्हें अपने साथ ही रखूंगी और देखभाल करूँगी | मैं तुम्हारे विचार की प्रशंसा करती हूँ |” कहते हुए नैना ताली बजाने लगी | सभी महिलाओं ने उसका साथ दिया | कुछ समय पूर्व का बोझिल  वातावरण एकदम आनंदमय हो गया | सभी पार्टी का आनंद लेने लगे |

# भाग्यविधाता

स्वलिखित और अप्रकाशित

सुभद्रा प्रसाद

पलामू, झारखंड |

8 thoughts on “ये हमारी भाग्यविधाता हैं: Moral stories in hindi”

  1. अति सुन्दर
    आज भौतिक सुख सुविधाओं में लोग अपने माँ बाप से दूरी बनाए हुए हैं इस प्रकार की रोचक और ज्ञानवर्धक कहानियों से जीवन को सार्थक किया जा सकता है

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  2. सकारात्मक सोच के साथ एक बहुत अच्छा संदेश है आज हमारे समाज को इसी तरह के मार्गदर्शन की जरूरत है। धन्यवाद

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  3. ऐसा ही हर घर होना चाहिए प्रत्येक बच्चों को अपने माता-पिता की ऐसी देखभाल करनी चाहिए जिस प्रकार माता पिता ने बचपन में उनकी की थी बहुत सुंदर संदेश

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  4. सकारात्मक सोच और ज्ञानवर्धक मार्ग दर्शन करतें और करवाते रहना चाहिए।माॅ बाप अपने हों, चाहे पति के, जानने वालों के, या फिर बेगानो के, उनका आदर सत्कार और सेवा करने से आशीर्वाद मिलता है। मनुष्य के धर्म और संस्कृति के अनुसार हमारे जीवन में आशीर्वाद का महत्व एक अभिन्न अंग है ।अति सुन्दर और ज्ञानवर्धक जानकारी के लिए धन्यवाद 🌹🙏🏼🌹

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