मनोज ऑफिस से आया और सोफे पर पसर गया। लिविंग-रूम में माँ के साथ बड़े भैया बैठे कुछ बात कर रहे थे। मनोज ने आँखें बंद कर लीं।
पापा के गुज़र जाने के भूचाल के बाद बड़े भैया और भाभी ने ही माँ, स्नेहा और मनोज को सम्भाला था। मनोज से बड़ी स्नेहा के विवाह के बाद भैया का ट्राँसफर दूसरे शहर में हो गया, तो उनके जीवन में दूसरा भूचाल सा आया, किंतु बड़े भैया ने शांति से सब मैनेज कर लिया। मनोज भी धीरे-धीरे सम्भलता हुआ जीवन को समझने लगा।
दूसरे शहर में रहने के बावजूद बड़े भैया और भाभी परिवार की सभी जरूरतों का ख्याल रखते थे। उन्होंने परिवार को कभी पापा की कमी का अहसास होने ही न दिया। कहना न होगा कि ऐसा भाभी के स्नेहिल एवं ममतामयी स्वभाव के कारण ही सम्भव हुआ था। यह एक विस्तृत परिवार, Extended Family, बन गया था।
पढ़ाई के बाद मनोज को काफी प्रयासों के बाद जॉब मिली तो परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई थी। सबसे अधिक प्रसन्न बड़े भैया ही लगे थे मनोज को, यही बात माँ ने भी कही थी।
बड़े भैया को देखने के बाद भी मनोज को यूँ पसरा देख कर माँ को क्रोध आ गया—
“क्या बात है, मनोज? भैया को प्रणाम तक न किया!”
“किया था माँ, बड़े भैया ने ध्यान नहीं दिया,” मनोज ने बात सम्भालनी चाही।
“कैसा है मेरा प्यारा भाई?” बड़े भैया ने असामान्य स्थिति को समझा और पास बैठते हुए स्नेह से उसके सिर पर हाथ फेरा।
“ठीक हूँ, बड़े भैया। आप कब आए?” उसकी आवाज़ उलझन में डूबी थी।
“आ तो मैं दोपहर को ही गया था, बस तुमसे मिलने के लिए रुक गया, वर्ना आज ही वापस जाना था,” बड़े भैया उसकी आँखों में कुछ टटोल रहे थे।
उनके स्नेह की उष्मा से मनोज की उलझन कुछ पिघली और वह उनके सीने से लगा तो बड़े भैया उसकी पीठ थपथपाने लगे। तभी माँ चाय बना कर ले आईं।
“कई दिन से इसका ऐसे ही चल रहा है। दो दिन पहले ही कह रहा था कि नौकरी छोड़ दूँगा,” माँ ने उन्हें बताया, तो बड़े भैया गौर से मनोज का चेहरा देखने लगे।
“इतनी मुश्क़िल से मिली है ये जॉब तुमको भाई, और अभी छह महीने भी नहीं हुए”।
मनोज कुछ न बोला, बस उसकी आँखें बेबसी से नम हो गईं, बड़े भैया हैरानी से माँ का चेहरा देखने लगे। बेटे के आँसुओं से माँ व्यथित हो उठीं और अपने आँसू छिपाने के लिए उठ खड़ी हुईं।
“बात क्या है, भाई?”
“काम का दबाव बहुत ज्यादा है बड़े भैया, साथ में बॉस और को-वर्कर्स की बेरुखी। कहीं और जॉब मिल जाता तो मैं ये कब का छोड़ देता, लेकिन…” मनोज चुप हो गया।
“दबाव कहाँ नहीं है, भाई? ‘श्रेष्ठता’ दबाव से ही तो उत्पन्न होती है,” ये शब्द सुन कर माँ समझ गई, बेटे ने सही पेंच ढूँढ लिया है।
“मैं समझा नहीं, बड़े भैया”।
“हीरा, सोने और चाँदी से श्रेष्ठ होता है। कैसे बनता है, पता है न तुमको?” बड़े भैया ने पेंच कसा।
“हाँ, बड़े भैया, विज्ञान का छात्र रहा हूँ। पृथ्वी के गर्भ में अत्यंत भीषण दबाव की स्थिति में हीरा बनता है”।
“वही तो। जितना दबाव सहेगा, उतना ही बेहतरीन हीरा बनेगा तू!” बड़े भैया की बात हीरे की तरह चमकी और मनोज की समझ रौशन कर गई।
“ईश्वर तुम्हारा यह प्रेम सदा बनाए रखें,” माँ ने एक सुगढ़ और एक अनगढ़ हीरे को अपने आँचल में समेट लिया।