विश्वास बनाम सहयोग – कंचन श्रीवास्तव 

चरण स्पर्श भइया लोक सेवा आयोग से मेरा चयन हो गया , बहुत जल्द ज्वाइनिंग लेटर हाथ में होगा ,  मैं सोचता हूं ज्वाइन करने से पहले एक बार आप लोगों से मिल लूं।

का मैसेज पढ़ा जितना तो रवि फूला नहीं समाया,उससे ज्यादा आंसुओं की अविरल धारा में तन मन से भीग गया।

और चलचित्र की तरह अतीत के एक एक पन्ने आंखों के सामने गुजरने लगे।

उसे अच्छे से याद है जब मां पिता जी का एक ही वर्ष में छह छह महीने के अंतर पर स्वर्ग वास हुआ

तो सारी जिम्मेदारी इसके ऊपर आ गई थी।

उस समय वो घबराया नहीं बल्कि धीरज से काम लिया।

जबकि शादी भी नहीं हुई थी, चारों भाई बहनों की जिम्मेदारी उसके ऊपर आ गई ऐसे में सबको बांधे रखना उसका सबसे बड़ा दायित्व रहा।और वो सफल भी हुआ।सब  एक साथ रहते ,काम करते और फिर सो जाते।



सब ने अपनी अपनी दिनचर्या फिट की हुई थी इसलिए कोई किचकिच भी नहीं हुई।

अब  मैं सबसे बड़ा ठहरा वो भी बेरोजगार उस समय हमने हिम्मत से काम लिया गया ऐसा न किया होता तो सारी जिम्मेदारियों से निजात कैसे पाता।

मुझे अच्छे से याद है कैसे कोचिंग ट्यूशन करके खुद भी नौकरी के लायक बना और औरों की पढ़ाई भी जारी रखा।

समय बीतने लगा एक वक्त के बाद उसने सबसे पहले मैने खुद की शादी की उसके बाद दोनों बहनों की ।तब जाके थोड़ा चैन की सांस ली।

भाई काफी छोटा था  पढ़ ही रहा इसलिए ज्यादा परेशान नहीं हुआ।

पर जवान होते भाई को लेकर पत्नी के साथ कुछ अफवाहें उड़ने लगी तो  दोनों को बुलाकर समझाया।

और बोला देखो ये दुनिया है कुछ भी कहे ,कुछ भी करे इस पर ध्यान मत देना।वरना अपने उद्देश्य से भटक जाओगे।

रही बात रिया तुम्हारी तो तुम इसकी मां नहीं बल्कि मां समान भाभी हो लोगों की परवाह किए बगैर इसका ध्यान रखो और इसे अपने उद्देश्य में सफल होने दो।

क्योंकि यदि हमें तुम दोनों पे विश्वास है तो तुम्हें इस अफवाहों पर अपना दीमाग खराब करने की जरूरत नहीं है।

कहते हुए अपने काम पर चला गया। भगवान की ऐसी मर्जी कि साल के भीतर ही उसको पढ़ाई के लिए बाहर जाना पड़ा।और वो चला गया।


इधर रिया भी मां बन गई। सभी की कुदृष्टि इस पर पड़ी कि बेटा राम का नहीं है ,पर राम के विश्वास के आगे सबको झुकना पड़ा। और  धूम धाम से हुई बरही के फंक्शन में आना पड़ा।

इस हिदायत के साथ कि कोई चू चपड़ नहीं होगी।

सच हुआ भी ऐसा ही सभी आए खाया पिए ,खूब शोर शराबा हुआ पर क्या मजाल की कोई एक शब्द भी बोला दे।

दूसरे दिन राकेश चला भी गया क्योंकि उसकी परीक्षा प्रारंभ होने वाली थी। वक्त ने साथ दिया और राकेश की मेहनत रंग लाई वो कंपटीशन में निकल गया।

और आज परिणाम उसके सामने है। सच गर उनका विश्वास और पिता जैसा सहयोग न होता तो आज उसके भाई का क्या होता। सोचते हुए भेजे हुए मैसेज पर

उत्तर में लिखा , खुश रहो और ये भी कोई पूछने की बात है जल्दी आ जाओ फिर एक बार हम सब  मिल बैठकर पार्टी करेंगे का मैसेज भेज दिया।

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