बारिश का इश्क (भाग – 5) – आरती झा आद्या: Moral stories in hindi

“कार्यक्रम में इतना उत्साह आ गया था कि जिन्होंने कभी दो पंक्ति भी नहीं लिखी थी, वो भी दो क्या छः पंक्ति की कविता फटाफट रच कर बोल रहे थे। क्या दिन थे वो भी!” वर्तिका की आवाज़ में वह उत्साह था जो उन दिनों के कार्यक्रम में छाया हुआ रहा होगा। सभी ने अपनी-अपनी शैली में अपनी कविताएं सुनाई और सबको यह मौका मिला कि वे अपनी कला को सभी के सामने प्रस्तुत करें।

इस अनूठे क्षण में नए-नए कलाकार उभर रहे थे, वहाँ का उत्साह न सिर्फ उनकी क्षमता में वृद्धि कर रहा था बल्कि उन्हें नए और सही मार्ग पर अग्रसर होने का आत्मविश्वास भी मिल रहा था। वर्तिका के उकेरे गए शब्दों से साफ हो रहा था कि उसने उस समय के रंग-बिरंगे पलों को हृदय की सुंदर सी पिटारी में उसने संग्रहित किया हुआ है और वह उन लम्हों को दिल से याद करती है, महसूस करती है। 

“मम्मा आप फिर वही मत चले जाना।” सौम्या की ठुनकती आवाज से वर्तिका की मुस्कान कुछ और बढ़ती है। सौम्या के उस स्वर में एक छोटा सा शरारती रंग भरा हुआ था, जो सभी के चेहरे पर हॅंसी ले आया था। 

वर्तिका हॅंसती हुई कहती है, “यही हूँ मेरी बिटिया रानी। शब्दांत अक्षरी खत्म होने का नाम नहीं ले रहा था। छः बज गए थे और प्रोग्राम छः बजे तक खत्म हो जाना था। 

सभी के अंदर इस समय भावनाओं के समंदर का घुला मिला अहसास इस तरह लिपटा हुआ था कि वक्त ने भी उन्हें अपने जादू में ले लिया था। समय का होश किसी के पास नहीं था और ऐसा लग रहा था मानो प्रोग्राम के समाप्त होने का ख्याल भी छोड़ दिया गया हो। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी कल्पना को जीवंत करने का मौका प्राप्त हो रहा था और कोई भी इसमें पीछे रहना नहीं चाहता था।

अंततोगत्वा प्रिन्सिपल सर मंच पर आते हैं और समय पूरा होने पर सभी को समाप्ति के लिए सूचित करते हैं। वह शब्दांत अक्षरी के खेल के सफल समापन की घोषणा करते हैं। कार्यक्रम पर विराम लगते ही सभी समूहों के सदस्यों के बीच एक प्रशंसात्मक सत्र शुरू हो गया, जिसमें विभिन्न समूहों के लोग एक दूसरे की रचनाओं की सराहना कर रहे थे। इस रूप में शब्दांत अक्षरी के द्वारा एक यादगार, सफल और उत्साहजनक समारोह का समापन हुआ था।

प्रिन्सिपल सर हम सभी को संबोधित करते हुए कह रहे थे, “बच्चों और कोई औपचारिकता रह गई हो तो उसका संचालन कर प्रोग्राम समाप्त किया जाए।” कहकर वो मंच से नीचे आकर अपनी जगह पर बैठ गए।

“सबसे पहले मैं वर्तिका दीदी को मेरे सारे बैचमेट्स की तरफ से शब्दांत अक्षरी जैसे शब्द खेल से रूबरू कराने के लिए धन्यवाद देता हूॅं। इस तरह के रचनात्मक शब्द खेल के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आपका वर्तिका दीदी।” उद्घोषक एक बार फिर से माइक संभालता हुआ कहता है।

“इस शिष्टाचार के द्वारा वर्तिका की मेहनत और योगदान की सराहना की गई, जिसने सभी को एक साथ आने और शब्दांत अक्षरी का मजा लेने का अवसर प्रदान किया। इस शब्दांत अक्षरी में हमने सिर्फ शब्दों को ही मिलाना नहीं सिखा, बल्कि एक दूसरे के साथ बंधन बनाए रखने को भी सीखा।

वर्तिका दीदी ने इस सांस्कृतिक अनुष्ठान में शब्दों की आहुति देकर इस कार्यक्रम से हम सभी को अपनी कला, साहित्यिक दृष्टिकोण और टीम वर्क में का अद्भुत अनुभव कराया।” “उद्घोषक अपने शब्दों में मुझे धन्यवाद देता हुआ कहता है”, वर्तिका सौम्या की ओर देखकर कहती है। उस समय की याद में वर्तिका की ऑंखें भींग गई थी और आवाज थरथरा उठे थे।

“मम्मी,” वर्तिका की भींगी ऑंखें देखकर, सौम्या उसके पास आकर सिमट गई। उसके चेहरे पर सहानुभूति और प्यार भरी मुस्कान थी। सौम्या ने वर्तिका की पीठ पर हल्के से सहलाते हुए कहा, “आप बहुत शानदार हैं, मम्मी।” और इस दृष्टि में माँ-बेटी की ऑंखों में आनंद का अनमोल पल समाया हुआ था।

वर्तिका ने सौम्य को अपने अंक में समा लिया, उसकी  आँखों में अपनी बेटी के प्रति प्यार और ममत्व छलक आया था और सौम्या को देखती हुई वर्तिका आगे कहना आरंभ करती है।

***

“अब हम अंत के लिए तैयार किए गए दो कार्यक्रम के बाद विराम देंगे। दोनों ही कार्यक्रम सरप्राइज़  के तौर पर तैयार किए गए हैं। पहला कार्यक्रम नाटक है… जिसका शीर्षक है “विद्यालय के दिन”तो मंच पर आ रहे हैं नाटक के मंचन के लिए अभिनेता और अभिनेत्री। सबका परिचय देकर सूत्रधार मंच से नीचे उतर गया।

विद्यालय के दिन” नामक नाटक रंगीन महौल में रूपित किया गया था। विद्यालय के सारे तथ्य और दिलचस्प किस्से नाटक के माध्यम से सामने आ रहे थे।इस नाटक ने विद्यालय के सारे रंग-बिरंगे पलों को एक साथ जोड़कर एक रंगीन चित्र को उत्कृष्टता के साथ प्रस्तुत किया। उसमें छात्र-छात्राओं की हरकतों, सभी प्रकार की गतिविधियों और उनके द्वारा महसूस की जाने वाली भावनाओं को जीवंतता के साथ दिखाने का प्रयास था।

नाटक के माध्यम से विद्यालय के दिनों का एक सुंदर चित्रण किया गया और सभी को यादगार क्षणों का अनुभव कराया गया। दर्शकों को नाटक के माध्यम से विद्यालय के सारे अनुभवों का संवेदनशीलता से अनुभव हुआ और नाटक की रूपरेखा ने सभी को एक साथ जोड़कर उस दिवस को ही यादगार बना दिया।

 नाटक प्रारंभ हो चुका था। विद्यालय के दिन अमूमन सबके एक से ही होते हैं.. मस्ती भरे…. उन दिनों की गतिविधियों को मोतियों की माला की तरह पिरो कर बारी बारी से दिखाया जा रहा था। कभी तो हँसी की फूलझड़ी छूटने लग रहे थे। कभी पूरा हॉल संजीदा हो जा रहा था। इसी हँसी खुशी के बीच यह नाटक समाप्त हुआ। हम सभी अभी उस नाटक की दुनिया में ही विचरण कर रहे थे कि…

“दोस्तों अब हमारे बीच आ रहे हैं…हमारे स्कूल के बेस्ट सिंगर और “उसका” नाम लेकर भैया बोलते हुए मंच पर आमंत्रित किया।” उद्घोषक की आवाज से हम सभी सचेत हुए।

“वो” मंच पर आया.. माइक उसके हाथ में देकर उद्घोषक नीचे आ गया। “उसने” सबको संबोधित किया और गाना शुरू किया… 

रिमझिम गिरे सावन

सुलग सुलग जाए मन

भीगे आज इस मौसम में 

लगी कैसी ये अगन 

क्या आवाज थी.. क्या लय ताल था.. तभी आगे की तरफ बैठी हुई जूनियर्स में फुसफुसाहट शुरू हो गई। पर भैया ने तो उड़े जब जब जुल्फें मेरी गाने वाले थे.. अचानक ये.. 

“क्या फर्क़ पड़ता है, बाहर के मौसम के अनुसार बिल्कुल सही गाना गा रहे हैं भैया।” दूसरी धीरे से बोली।

“और अंदर के मौसम के अनुसार भी सही गाना चुना है… तुम्हारे “उसने”।” संगीता मुझे चिढ़ाती हुई मेरे कान में फुसफुसाई।

मैं तो कुछ कहने की स्थिति में ही नहीं थी। उस दिन से मुझे इस गाने से इश्क हो गया। वह पल ऐसा था जब गाने ने मेरे दिल को छू लिया। उस गाने ने मेरे अंतर में एक नया भावनात्मक संबंध बना दिया। उसकी सुरीली आवाज़ मेरी भावनाओं को छूने का एक कारगर तंतु बना गया और उस दिन के बाद मैंने उस गाने को अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मान लिया। उस दिन से मैंने उस गाने के साथ अपने जीवन को एक नए अर्थ में जीना शुरू किया। उस पल ने मेरी ज़िंदगी में एक नया सौंदर्य और भावनात्मकता का दरवाजा खोला, जिसे मापा नहीं सकता था।

गाना समाप्त कर सभी को धन्यवाद कर “वो” नीचे आ गया था। लेकिन उस पल में उसकी नजरें मुझ पर टिकी हुई थी और मेरी चोर नजर उसे देख रही थी।

गाने के समाप्त होने पर, सभी को धन्यवाद करते हुए “वह” मंच पर से नीचे आ गया। लेकिन उस पल में उसकी नजरें मुझ पर टिकी हुई थीं और मेरी चोर नजरें उसे देख रही थीं। यह दृश्य मेरे लिए एक अजीब सा अनुभव था, जैसे कि हमारी नजरें एक-दूसरे के साथ कहीं गहरे से जुड़ गई थीं। ऐसा लग रहा था जैसे जीवन कुछ अलग ही मोड़ ले रहा हो। हमारी नजरें मिलीं, पर हमने कुछ नहीं कहा, हमारे पास सिर्फ एक अद्भुत संबंध की अनुभूति थी। और तब मैंने मन ही मन उसने  कहा, “तुम्हारी आवाज़ और तुम्हारा भावनात्मक संबंध मेरे लिए बहुत खास हैं।”

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बारिश का इश्क (भाग – 6) – आरती झा आद्या: Moral stories in hindi

आरती झा आद्या

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