बड़े- भैया – सीमा वर्मा 

‘बबँडर’ यानी ‘ मृगतृष्णा’ का नाच तो आप सबने अपने बचपन में अवश्य देखा होगा मेरी अम्मा कहती थीं,

” वह गर्मी से भरी दुपहरिया में नाचती है और नाचते – नाचते सामने जो भी आ जाता है उसे दो फाड़ कर देती है।

जैसे मेरी बड़की अम्मा और बड़े चाचाजी हो गए थे.

उस समय रोहित भैय्या जो मेरे बड़े चाचा के बेटे थे। हमारे घर ही रह कर राँची संतजेवियर्स कॉलेज में बी. ए सेकेंड इयर की पढ़ाई कर रहे थे।

मेरे दादाजी का कहना था कि बच्चों को एक दूसरे के घर में रह कर लालन-पालन होने से घर में एका बनी रहेगी।

उनके इसी विश्वास के कारण मेरी बड़ी बहन कल्पना दीदी बड़की अम्मा के पास और उनके बेटे हमारे घर में रहते थे।

और यकीन मानिए बहुत बड़े हो जाने पर हम भाई -बहनों को अपने असली माता पिता के बारे में पता चला था।

एक दिन रोहित भैय्या जिनसे मेरी बहुत बनती थी।

‘ यों कि वो मुझसे पूरे नौ बर्ष बड़े थे’

शाम के समय रुआंसे हो कर छत पर चुपचाप बैठे हुए थे।

ये समय हमारे कैरमबोर्ड खेलने का समय होता था लिहाजा मैं

कैरमबोर्ड लिए हुए उपर ही चली गई और उनसे खेलने के लिए कहने लगी पर वो बहुत परेशान लग रहे थे।

मेरे बहुत कहने पर भी खेलने के लिए राजी नहीं हुए बल्कि और भी खिन्न  हो गये।

तब उन्हें शांत करने के लिए मैंने उनसे पूछा था,



” क्या हुआ रोहित भैया आज इतने खीजे हुए क्यों हो आप ? “

‘कुछ नहीं छोटी अपने काम से काम रखो बस ‘

लेकिन मैं भी कब मानने वाली थी जिद ठान बैठी ,

‘ भाई अब तो तुम्हें बताना ही पड़ेगा,  नहीं तो मैं जा रही बाउजी से तुम्हारी शिकायत करने ‘

‘ अरे नहीं ! नहीं … कह कर उन्होंने मुझे जबरन बिठा दिया।

उस शाम रोहित भैया थोड़े डरे हुए भी थे … फुसफुसाते हुए बोले …

           ” आज मारकेट में वह दुष्ट लड़का , ‘ शुभम ‘  मुझे मिला था।

जिसने किसी का नाम लिए बगैर बड़की अम्मा को अप्रत्यक्ष रूप म़े कितना कुछ कह डाला।

जिसे सुन कर मेरे कान, गाल और सारा शरीर ही गर्म हो उठा बस एक झन्नाटेदार थप्पड़ उसे दे दिया “

इतना कहते हुए रोहित भैया अपनी बेबसी पर फूट-फूट कर रो पड़े ,

“अगर बड़के चाचाजी उनके साथ रहते तो वह इतनी बड़ी बात नहीं कह पाता “

क्योंकि बड़की अम्मा तो धरती के समान थीं।

उन्हें चाचाजी कितना भी पैरों तले कुचल दें , मन मसोसती क्षमा शीलता की प्रति मूर्ति बन मौन धारण किए रहतीं उफ्फ तक नहीं करती थीं।

भैया जिन्हें चाचाजी कह कर सम्बोधित कर रहे थे वे दरअसल उनके पिताजी की ही बात थी।

मेरे बड़े चाचाजी ने दो शादियां कर रखी थीं।

एक तो हमारी बड़की अम्मा जो स्वभाव से अत्यंत शीतल और नरम थीं और दूसरी अपने से ठीक आधी उमर की किसी लड़की से जिसे वे कभी घर नहीं लाकर बाजार में ही किराए के मकान में रखते थे। 

वे बड़की अम्मा के पास कभी-कभी ही आते थे और खर्चा पानी के नाम पर फूटी कौड़ी भी नहीं देते थे।

                       रोहित भैया उनके इस करतब से बहुत नाराज थे क्योंकि इस सबका खामियाजा सीधे तौर पर उन्हीं को भुगतना पड़ा था।

बहरहाल … उस दिन शाम में छत पर वे रोते हुए जैसे बर्षों से बंद पड़ा ज्वालामुखी का लावा फूट पड़ता है ना ठीक वैसे ही फूट पड़े थे …

” जानती हो छोटी मुझे आज भी वो गर्मी की धूल भरी छुट्टियां याद है जब वे घर आए हुए थे ,

उन्हीं में एक मनहूस दिन वे मेरा नाम ले कर पूछ रहे थे,

रोहित की अम्मा वह नालायक कहाँ गया है ?

अम्मा चुप!

 ” मैंने कहा देख लेना तुम,

वह दिन भर ठाकुर के बागीचे में पेड़ पर चढ़ कर आम की कोपलें तोड़ता रहता है अगर माली के डंडे से बच भी गया तो राम कसम एक दिन हाँथ पैर तुड़वा कर लौटेगा ” 

                 उस दिन सच में मैं दोनों  पाकेट में टिकोरे भरे हुए बरामदे  में खड़ा उनकी बातें सुन रहा था कि उनकी नजर मुझ पर चली गई  ,

” यह देखो आ गए बाबनवीर “

मैं चुपचाप अम्मा के कमरे में घुस गया था

वे लाल पीले हो कर अम्मा को कह रहे थे ,


” तुमने ही उसे सर पर चढ़ा कर बहका दिया है वह मुझसे भी सीधे मुंह बात नहीं करता है “

एक बार भी उसे डाँटती नहीं हो ठीक ही है।

तुम दोनों माँ बेटे यही चाहते हो तो यही सही कौन अपना मुँह थेथड़ करे  ” 

वे जोर -जोर से बोलते हुए थक कर जब चुप हो गए तब अम्मा सर पर पल्लू डालते हुऐ धीरे से बोलीं ,

” यहाँ कौन किसकी सुनता है ?

आप ही क्या रोहित को गलत करने से रोकने के हकदार हैं ?

और क्या उसे रोज घर से बाहर जाने से मना करने के लिए घर पर रूके रहेगें ?  “

मैं पहली बार धरती को करवट बदलते हुए देख रहा था।

अम्मा की आंखें भरी और आवाज दुख के मारे थरथरा रही थी ,

” आप तो खुद ही किसी और के चक्कर में पड़े हुए हैं ,

मुझे सब पता है घर सिर्फ खानापूर्ति के लिए आते हैं और फिर बुलावा आया है कह कर ‘ हेड क्वार्टर’ चले जाते हैं ” 

आपका यह ‘हेड क्वार्टर ‘ कँहा है ? 

एवं हेड कौन है ?

हम सबको यहाँ तक कि बबुआ को भी पता है।

अब ऐसी हालत में बच्चे बिगड़ते हैं बिगड़े आखिर किसकी जिम्मेदारी है  ? “

अम्मा के ये तेवर देख पिताजी सकपका गए और मेरे सामने सच खुल जाने के कारण गुस्से से पाँव पटकते हुए बाहर चले गए थे।

” फिर क्या हुआ था भैया ? ” मैं एकदम से पूछ बैठी।

” फिर … फिर क्या होता ?

अम्मा अपनी आंखें पोछती हुई मुझे कस कर पकड़ते हुए बोली थीं  ,

“बबुआ ऐसी भरी दुपहरिया में बाहर नहीं जाते बबुआ देखो तो बवँडर माई आईं हैं  “

कालान्तर में पिता जी का घर आना धीरे – धीरे कम फिर एकदम से ही बन्द हो गया था।

बाद में क्या हुआ वो तो तुम्हें मालूम ही है।

मेरे बाउजी रोहित भैया को यहाँ रांची ले आए थे और मेरी दीदी को उनके घर डॉल्टेनगंज पहुँचा आए थे।

हमारे घर की माली स्थिति भी कुछ बहुत अच्छी नहीं थी।

फिर भी … रोहित भैया के बी.ए फाइनल  के परीक्षा फॉर्म भरने की तिथि नजदीक आ गई थी पर पैसे नहीं जुट पा रहे थे।

बड़की अम्मा उन दिनों कुछ बीमार चल रही थीं। रोहित भैया और मैं उन्हीं को मिलने घर गये हुए थे।

अब बड़की अम्मा तो उनका चेहरा देख कर समझ ही गयी थीं ।

उस दिन शाम को उनका हाँथ पकड़ कर  जबरन सोने का भारी टीका पकड़ाते हुए बोली , 

” ले यह टीका बाकी सब तो बिक गए एक यही बचा है “

पता नहीं कितने में बिकेगा ?

तुम्हारे फौर्म भरने तक का खर्च निकल जाए यही बहुत है ।

” मैं यह टीका नहीं बेच सकता ” रुँधे गले से भैया ने कहा ,

“क्यों ? “

” क्यों क्या इसे भी बेच दूँ फिर ईश्वर को क्या मुँह दिखाऊंगा ? “

बड़की अम्मा मुँह में आँचल भर फफक कर रो उठी ,

“जब उस सुहाग का ही कुछ मोल ना रहा तो  ?  

यह जब तक रहेगा तेरे पिता की करतूतों की याद दिलाता रहेगा।

इससे तो अच्छा है इसे जा कर बेच आ  कहीं “

लेकिन बाद में  फिर मेरे बाउजी ने ही कहीं से लोन लेकर फॉर्म भरवाया था भैया का।

और वे भी आगे लगन से पढ़ते हुए शायद मेरे बाउजी की उनपर किए हुए मेहनत का सिला हम सबको देने के लिए ‘इंडियन एलाएड सर्विस ‘ में पहली ही दफा में चयनित कर लिए गये थे।

बाद के दिनों में तो हम सब मिलजुलकर दिन व्यतीत करते हुए खुशी-खुशी रह रहे थे। सबके शादी-ब्याह निश्चित समय पर हो चुके।


हमारी एक बहुत ही प्यारी सी भाभी जो भैया के समकक्ष ही सर्विस वाली थीं भी आ गयीं थीं वे काफी समझदार और हँसमुख थीं।

जिन्दगी की गाड़ी अपनी समतल पटरियों पर चल रही थी कि ,

एक दिन शाम के समय जब भैया ऑफिस से घर वापस लौट कर आराम कर रहा था।

बड़की अम्मा चुपचाप आ कर पास खड़ी हो गई और सदा की तरह आँचल से मुँह ढ़क कर बोलीं

” लल्ला ! मैंने सुना है ,

बदपरहेजी के चलते उनके दोनों किडनी खराब हो गए हैं।  वे यहाँ आना चाहते हैं”

उन्हें माफ कर दे बेटा अब जीवन की इस बेला में तेरे-मेरे सिवा उनका है ही कौन ? “

भैया तो हैरान निशब्द हो उन्हें देखते रह गया शायद मन ही मन गुन रहा हो…

” बड़की अम्मा का इस तरह झुकना उनकी कायरता तो हरगिज नहीं थी

हाँ उन्हें विरासत में मिला स्त्रियोचित गुण धर्म जरुर था।

जिसका सम्बंध उनकी विनम्रता से ही है।

यह समझते हुए हाँ में सिर डुला कर अपनी हामी भर दी।

इति श्री… कहानी कैसी लगी अवश्य बताएइगा।

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