ये घर तुम्हारा भी है – के कामेश्वरी : Moral stories in hindi

शिवानी बिना किसी नागा के हर रोज वाकिंग के लिए आती थी । सुबह छह बजे उन्हें देखते ही लोग अपनी घड़ी को चेक कर लेते थे । पार्क में कई लोगों को मालूम था कि शिवानी वकील है ।

शिवानी के ससुर शहर के जाने माने वकील थे । उनके पति विराट ने भी अपने पिता के नक़्शे कदमों पर चलकर उनका साथ दिया है और नाम कमाया । शिवानी ने भी वकालत की परीक्षा पास की और विराट से उसकी शादी हो गई थी । अब उनके घर में तीनों ही वकालत करने लगे थे ।

शिवानी के ससुर धनपत हमेशा कहते थे कि बेटा पैसे कितने भी कमा लो पर हमें इंनसानित को कभी नहीं भूलना चाहिए वही हमारे लिए सबसे बड़ा धन है ।

वह हमेशा से ससुर के केसों पर ध्यान देती थी कि जो पैसे वाले हैं उनसे पैसे जमकर लेते थे पर जो नहीं दे सकते थे उनके लिए कोशिश करते थे कि बात कोरट तक ना जाकर सुलझ जाए या मिनिमम फीस लेते थे । विराट ने कभी भी इस बात पर गौर नहीं किया था ।

शिवानी और विराट के तीन बेटे थे वे सब पढ़ लिखकर अमेरिका में बस गए थे । ससुर की मृत्यु के बाद विराट की मृत्यु भी कार एक्सिडेट में हो गई थी ।

बहुत बड़ा बँगला गाड़ी नौकर चाकर और प्रॉकिटस । शिवानी ने पति की मृत्यु के बाद कोरट जाना बंद कर दिया था । बहुत ही ज़्यादा प्रेशर आता था तो एकाध केस ले लेती थी।  

पहले तो वह अपने आसपास नज़र नहीं डालती थी वाकिंग करना उसके बाद एक बेंच पर बैठकर सुकून से प्रकृति का मजा लेना फिर उठकर चले जाना यही उसकी दिनचर्या थी ।

उसने कुछ दिनों से नोटिस किया था कि वह जिस बेंच पर बैठती है वहाँ उसके आने के पहले ही एक अधेड़ उम्र की महिला बैठी रहती थी । आज जब उसे कहीं भी बैठने के लिए जगह नहीं मिली तो वह उसी बेंच के दूसरे किनारे पर बैठ गई ।

शिवानी ने तिरछी नज़र करके उसे देखना चाहा कि वे क्या कर रही हैं । उनके बाल काले सफ़ेद थे उन्होंने बुचडा बनाया था । सूती साड़ी पहनी थी जिसका रंग फीका पड़ गया था। उनके चेहरे पर चमक दिखाई दे रही थी जैसे वे बहुत पढ़ी लिखी हो । आँखें बंद थी पर कोने में आकर आँसू रुक गए थे।

शिवानी ने देखा उसने अपनी गोद में रखे हुए एक पैकेट को खोला जिसमें दो पूरी थे जिन्हें खाकर उसने कागज को डस्ट बीन में फेंक दिया और आकर अपने साथ लाई हुई प्लास्टिक के बोतल से पानी पीकर इधर-उधर देखने लगी ।

जब शिवानी से उसकी नज़रें मिली तो शिवानी ने ही पहल की और कहा कि कहाँ रहती हैं आप ? बहू के घर में तपाक से उनके मुँह से निकला ।

शिवानी ने कहा क्या?

उन्होंने फिर कहा मेरा नाम सुलभा है ।  मैं बहू के घर में रहती हूँ । उसका पति अच्छा है परंतु पत्नी के सामने उसकी  ज़ुबान नहीं खुलती है इसलिए मेरे सामने से सर झुकाए चला जाता है ।

मुझे अपनी तरफ़ देखते हुए उन्होंने कहा कि पति की मृत्यु के बाद मैंने वालेंटरी रिटायर मेंट ले लिया था और घर ख़रीदने की अपनी ख्वाहिश पूरी की थी ।

जब बेटे की शादी हुई तो उसकी पत्नी वसंता से बड़े ही प्यार से मैंने कहा था कि बेटा यह घर तुम्हारा भी है इसे अपना ही समझो ।

 उसने इस बात को इतनी दिल से ले लिया था कि सचमुच ही वह इस घर की मालकिन बन गई और मुझे घर से बाहर कर दिया है।

उनकी बातों को सुनकर शिवानी ने कहा कि अगर आप चाहें तो मैं आपको न्याय दिलवाऊँगी आपका केस मैं लड़ूँगी ।

सुलभा ने बताया था कि मैं आपको फीस क्या टाइपिंग के पैसे भी नहीं दे सकती हूँ । मेरे पास सिर्फ़ सोने की दो चूड़ियाँ और एक चैन है जब कभी इन्हें बेचूँगी तब आपका पैसा दे दूँगी ।

शिवानी ने कहा कि मैं आपसे पैसे नहीं लूँगी वैसे भी उसके बारे में हम बाद में बात करेंगे ।

आप अभी कहाँ ठहरी हुई हैं । सुलभा ने बताया था कि मेरा बेटा टूर पर गया था मैं कुछ काम से बाहर आई तो बहू ने घर पर ताला लगाया और बच्चों को लेकर कहीं चली गई है ।जब मैं घर पहुँची तो घर पर ताला लगा हुआ देख यहाँ बैठी हुई हूँ ।

शिवानी ने कहा कि आपको नहीं मालूम है कि बहू कहाँ गई है । सुलभा ने बताया था कि कल रात मुझे सुनाई ऐसा ज़ोर से मेरे बेटे को बता रही थी कि मैं अपने मायके जा रही हूँ । घर पर ताला लगा कर जाऊँगी । बेटे ने कहा कि मेरी माँ कहाँ जाएगी तो उसने कहा कि तुम्हारी माँ जहाँ भी जाए मुझे उनसे कोई मतलब नहीं है । तुमने मुझे रोकने की कोशिश की तो मैं अपने बच्चों के साथ आत्महत्या कर लूँगी । मुझे शक है कि वह मायके चली गई होगी ।

शिवानी ने कहा कि मेरे घर चलिए हम वहीं बैठकर बातें करेंगे ।सुलभा शिवानी के साथ उनके घर गई । उनके घर पर कोई नहीं है वह अकेली ही रहती थी ।

शिवानी ने चाय के लिए कह दिया और सुलभा को बिठाकर पूछताछ करने लगी सुलभा पुरानी बातों को याद करते हुए अपने दिल को टटोलने लगी उसने बताया था कि…..

मेरा जन्म बहुत ही साधारण परिवार में हुआ था । माता-पिता ने डिग्री तक मेरी पढ़ाई कराई और मेरी शादी एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी करने वाले सुरेश से करा दी थी । शादी के बाद सुरेश ने कहा कि पढ़ी लिखी है नौकरी कर लेगी तो आराम की ज़िंदगी जी सकेंगे ।

 

मैंने उनकी बात मान नौकरी ढूँढ ली और स्टेट गवर्नमेंट में क्लर्क की नौकरी करने लगी ।

हम दोनों में कभी भी तूतू मैं मैं नहीं होती थी । हम दोनों की शादी के तीन साल बाद नरेंद्र पैदा हुआ । सुरेश ने कहा कि हमारे लिए यह एक बच्चा ही बस है । उसे ही अच्छे से पढ़ा लिखा लेंगे तो बस है ।

मैंने यह बात मान ली और हमारा प्यार नरेंद्र पर ही लुटाने लगे थे ।

जब नरेंद्र बारहवीं कक्षा में था तब सुरेश को केंसर जैसी जानलेवा बीमारी ने जकड़ लिया था । उसका इलाज और मेरे अकेले की नौकरी के कारण हमें तकलीफ़ सहनी पड़ी  हम सुरेश को बचा तो नहीं पाए पर बहुत सारे कर्ज में डूब गए थे । उस क़र्ज़ से उभरने के लिए मुझे बहुत मेहनत करनी पड़ी इसी बीच नरेंद्र ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करके एक अच्छी सी कंपनी में नौकरी पा ली ।

 मैंने सोचा कि मैं भी वालेंटरी रिटायर मेंट ले लेती हूँ और जो भी पैसा आएगा उनसे उधार चुकता करने के बाद एक छोटा सा घर खरीद लेती हूँ । इसलिए रिटायरमेंट पर आए पैसों से एक दो बेडरूम का फ़्लैट ले लिया था ।

एक गलती मुझसे यह हो गई थी कि बिना जाने नरेंद्र की शादी बहुत जल्दबाज़ी में कर दी थी । उसे सेटल होने के लिए थोड़ा समय देना था । वसंता के आते ही बेटे ने चुप्पी साध ली उसकी ही बातें सुनने लगा ।

 वसंता बहुत ही चालाक थी कुछ दिनों बाद उसने अपने माता-पिता को यहाँ बुला लिया और मुझे मेरे कमरे से निकाल कर बाहर हॉल में शिफ़्ट कर दिया है । मुझे तो खाने के लिए तरसना पड़ता है ।

तुम्हें मालूम है मैं अपने छोटेमोटे गहने बेचकर खाना खाती हूँ । मेरा पेंशन भी वे लोग ले लेते हैं क्या करूँ बताओ ।

शिवानी ने कहा कि आप तैयार हैं तो मैं आपको आपका हक दिलवा दूँगी ।

देखो शिवानी जब उन्होंने मुझे घर से बेघर कर दिया है तो मैं उनके बारे में क्यों सोचूँ आप जो भी कहेंगी मैं आपका साथ दूँगी ।

इधर

नरेंद्र जब घर पहुँचा तो घर पर ताला दिखाई दिया ।  उसे डर लगा था कि कहीं वसंता ने माँ को घर से भगा तो नहीं दिया है ना । उसने वसंता को फ़ोन किया कहाँ है उसने बताया मायके आई हूँ । नरेंद्र ने पूछा कि मेरी माँ कहाँ है तो उसके जवाब को सुन नरेंद्र का माथा ठनका जो उसने सोचा वही हुआ ।

 माँ के बाहर जाते ही उसने ताला लगा दिया ताकि वह अंदर ना आ सके ।

उसी समय डाकिया ने उसके हाथ में एक कोरियर थमाया और चला गया । उसे खोलकर देखा तो वकील की नोटिस थी शिवानी नामक वकील ने भेजी है । नरेंद्र नामक व्यक्ति अपनी पत्नी के साथ मिलकर मेरी क्लाइंट सुलभा को सता रहे हैं । उन्हें घर से बाहर निकाल दिया है ।  उनके पेंशन के काग़ज़ पास बुक और घर के काग़ज़ात अपने पास ही रख लिया है । अब वे उनके साथ रहना नहीं चाहती हैं इसलिए वे सब कुछ उन्हें देकर घर से बाहर निकल जाएँ तो अच्छा होगा ।

यह नोटिस पढ़ते ही नरेंद्र को वसंता पर ग़ुस्सा आया । उसने कितनी बार उसे समझाया था कि मैं माँ का अकेला बेटा हूँ मैं उन्हें छोड़ नहीं सकता हूँ पर उसकी कान पर जूं तक नहीं रेंगती थी ।

माँ को ढूँढते हुए वह वकील के घर पहुँचा वहाँ माँ को देख कर उनसे माफी माँगने लगा ।

शिवानी भी वहाँ पहुँची तो सुलभा ने बेटे से उसका परिचय कराया । नरेंद्र ने बताया था कि मेरी पत्नी मुझे ब्लैक मेल करती है कि मैं बच्चों के साथ आत्महत्या कर लेगी । मैं डर जाता था और माँ की हालत जानते हुए भी कुछ नहीं कर सका कहते हुए रोने लगा ।

सुलभा को अपने बेटे पर दया नहीं आई । शिवानी ने कहा कि नरेंद्र मुझे आपकी बातों को नहीं सुनना है आप घर जाइए और नोटिस में जिन काग़ज़ के बारे में पूछा गया है वे सब लाकर दीजिए ।

 नरेंद्र ने कभी नहीं सोचा था कि एक माँ ऐसे कर सकती है । माँ को तो त्याग की मूर्ति बच्चों के लिए जान तक देने वाली बताते हैं परंतु मेरी माँ तो अलग दिख रही है । उसके घर पहुँचने के पहले ही वसंता पहुँच गई थी जब उसने नोटिस के बारे में बताया तो वह माँ को गालियाँ देने लगी ।

नरेंद्र सारे कागज लेकर वसंता के साथ शिवानी के घर पहुँचा । शिवानी ने पूछा सारे काग़ज़ लाए हो कि नहीं ।

उसने जब काग़ज़ शिवानी को दिया तब माँ से वसंता कहने लगी कि आप कैसी माँ हैं कल को मर गई तो यह सब लेकर चली जाएगी क्या?

सोचा नहीं कि हम आपके पोता पोती के साथ कहाँ रहेंगे ?

सुलभा ने हँसते हुए कहा कि वही तो बहू जब तुम्हें मालूम है कि मैं यह सब अपने साथ नहीं लेकर जाऊँगी ,  मेरे बाद तुम लोगों को ही मिलेगा फिर भी मुझे घर से बाहर निकाल दिया तब नहीं सोचा था कि यह बूढ़ी औरत कहाँ जाएगी ।

बेटा हमेशा इस हाथ से लेना उस हाथ से देना होता है । मैं ही तुम लोगों के बारे में क्यों सोचूँ ? तुमने मेरे बारे में कभी सोचा है तुम मुझे खाना नहीं दोगी और नरेंद्र के सामने नौटंकी करोगी ।  अगर मैं अपने छोटे मोटे गहने बेचकर खाना खाऊँ तब भी तुम्हें रास नहीं आया कहने लगी कि लोगों के बीच तुम्हारी इज़्ज़त ख़राब कर रही हूँ । इन सबके बीच तुम यह भूल गई थी कि घर मेरा है मैंने तो तुम्हें अपना मानकर कहा कि यह घर तुम्हारा भी है और तुमने तो मुझे ही भगा दिया । मेरी पेंशन भी तुम लोग ही ले लेते हो फिर भी मैं चुप थी क्यों

? क्योंकि नरेंद्र मेरा इकलौता बेटा है । उसे मैं छोड़कर जाना नहीं चाहती थी परंतु तुमने तो मेरा लिहाज़ नहीं किया है ।

अब बहुत हो गया है वसंता मैं तुम लोगों के साथ नहीं रहूँगी । तुम्हारा पति कमाता है घर किराए पर लो और आराम से अपनी ज़िंदगी जियो । जाओ मेरे सामने रोना धोना नहीं करो ।

नरेंद्र और वसंता अपने बच्चों को लेकर वहाँ से निकल गए । शिवानी ने कहा कि आपने बहुत साथ दिया वरना लोग बच्चों के रोने धोने से पिघल जाते हैं ।

शिवानी क़ानूनन हमें कितने भी अधिकार दें पर आप जैसे लोगों का साथ भी ज़रूरी है । अपने ही लोग हमें इज़्ज़त ना दें तो उनका सामना करना ही पड़ता है और मुझे अभी जीना है मैं दुखी होकर मरना नहीं चाहती हूँ।

मैं ईश्वर की शुक्र गुजार हूँ कि मुझे आपका साथ मिला आपने मेरा हौसला बढ़ाया मुझ जैसे लोगों को तिनके का सहारा मिल गया तो बस है हम अपनी ज़िंदगी बिना किसी के सहारे के जी सकते हैं।

के कामेश्वरी

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